(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. चातुर्मास की स्थापना।
२. २६००वां भगवान महावीर जन्ममहोत्सव।
३. फिरोजशाह कोटला मैदान में २६ मण्डल बनाकर विश्वशांति महावीर विधान का अभूतपूर्व आयोजन।
४. उक्त विधान की कृतियॉँ विमोचित।
५. पं. शिवचरण लाल जैन मैनपुरी को गणिनी ज्ञानमती पुरस्कार प्राप्त हुआ।
६. माताजी को अनेक अलंकरण प्राप्त।
७. कनॉट प्लेस में भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव।
८. आतंकवाद विरोधी रैली को आर्यिका चंदनामती जी द्वारा सम्बोधन।
९. महावीर के दीक्षा कल्याणक पर ज्ञानमती माताजी द्वारा सम्बोधन।
१०. कुण्डलपुर (नालंदा) के विकास का संकल्प।
११. कुण्डलपुर में कीर्तिस्तंभ का शिलान्यास।
१२. जैन समाज फिरोजाबाद द्वारा माताजी को युगनायिका की उपाधि।
चार जुलाई, दो हजार इक, हुआ स्थापित चातुर्मास।
आबालवृद्ध नर-नारी मन में, उमड़ा अमित-मोद-उल्लास।।
जैसे चातक मेघ बूंद पा, पाता है मन में संतोष।
वैसे ही दिल्ली के दिल में, हुआ अवतरित अनुपम तोष।।१२३१।।
छब्बीस-सौवां जन्म महोत्सव, मना देश में पूरे वर्ष।
परम पूज्य माताजी सन्निधि, दिल्ली में भी मना सहर्ष।।
मंगलाचरण स्वरूप में हुआ, विश्वशांति महावीर विधान।
महावीर मण्डप के भीतर, फिरोज कोटला के मैदान।।१२३२।।
मंडप बृहत्-विशाल एक था, छब्बिस मंडल उसकी थान।
सौ-सौ पूजक खड़े एक पर, छब्बिस-सौ मंत्रों का गान।।
प्रतिमंडल पर गये चढ़ाये, कृत मंत्रित छब्बिस सौ रत्न।
धनकुबेर वितरित करते थे, वांछक ग्रहते महा प्रयत्न।।१२३३।।
हुआ प्रशंसित महाकुंभ यह, भक्तिरसामृत से भरपूर।
दौड़े आये पीने वाले, कर्म शत्रु करने को चूर।।
नूतन कृति श्रीमाताजी की, विश्वशांति महावीर विधान।
करी विमोचितु इन्दु-धनंजय, सभाध्यक्ष व अतिथि प्रधान।।१२३४।।
जैन साहित्य क्षेत्र में किया, आप अपरिमित योग प्रदान।
हुए अलंकृत लाल शिवचरण, गणिनी ज्ञानमती सम्मान।।
परम पूज्य श्रीमाताजी हैं, विद्वानों हित कल्पलता।
विकसित होते हैं विद्वत्जन, यथा कंज लख के सविता।।१२३५।।
सीधे-सादे सरल हृदय हैं, दिखते दुर्बल हैं, मजबूत।
स्वाध्याय में निरत निरंतर, जिनवाणी के श्रेष्ठ सपूत।।
जिनदर्शन-पूजन-प्रवचन हैं, जिन जीवन की मुख्य धुरी।
माननीय व्यक्तित्व धनी हैं, शिवचरण लाल जी मैनपुरी।।१२३५।।
आर्षमार्ग औ स्याद्वाद के, उद्घोषक उद्भट विद्वान।
धर्मसभा में शिव वचनों से, आ जाते हैं सचमुच प्राण।।
हिन्दी-संस्कृत-अंग्रेजी पर, रखते हैं समुचित अधिकार।
स्वर लहरी से निज कथनों को, दे देते सुंदर उपहार।।१२३६।।
परम पूज्य श्री माताजी की, प्रतिभा महा विलक्षण है।
अभीक्ष्ण ज्ञानयोगिनी माता, रुकती नहीं एक क्षण हैं।।
फलस्वरूप भर लिया आपने, ज्ञानामृत का उदधि महान्।
दिया गया इसलिए आपको, यथासमय बहुविधि सम्मान।।१२३७।।
आचार्यों-गुरुओं-समाज ने, विश्वविद्यालय समय-समय।
किया अलंकृत दे उपाधियाँ, माना खुद को गौरवमय।।
महाराष्ट्र राष्ट्र की गौरव, अवधप्रांत धर्ममूर्ति कहा।
दिल्ली के प्रतिनिधि मंडल ने, माँ को विश्वविभूति कहा।।१२३८।।
महत्त्वपूर्ण इस आयोजन में, कमलचंद जी भक्त प्रथम।
राजा श्री सिद्धार्थ रूप में, रची आपने प्रभु पूजन।।
त्रिलोक शोध संस्थान ने उन्हें, श्रेष्ठ उपाधी करी प्रदान।
दानवीर सह समाजरत्न हैं, महावीर के भक्त महान्।।१२३९।।
प्रकाश-पर्व दीपावलि आया, पावापुरि रचना निर्माण।
कनाट प्लेस राजा बाजार में, गया बनाया क्षेत्र महान्।।
महावीर की छब्बिस-सौवीं, जन्मजयंती वर्ष सुकाल।
गये चढ़ाए उतने लाडू, मन-वच-काय नमा के भाल।।१२४०।।
आज विश्व जल रहा आग में, आतंकवाद-हिंसा के जोर।
विरोध जताने निकली रैली, गया ध्यान सबका इस ओर।।
विजय चौक से गेट इण्डिया, सम्मिलित हुए हजारों जन।
शांति अहिंसा द्वारा होगी, किया चंदना सम्बोधन।।१२४१।।
जप-तप महाकुम्भ नामांकित, मना वीर दीक्षा कल्याण।
दो सौ साधु—साध्वी हुए उपस्थित, ताल कटोरा के मैदान।।
सम्प्रदाय का भेद न रहा, सफल रहा अति आयोजन।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, दिया सभी को सम्बोधन।।१२४२।।
छह जनवरी, दो हजार दो, दिल्ली के दिल बैठी बात।
नालंदा के कुण्डलपुर को, विकसित करके दें सौगात।।
यही वास्तविक पुण्य भूमि है, महावीर जन्म कल्याण।
अत: जरूरी करें शीघ्र ही, कुण्डलपुर का अभ्युत्थान।।१२४३।।
दृढ़ संकल्प लिया माताजी, कुण्डलपुर का करें विकास।
कर विहार माताजी पहुँचीं, महावीर के चरणों पास।।
कमलचंद दिल्ली के हाथों, कीर्ति स्तंभ शिलान्यास हुआ।
जन्मभूमि को विकसित करने, शुभारंभ इस भांति हुआ।।१२४४।।
परम पूज्य श्री माताजी का, दिवस आर्यिका दीक्षा का।
सैतालिसवां गया मनाया, दिन विराग की शिक्षा का।।
युगनायिका की उपाधि से, सकल समाज फिरोजाबाद।
करके अलंकृत माताजी को, माना सबने निज सौभाग्य।।१२४५।।