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तत्त्वार्थसूत्र भजन-चतुर्थ अध्याय
June 14, 2020
भजन
jambudweep
भजन-४ चतुर्थ अध्याय
हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।।
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय चतुर्थ में, उर्ध्वलोक का वर्णन है।
देवों के चार भेद एवं, उनकी स्थिति का वर्णन है।।
वे भवनवासि व्यंतर ज्योतिष, वैमानिक नाम से कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।१।।
चन्द्रमा सूर्य नक्षत्रादिक हैं, ज्योतिर्वासी देव कहें।
इनके विमान मेरूपर्वत की, सदा-सदा परिक्रमा करें।।
बस इसीलिए रात्री दिन के हैं, भेद धरा पर बन जाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।२।।
यद्यपि चारों गतियों में, देवगती में सर्वाधिक सुख है।
पर संयम नहिं ले सकते वे, इस बात का ही उनको दुख है।।
‘‘चंदनामती’’ वह संयम तप, बस मानव धर शिवपद पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।३।।
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Tatvaarth Sutra bhajan
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यह शान्त छवी तेरी बड़ी सुन्दर लगती है!
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