(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. दिल्ली से कुण्डलपुर होकर प्रयाग-इलाहाबाद।
२. ऋषभदेव तपस्थली प्रयाग-नया तीर्थ निर्माण।
३. प्रयाग में कैलाशपर्वत, तपस्थली, कीर्तिस्तम्भ आदि का निर्माण।
४. चातुर्मास की स्थापना।
५. हस्तिनापुर में पंचकल्याणक।
६. हस्तिनापुर में पंचकल्याणक-सन्निधि क्षुल्लक मोतीसागर जी।
७. अनेक आयोजन सम्पन्न हुए।
८. विद्वानों को सम्मान एवं पुरस्कार।
९. महाश्रमण महावीर का विमोचन।
१०. शरद पूर्णिमा-जन्मदिवस एवं त्याग दिवस।
११. न्यायाधीश सम्मेलन का आयोजन।
१२. चातुर्मास निष्ठापन एवं विहार।
१३. बनारस में आगमन-१० दिन प्रवास।
१४. माताजी के प्रवचन।
१५. आरा में वाग्देवी की उपाधि से अलंकृत हुई।
१६. पटना से कुण्डलपुर।
१७. नवीन मुख्य मंदिर का शिलान्यास।
१८. ११ फुट उत्तुंग खड्गासन महावीर की प्रतिमा-पंचकल्याणक।
१९. १००८ कलशों से अभिषेक।
२०. राजगृही का विहार-मुनिसुव्रतनाथ प्रतिमा की स्थापना।
२१. पावापुरी में वीरप्रभु की प्रतिमा की स्थापना।
२२. गुणावां में गौतमगणधर की प्रतिमा पधराई।
२३. सम्मेदशिखर यात्रा।
२४. तीर्थ संरक्षण के लिए सम्मेलन, माताजी ने शुभाशीष दिया।
२५. आदिनाथ जयंती पर आदिनाथ जिनालय का शिलान्यास।
२६. कुण्डलपुर नालंदा में महावीर जयंति पर कार्यक्रम एवं महावीर ज्योति रथ का प्रर्वतन।
२७. हस्तिनापुर में क्षुल्लक मोतीसागर जी के सन्निधान में पंचकल्याणक।
२८. पावापुरी में भारत के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी माताजी के दर्शनार्थ आये।
२९. राजगृही में मुनिसुव्रतनाथ जिनमंदिर का शिलान्यास।
३०. कुण्डलपुर में नंद्यावर्त महल का निर्माण।
३१. अगला चातुर्मास कुण्डलपुर में।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, प्रयागराज को किया गमन।
दिल्ली से कुण्डलपुर होकर, हुआ प्रयाग में शुभागमन।।
बीस फरवरी चरण बढ़ाए, बारह जून को रुके यहाँ।
मंजिल पाना लक्ष्य है जिनका, उन्हें बीच विश्राम कहाँ।।१२४६।।
परमपूज्य श्री माताजी ने, पुरातीर्थ उद्धार किये।
आवश्यक थे जहाँ, वहाँ पर, नव तीरथ निर्माण किये।।
आदिनाथ की तपस्थली यह, तीर्थ प्रयाग पुराना है।
दृढ़ संकल्प किया माताजी, सकल जगत् बतलाना है।।१२४७।।
इक पंचाशत फुट ऊँचा, गिरि कैलाश रचाया है।
झरना-फव्वारों के द्वारा, प्राकृतिक रूप सजाया है।।
बहत्तर जिनमंदिर उस पर, हुए स्थापित यथा विधि।
परम पूज्य श्री माताजी की, प्राप्त रही उत्तम सन्निधि।।१२४८।।
कीर्तिस्तम्भ भी गया बनाया, इक्तिस फुट ऊँचाई लिए। हुई
विराजित अठ प्रतिमाजी, लख प्रमोद अतिशय्य हिये।।
विविध प्रान्त से जन आ करके, माताजी से की अरदास।
हे माताजी! प्रयागराज में, करें स्थापित चातुर्मास।।१२४९।।
करुणाधन, वत्सल रत्नाकर, पूज्य आर्यिका ज्ञानमती।
चातुर्मास किया स्थापित, ऋषभदेव जिन तपस्थली।।
सूरज दूर कहीं रहता है, प्रमुदित करता पंकज उर।
हुए प्रयोजित पंचकल्याणक, माता स्वीकृति से गजपुर।।१२५०।।
सहस्रकूट जिन चैत्यालय जी, छोटीशाह ने बनवाया।
पंचकल्याणक करने का भी, पुण्य उन्होंने ही पाया।।
क्षुल्लक श्री मोतीसागर का, सन्निधान की है यह याद।
गणिनी ज्ञानमती माता का, प्राप्त रहा शुभ आशीर्वाद।।१२५१।।
श्रावण शुक्ला मुकुट सप्तमी, निर्वाण दिवस श्री पारसनाथ।
निर्वाण लाडू किये समर्पित, प्रभु पदकंज नमाकर माथ।।
महावीर जी प्रवचन हॉल का, शिलान्यास सम्पन्न हुआ।
प्रकाश इलाहाबाद के द्वारा, पुण्य कार्य सम्पूर्ण हुआ।।१२५२।।
अक्टूबर में तीन दिवस का, हुआ कार्यक्रम आयोजन।
महामस्तक अभिषेक पूर्वक, ऋषभ स्थापन समवसरण।।
कुण्डलपुर राष्ट्रीय सम्मेलन, रखा गया था इन्हीं दिनों।
शास्त्री-विद्वत् संघ अधिवेशन, सम्पन्ना था इन्हीं दिनों।।१२५३।।
अधिवेशन के अंत समय मेें, किया गया विद्वत्सम्मान।
अनुपम जी को दिया गया तब, पुरस्कार ऋषभ भगवान।।
शेखरचंद-धनराज जैन को, जम्बूद्वीप सम्मान मिला।
रत्नमती पुरस्कार प्राप्ति का, नंदलाल सौभाग्य मिला।।१२५४।।
परम पूज्य माँ ज्ञानमती जी, करें ज्ञानियों का सम्मान।
उनके मन में रहे सदा ही, विद्वानों प्रति अतिशय मान।।
ज्ञानीजन की श्रम साधना, ज्ञानी जन ही सकते जान।
ज्ञानीजन ही ज्ञानीजन को, देते हैं आदर-सम्मान।।१२५५।।
बन्ध्या नहीं जान सकती है, होती क्या प्रसूति की पीर।
अज्ञानी जन मान न सकते, ज्ञान प्राप्ति है टेढ़ी खीर।।
एतदर्थ श्रीमाताजी के, चरणों बारम्बार प्रणाम।
सरस्वती अवतार आप हैं, पूर्ण आपका सार्थक नाम।।१२५६।।
सुमेरु चंद्र दिवाकर द्वारा, रचा ग्रंथ उन जीवनकाल।
महाश्रमण महावीर प्रकाशित, हुआ विमोचित यात्रिसुकाल।।
जिनशासन-रत्न उपाधि से, हुए अलंकृत पंडित जी।
धन्य है विद्वत्प्रेम आपका, धन्य, धन्य हो माताजी।।१२५७।।
शरद पूर्णिमा का पावन दिन, माताजी का जन्म-दिवस।
किया और भी पावन माँ ने, बना लिया जब त्याग दिवस।।
ऋषभदेव समवसरण विहार रथ, देशभ्रमण कर लौटा आज।
समवसरण को नव मंदिर में, किया विराजित सकल समाज।।१२५८।।
उनहत्तरवाँ जन्म दिवस, माँ शरदपूर्णिमा दिन पावन।
इक्यावनवाँ त्याग दिवस भी, यही पूर्णिमा मनभावन।।
गये मनाए सोत्साह द्वय, प्रयागराज में पहली बार।
परम पूज्य श्री माताजी के, चरणों अर्पित नमन हजार।।१२५९।।
ऋषभदेव तपस्थली तीर्थ पर, हुआ सम्मेलन न्यायाधीश।
सब अधिकारीगण आकर के, माँ के चरण नमाया शीश।।
परम पूज्य श्री माताजी ने, सबको शुभ आशीष दिया।
न्याय करे जनता, निज के संग, माता सद् उपदेश दिया।।१२६०।।
चार नवम्बर दो हजार दो, कर चतुर्मास का निष्ठापन।
परम पूज्य श्री माताजी ने, कुण्डलपुर को किया गमन।।
प्रयागराज से चलकर माता, नगर बनारस किया प्रवेश।
सुपार्श्र्व-पार्श्र्व की जन्मभूमि यह, कण-कण पावन सकल प्रदेश।।१२६१।।
घाटभदैनी-भेलूपुर के, जिनालयों के कर दर्शन।
नमन किया माँ देव-शास्त्र-गुरु, आत्यंतिक आह्लादित मन।।
दश दिवसीय प्रवास काल में, हुए महत्तम आयोजन।
तदा किए श्रीमाताजी ने, जग हितकर मंगल प्रवचन।।१२६२।।
यह संसार महासागर है, चारों गतियाँ गर्त समान।
इनमें भ्रमण कर रहा चेतन, अनादिकाल से वश अज्ञान।।
मोहमहामदिरा को पीकर, पर को अपना मान रहा।
कालकूटसम विषय-कषाएँ, उनको अमृत जान रहा।।१२६३।।
इस अनित्य-क्षणभंगुर जग में, पालनीय भगवंत चरित्र।
हमें चाहिए उन पर चलकर, हम बन जायें स्वयं पवित्र।।
श्री तीर्थंकर पार्श्र्वनाथ का, है चरित्र अतिशयी अनन्य।
पढ़ें सुनें जीवन में लायें, कर लें अपना जीवन धन्य।।१२६४।।
कर विहार माताजी पहुँचीं, शुभ स्थान नगर आरा।
माताजी के जयकारों से, गूँजा धरा-गगन सारा।।
जैन समाज आरा ने माना, साक्षात् शारदा माताजी।
अत: वाग्देवी उपाधि से, किया अलंकृत माताजी।।१२६५।।
आरा नगरी से विहार कर, पटना में माँ किया प्रवेश।
बिहार प्रांत की रजधानी है, सेठ सुदर्शन का यह देश।।
गुलजार बाग निर्वाण स्थली, किए सुदर्शन माताजी।
शीलशिरोमणि रतन जगत में, हुई स्मृतियाँ सब ताजी।।१२६६।।
उन्तीस दिसम्बर, दो हजार दो, कुण्डलपुर संघ किया प्रवेश।
महावीर की जन्मभूमि यह, अतिशय पावन वीर प्रदेश।।
बीस फरवरी दो हजार दो, दिल्ली से था किया विहार।
तेरह सौ कि.मी. चलकर आर्इं, नगर-ग्राम कर धर्म प्रचार।।१२६७।।
पचास वर्ष पश्चात् यहाँ पर, गुँजे वीर के जयकारे।
प्राचीन जिनालय हुई आरती, शत-अठ दीपक उजियारे।।
महावीर मुख्य मंदिर का, हुआ आज ही शिलान्यास।
माताजी के सन्निधान में, किया बनारस के ऋषभदास।।१२६८।।
ग्यारह फुट, खड्गासन प्रतिमा, महावीर की आई यहाँ।
पंचविंशति तुँग मंदिर ऊपर, वह पधराई गई यहाँ।।
श्वेत वर्ण-बेदागी-सुंदर, मन को हरने वाली है।
बार-बार लख दर्शक कहते, प्रतिमा की बलिहारी है।।१२६९।।
सात फरवरी से बारह तक, हुए आयोजित पंचकल्याण।
मिला सभी दिन माताजी का, मंगलमय पावन सन्निधान।।
शत, द्विसप्तति जिनप्रतिमा जी, हुई प्रतिष्ठित, सुविराजित।
कीर्तिस्तम्भ प्राचीन जिनालय, अठ प्रतिमाजी हुई राजित।।१२७०।।
सहस अठोत्तर कलशों द्वारा, हुआ महामस्तक अभिषेक।
रोम-रोम पुलके नर-नारी, दृश्य अलौकिक-मनहर देख।।
महावीर की श्वेत देह पर, पंचामृत छवि बिखराता।
बदली घिरती, फिर क्षण भर में, पूरा चाँद निकल आता।।१२७१।।
शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर को, माताजी संघ किया विहार।
रही भावना करें वंदना, करें कठिन कर्मों को क्षार।।
राजगृही में पहुँचीं माँ श्री, कुछ ही दिन का रहा पड़ाव।
मुनिसुव्रत-खड्गासन प्रतिमा, ग्यारह फुट के आये भाव।।।१२७२।।
तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत के, हुए पंचकल्याण यहाँ।
पंचशैल से मुक्ति पधारे, असंख्यात मुनिवृंद यहाँ।।
महावीर का समवसरण भी, आया यहाँ अनेकों बार।
ऐसे पावन तीर्थक्षेत्र को, नमन हमारा बारम्बार।।१२७३।।
राजगृही से कर विहार माँ, पावापुरी क्षेत्र आई।
ग्यारह फुट खड्गासन प्रतिमा, वीरप्रभू की पधराई।।
पावापुर जी सिद्धक्षेत्र है, महावीर पाया निर्वाण।
उनके पावन चरण कमल में, कवि का बारम्बार प्रणाम।।१२७४।।
पावापुर से श्रीमाताजी, क्षेत्र गुणावाँ में आई।
पंचफुटी पद्मासन प्रतिमा, गौतमगणधर पधराई।।
इंद्रभूति गौतमगणधर ने, इसी क्षेत्र पाया निर्वाण।
ऐसे पावन सिद्धक्षेत्र को, कवि का बारम्बार प्रणाम।।१२७५।।
क्षेत्र गुणावां से विहार कर, संघ नवादा आया है।
सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर को, माँ ने लक्ष्य बनाया है।।
जैनधर्म की हो प्रभावना, इसकी भी माँ रही फिकर।
नगर-ग्राम में तूर्य बजातीं, माँ पहुँचीं सम्मेदशिखर।।१२७६।।
तीर्थ संरक्षण कैसे होवें, कैसे होवे तीर्थ विकास।
उक्त विषय पर हुआ सम्मेलन, सन्निधान माताजी खास।।
रहा सफल सम्मेलन अतिशय, माताजी आशीष दिया।
जैन समाज मधुबन ने मिलकर, आयोजन प्रायोज्य किया।।१२७७।।
आदिनाथ भगवान जयंती, शत-अठ कलशोें से अभिषेक।
रथयात्रा श्रीजी की निकली, हुए अचंभित सब ही देख।।
बाहुबली मंदिर प्रांगण में, ऋषभ जिनालय हित तत्काल।
शिलान्यास सम्पन्न किया श्री, पन्नालाल पापड़ीवाल।।१२७८।।
महावीर जी जन्मभूमि है, नालंदा श्री कुण्डलपुर।
श्री महावीर जयंति महोत्सव, गया मनाया हर्षित उर।।
झंडारोहण-प्रभात फेरी, धर्मसभा-रथयात्रा कार्य।
पंचामृत अभिषेक वीर का, सम्पन्ना जैसा अनिवार्य।।।१२७९।।
वीर ज्योति रथ हुआ प्रवर्तित, वीर जयंती दिवस महान्।
नालंदा का कुण्डलपुर ही, महावीर का जन्म स्थान।।
प्रचार करेगा नगर-ग्राम में, बतलायेगा सच्ची बात।
माताजी के सद्प्रयास से, मिली धर्म की यह सौगात।।१२८०।।
हस्तिनागपुर जम्बूद्वीप में, हुए आयोजित पंचकल्याण।
शुभ आशीष रहा माताजी, क्षुल्लकश्री का था सन्निधान।।
विद्यमान बीस तीर्थंकर, ऋषभदेव जिनमंदिर हेतु।
हुए पंचकल्याणक गजपुर, प्रद्युम्न जैन उत्साह समेत।।१२८१।।
अखिल विश्व के गणतंत्रों में, भारत का सर्वोपरि नाम।
प्रथम नागरिक राष्ट्रपति हैं, डॉक्टर ए.पी.जे.ए.कलाम।।
दर्शन करने आये माँ के, श्री पावापुर क्षेत्र अनन्य।
माताजी का शुभाशीष पा, किया स्वयं का जीवन धन्य।।१२८२।।
राजगृही-सुव्रतजिन मंदिर, शिलान्यास सम्पन्न हुआ।
रही प्रेरणा माताजी की, उनका ही सान्निध्य रहा।।
नंद्यावर्त महल कुण्डलपुर, प्रांगण में होते निर्माण।
आत्म साधना करतीं माता, रहीं वहीं पर विराजमान।।१२८३।।
धीरे-धीरे समय आ गया, वर्षाऋतु-सह चातुर्मास।
जन्मभूमि समिति अधिकारी, पहुँचे माँ के चरणों पास।।
वर्षावास करें स्थापित, हे माताजी! आप यहीं।
हम चातक हैं, आप मेघ हैं, हमें छोड़ ना जाएँ कहीं।।१२८४।।
परम पूज्यश्री माताजी ने, सब पूर्वापर किया विचार।
क्षेत्रोन्नति को ध्यान में रखकर, चातुर्मास किया स्वीकार।।
जन्मभूमि कुण्डलपुर समिति, स्वीकृति पाकर हर्षी उर।
तीर्थ पुराना श्री कुण्डलपुर, चमकेगा सूरज बनकर।।१२८५।।