-स्थापना-(माता तेरे चरणों में…)-
गुरुवर तेरे चरणों में हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
सप्तर्षि में श्रीमन्यू, हैं दुतिय ऋषीश्वर जी।
चारणऋद्धी संयुत, उन महामुनीश्वर की।।
उनका आह्वानन कर, स्थापन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।१।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षे! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षे! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षे! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधीकरणं स्थापनं।
-अष्टक (माता तेरे चरणों में….)-
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
गंगानदि का जल ले, त्रयधारा करना है।
निज जन्म जरामृत्यू, को भी क्षय करना है।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।१।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
मलयागिरि चन्दन ले, गुरुपद में चर्चन है।
भवताप नष्ट होवे, करना मन शीतल है।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।२।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
मोतीसम तन्दुल ले, त्रयपुंज चढ़ाना है।
दु:खों का क्षय करके, अक्षयपद पाना है।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।३।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
फूलों को चुन-चुन कर, उपवन से ले आए।
गुरुपद में चढ़ाने से, विषयाशा नश जाए।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।४।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
पूरनपोली आदिक, नैवेद्य बना लाए।
गुरुपद में चढ़ाने से, क्षुधरोग विनश जाए।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।५।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
कंचन की थाली में, घृतदीप बना लाए।
गुरुदेव की आरति से, तम मोह विनश जाए।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।६।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
कर्पूर व चन्दन की, हम धूप बना लाए।
अग्नी में दहन करके, आतम सुख पा जाएँ।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।७।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
अंगूर आम केला आदिक फल ले आए।
गुरु सम्मुख अर्पण कर, मुक्तीफल को पाएँ।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।८।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुवर तेरे चरणों में, हम वंदन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।।
शाश्वत सुख की इच्छा, से अर्घ्य थाल लाए।
‘‘चन्दनामती’’ उसको, अर्पण कर सुख पाएँ।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।९।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
गुरुपद में झारी से, जलधारा करना है।
आतम शांती के लिए, त्रयधारा करना है।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
नाना विध पुष्पों को, अंजलि में भर लाए।
गुरुपद पुष्पांजलि कर, गुणपुष्प सुरभि पाएं।।
इस हेतू गुरु पद में, हम वन्दन करते हैं।
श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
सप्तऋषी मण्डल रचा, पूजा हेतु महान।
पुष्पांजलि करके वहाँ, अर्घ्य चढ़ाऊँ आन।।१।।
इति मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
-शंभु छंद-
अपने पितु के संग दीक्षा ले, श्रीमन्यु पुत्र भी मुनी बने।
निज आत्मा में तन्मय होकर, तप कर ऋद्धी के स्वामि बने।।
उन चारणादि ऋद्धीधारी, मुनिवर की पूजा सुखकारी।
उनकी ऋद्धी से मिल जाती, भौतिक आत्मिक संपति सारी।।२।।
ॐ ह्रीं चारणऋद्धिसमन्वित श्री श्रीमन्युमहर्षये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये नम:।
तर्ज-जहाँ डाल-डाल पर……….
श्रीमन्यु मुनीश्वर के सम्मुख पूर्णार्घ्य सजाकर लाए,
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाएं।।टेक.।।
जिन आगम हैं पाँच प्रमुख, परमेष्ठि नाम से माने।
इनमें अरिहंत सिद्ध परमात्मा, नाम से जाते जाने।। नाम से……….
आचार्य उपाध्याय साधु कर्म को, नाश परम पद पाएं,
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाएं।।१।।
मुनिराज साधु परमेष्ठी जब, घोरातिघोर तप करते।
ऋद्धियाँ प्राप्त होतीं उनको, फिर क्रम से शिवपद वरते।। फिर क्रम से….
हम उनकी पूजा अर्चा करके, भौतिक सुख पा जाएँ,
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाएँ।।२।।
इन ऋद्धिधारियों के क्रम में, सप्तर्षि प्रसिद्ध हुए हैं।
राजा श्रीनन्दन और धारिणी माँ के पुत्र हुए हैं।। माँ के………..
सातों भाई दीक्षा लेकर आतम में ध्यान लगाएँ,
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाएँ।।३।।
इन सातों में से दुतिय पुत्र, श्रीमन्यु मुनी कहलाए।
जो मथुरा नगरी में भ्राता, मुनियों के संग में आए।।मुनियों के……..
‘‘चन्दनामती’’ उन सब मुनियों के पद में शीश झुकाएँ,
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाएँ।।४।।
उन श्रीमुनिवर की पूजा में जयमाल का थाल सजा है।
पूर्णार्घ्य समर्पित कर गुरुवर! मन में यह भाव जगा है।। मन में……
रत्नत्रय प्राप्ती हेतु भावना वृद्धिंगत कर पाएँ,
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाएँ।।५।।
ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षये जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
सप्तऋषी की अर्चना, देवे सौख्य महान।
इनके पद की वंदना, करे कष्ट की हान।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।