तर्ज—सद्राह पे जीवन नैया लगा……..
—शंभु छंद—
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
कर्मों को जीते वे जिन हैं, आचार्य उपाध्याय साधू भी।
जिनकी मुनि की अर्चा कर लो, आतम सुख भी पा जावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
बहुविध अतिसार रोग हैजा, आदिक सब दोष विनश जाते।
सब कर्म शत्रु भी दूर भगें, सब ऋद्धि समृद्धी पावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
घर पुत्र पिता परिजन पुरजन, ये अपने नहीं पराये हैं।
भगवान को अपना मान चलो, जिनगुण संपद् पा जावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो जिणाणं जिनेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
जो अवधीज्ञान धरें मुनिवर, जिन बनें मुक्ति को वर लेते।
वे आत्म रसास्वादी प्रभु हैं, उन नमत अवधि पा जावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
नाना विध के ज्वर रोग नशे, तन में मन में भी शांती हो।
ऋद्धीधारी गणधर पूजा, करते भवदधि तर जावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
माया के अंधेरे में प्राणी, नहिं ज्ञान किरण पा सकते हैं।
गुरुवों की शरण में आ जावो, फिर ज्ञान ज्योति पा जावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो ओहिजिणाणं अवधिजिनेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
जो मुनि परमावधि पा लेते, उस ही भव से शिव प्राप्त करें।
तुम उनकी शरण में आ जावो, जिनधर्मामृत पा जावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
भक्तों के शिरोरोग सब ही, नश जाते जिनवर भक्ती से।
परमावधि जिन की भक्ति करो, परमावधि को पा जावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
नानाविधि के संक्लेश किये, ज्ञानावरणादि बंधा करते।
इन कर्मों से छुटकारा हो, ऐसी युक्ती पा जावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो परमोहिजिणाणं परमावधिजिनेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
जो मुनि सर्वावधि ज्ञानी हैं, त्रिभुवन के मूर्त सभी जानें।
इनको भी मुक्ति इसी भव से, नमते युक्ती पा जावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
भक्तों की सर्व नेत्र व्याधी, गणधर भक्ती से नश जातीं।
सर्वावधि ज्ञान मिलेगा तुम्हें, निज भेदज्ञान पा जावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
इन मुनियों की श्रद्धा भक्ती, भवदधि से पार लगा देगी।
तुम इनकी शरण में आ जावो, फिर ज्ञान ऋद्धि पा जावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो सव्वोहिजिणाणं सर्वावधिजिनेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
जिनकी अवधी का अंत नहीं, वे ही अनंत अवधी मानें।
ये केवलज्ञानी ऋषि होते, इनसे निजरश्मी पावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
गणधर भक्ती से नानाविध, भी कर्ण रोग नश जाते हैं।
इन्द्रिय विषयों को तजते ही, निज ज्ञान अतीन्द्रिय पावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
सब जन में केवलज्ञान भरा, यह कर्मावरण उसे ढकता।
कैसे विनाश हो कर्मों का, भक्ती से शक्ती पावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो अणंतोहिजिणाणं अनंतावधिजिनेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
जैसे कोठे में धान्य भरें, सब पृथक् पृथक् रह सकते हैं।
वैसे ही कोष्ठबुद्धि मुनि को, नमते बुद्धी पा जावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
नाना कुशूल गुल्मादि रोग, सब उदर रोग नश जाते हैं।
जिन कोष्ठबुद्धि की पूजा से, मानस शांती पा जावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
मति ज्ञानावरण क्षयोपशम से, बुद्धी में अतिशय आ जाता।
तुम इन मुनियों की भक्ति करो, धारणा शक्ति पा जावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो कोट्ठबुद्धीणं कोष्ठबुद्धिऋद्धिसंपन्नेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
ज्यों बीज से खेत फलें कोसों, त्यों ज्ञान बढ़े जिन मुनियों का।
उन बीज बुद्धि ऋषि को पूजो, तुम ज्ञान किरण पा जावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
हिचकी व श्वास संग्रहणि आदि, नाना विध रोग विनश जाते।
जिन बीजबुद्धि की पूजा से, तुम पूर्ण स्वस्थ हो जावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
आत्मा में ज्ञान अनंत भरा, कर्मों ने इसको क्षीण किया।
गुरुभक्ति से इसे बढ़ाकर तुम, आकाश को भी छू जावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो बीजबुद्धीणं बीजबुद्धिऋद्धिसंपन्नेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
गणधर के गुणों को गाते चलो, मनवांछित फल पा जावोगे।
भक्ती से अर्घ्य चढ़ाते चलो, धन सुख संपद पा जावोगे।।टेक.।।
जो एक मात्र पद पढ़ते ही, संपूर्ण ग्रंथ का अर्थ करें।
यह पदानुसारी बुद्धि ऋद्धि, जजते इसको पा जावोगे।।
।।गणधर.।।१।।
सब जन के बैर परस्पर के, गणधर पूजा से दूर भगें।
आपस में परम प्रीति होगी, त्रैलोक्य प्रेम पा जावोगे।।
।।गणधर.।।२।।
सब पाठ याद कर कर भूलें, धारणावरण स्मृति हरता।
ऋषियों की पदरज शिर पे धरो, स्मरण शक्ति पा जावोगे।।
।।गणधर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं णमो पादाणुसारीणं पादानुसारिणीबुद्धिऋद्धिसंपन्नेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।८।।
जिन से पदानुसारि तक, ऋद्धिप्राप्त गणनाथ।
पूर्ण अर्घ से पूजहूँ, नमूँ नमाकर माथ।।१।।
ॐ ह्रीं णमो जिणाणं प्रभृति पादाणुसारिपर्यंतऋद्धिप्राप्तेभ्य: गणधरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि: