Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

कुण्डलपुर (नालंदा) चातुर्मास-सन् २००४

October 4, 2014ज्ञानमती माताजीjambudweep

कुण्डलपुर (नालंदा) चातुर्मास-सन् २००४

(चतुर्थ_खण्ड)


समाहित विषयवस्तु

१. कुण्डलपुर का विकास और माताजी का प्रयास।

२. चातुर्मास की स्थापना।

३. त्रिकाल-चौबीसी विराजमान।

४.विश्वशांति महावीर विधान का आयोजन।

५. क्षुल्लिका श्रद्धामति का स्वर्गारोहण।

६. कुण्डलपुर द्वितीय महोत्सव का आयोजन।

७. शरदपूर्णिमा पर मेरी स्मृतियाँ एवं कुण्डलपुर अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन।

८. महावीर निर्वाण महोत्सव-पावापुरी में।

९. कुण्डलपुर में कलशारोहण एवं मानस्तंभ प्रतिष्ठा।

१०. चातुर्मास निष्ठापन एवं बनारस को गमन।

११. राजगृही-गुणावां में अनेक कार्यक्रम।

१२. वाराणसी में तृतीय सहस्राब्दि समारोह का उद्घाटन।

१३.भगवान महावीर हिन्दी-अंग्रेजी महावीर जैन शब्दकोश का विमोचन।

१४. सिंहपुरी (सारनाथ) में पंचकल्याणक।

१५. टिकैतनगर में पंचकल्याणक आदि।

१६. दीप प्रज्ज्वलन कर मुख्यमंत्री द्वारा पार्श्र्वनाथ वर्ष का शुभारंभ।

१७. अयोध्या में ऋषभ जयंति महोत्सव।

१८. टिकैतनगर में कलशारोहण एवं माताजी का नागरिक अभिनंदन।

१९. माताजी को भारतभूषण का अलंकरण।

२०. त्रिलोकपुर में महावीर जयंति।

२१. महमूदाबाद में ५०वाँ आर्यिकादीक्षा समारोह।

२२.अहिच्छत्र में भगवान पार्श्र्वनाथ का महामस्तकाभिषेक।

२३. मुरादाबाद में कीर्तिस्तंभ का शिलान्यास।

२४. हस्तिनापुर के लिए विहार – माताजी बीमार।।

२५. माताजी का स्वास्थ्य लाभ, भगवान शांतिनाथ का अभिषेक।

२६. श्रुतपंचमी पर्व मनाया गया।

काव्य पद

नंद्यावर्त महल कुण्डलपुर, महावीर का जन्मस्थान।

पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, निज पुरुषार्थ किया उत्थान।।

महावीर की गौरव-गरिमा, के अनुकूल बनाया क्षेत्र।

रोम-रोम लख हर्षित होता, हर्षित हो जाते हैं नेत्र।।१३०६।।

कुण्डलपुर का भव्य रूप जो, हमें दिखाई देता है।

कोना-कोना यात्रिजनों का, मन बरबस हर लेता है।।

रही प्रेरणा माताजी की, रवीन्द्र कुमार का रहा प्रयास।

अल्पकाल में हुआ क्षेत्र का, कई वर्षों सा श्रेष्ठ विकास।।१३०७।।

माताजी का चिंतन अद्भुत, महाविलक्षण शैली कार्य।

शुरू कार्य को नही छोड़तीं, पूरा ही करतीं अनिवार्य।।

जब तक पूरा एक न होता, हाथ न लेतीं दूजा काम।

पूरी शक्ति लगा देती हैं, रहा सफलता का यह राज।।१३०८।।

हस्तिनागपुर, क्षेत्र अयोध्या, प्रयागराज प्रत्यक्ष प्रमाण।

क्रमश:क्रमश: कदम बढ़ातीं, करतीं ठोस महत्तम काम।।

विकासशील क्षेत्र कुण्डलपुर, होता इसका और विकास।

कर स्वीकार निवेदन समिति, किया यहीं पर चातुर्मास।।१३०९।।

एक जुलाई, दो हजार चतु, माताजी ने चातुर्मास।

किया स्थापित संघ साथ में, प्रथम लक्ष्य रख आत्मविकास।।

मात्र प्रेरणा देती हैं माँ, या फिर देतीं आशीर्वाद।

पदाधिकारिगण पा जाते हैं, शुभाशीष से ऊर्जा खाद।।१३१०।।

हुई प्रतिष्ठित दो हजार त्रय, चौबीसी अतीत-वर्तमान।

दो जुलाई को हुर्इं विराजित, प्रथम-द्वितिय मंजिल में जान।।

पर्यूषण कुण्डलपुर आया, महाराष्ट्र मंडल ज्ञानमती।

विश्वशांति महावीर विधान को, भक्तिभाव से किया अती।।१३११।।

पूज्य क्षुल्लिका श्रद्धामति जी, शिष्या माता ज्ञानमती।

महामंत्र को जपते-जपते, गयीं पर्यूषण स्वर्गगति।।

द्वितीय महोत्सव श्री कुण्डलपुर, गया मनाया हर्ष उमंग।

झंडारोहण, दीपप्रज्ज्वलन, पुरस्कार संगोष्ठी संग।।१३१२।।

अट्ठाईस अक्टूबर शरद पूर्णिमा, माताजी का जन्मदिवस।

विनयांजलि अर्पण सह सबने, माताजी का गाया यश।।

आत्मकथा मेरी स्मृतियाँ, कुण्डलपुर अभिनंदन ग्रन्थ।

हुए विमोचित कहा सभी ने, हैं दोनों ही उत्तम ग्रंथ।।१३१३।।

आई अमावस कार्तिक कृष्णा, श्री महावीर दिवस निर्वाण।

द्वितिय वर्ष भी गया मनाया, पावापुर माँ के सन्निधान।।

नवनिर्मित महावीर जिनालय, किया गया कलशारोहण।

मानस्तंभ में हुई विराजित, आठ मूर्तियाँ द्विविधासन।।१३१४।।

कुण्डलपुर से वापस आकर, किया समापन चातुर्मास।

बाईस माह के अल्पकाल में, हुआ क्षेत्र पर्याप्त विकास।।

महावीर की जन्मभूमि से, पार्श्र्व-सुपारस जन्मस्थान।

माह नवम्बर में माताजी, किया बनारस को प्रस्थान।।१३१५।।

माताजी के सन्निधान में, सम्पन्ने बहु आयोजन।

राजगृही सुव्रत-नव मंदिर, किया गया कलशारोहण।।

मानस्तंभ की वेदी शुद्धि, लाल वर्ण प्रतिमा महावीर।

हुई उद्घाटित पंच फुट ऊँची, श्री विद्यालय में राजगीर।।१३१६।।

क्षेत्र गुणावां गौतम गणधर, निर्वाणस्थली कहलाती है।

उनकी श्वेत-पंचफुट-प्रतिमा, खड़ी गई पधराई है।।

तेईस दिसम्बर दो हजार चतु, नगर बनारस हुआ प्रवेश।

भेलूपुर जिनमंदिर ठहरीं, पार्श्र्वनाथ जन्में जिस देश।।१३१७।।

गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि, माताजी श्री ज्ञानमती।

पारसनाथ जन्मस्थली, उत्सव तृतिय सहस्राब्दी।।

मातृप्रेरणा-सह सन्निधि में, हुआ महोत्सव उद्घाटन।

छह जनवरी, पाँच दो सहस, प्रात: कर झंडा वंदन।।१३१८।।

सकल जैन समाज काशी ने, की प्रभावना शक्ति लगा।

रजत पालकी किये विराजित, श्रीजी का जुलूस निकला।।

बैण्ड-बग्घियाँ, हाथी-घोड़े, इंद्र-इंद्राणी अनेकानेक।

मैदागिन से भेलूपुर में, श्रीजी हुआ जन्म अभिषेक।।१३१९।।

मध्यकाल में संघ सन्निधि, हुई आयोजित धर्मसभा।

हिन्दी-इंग्लिश शब्दकोश की, इसमें बिखरी शुभ्रप्रभा।।

प्रज्ञाश्रमणी मात चंदना, ने इसका निर्माण किया।

पन्द्रह हजार जैन शब्दों को, माताजी विस्तार दिया।।१३२०।।

तीर्थंकर श्रेयांसनाथ की, जन्मभूमि है सिंहपुरी।

पंचकल्याणक हुए सन्निधि, परमपूज्य श्री माताजी।।

सारनाथ से चल प्रयाग हो, टिकैैतनगर में किया प्रवेश।

माताजी की जन्मभूमि यह, बाल्यकाल बीता इस देश।।१३२१।।

टिकैतनगर में नया जिनालय, गया बनाया है इस वर्ष।

सहस्रकूट-नूतन चौबीसी, पंचकल्याणक हुए सहर्ष।।

परमपूज्य श्री माताजी का, मंगलमय सान्निध्य रहा।

सामाजिक उत्साह अनोखा, शब्दों में नहिं जाए कहा।।१३२२।।

बालक-वृद्ध सभी ने मिलकर, सब प्रतिमाएँ रातों-रात।

जिनमंदिर में करीं विराजित, अल्पकाल हाथों ही हाथ।।

मूलनायक महावीर जिनेश्वर, का माना यह अतिशय काम।

चमत्कारी महावीर जिनालय, रखा गया तब सार्थक नाम।।१३२३।।

पूर्ण हुए निर्विघ्न रीति से, पंचकल्याणक कार्य सकल।

माताजी की मंगल सन्निधि, होते सब ही कार्य सफल।।

पार्श्र्वनाथ प्रतिमा के सम्मुख, शुभ दीप प्रज्ज्वलित किया।

यू.पी. मुखमंत्री यादव ने, पार्श्र्ववर्ष आरम्भ किया।।१३२४।।

कर विहार माताजी पहुँचीं, शाश्वत तीर्थ अयोध्या जी।

संत-महंत-नगरवासीजन, किया सु-स्वागत माताजी।।

ऋषभ जयंती की बेला में, हुआ महामस्तकाभिषेक।

रोम-रोम जन हर्ष मनाया, ऋषभ जिनेन्द्र प्रतिमा को देख।।१३२५।।

शाश्वत तीर्थ अयोध्या से चल, संघ टिकैतनगर आया।

नूतन-भव्य जिनालय ऊपर, केशरिया ध्वज लहराया।।

कलशारोहण हुआ साथ ही, माताजी पावन सन्निधान।

परम पूज्य श्री माताजी का, किया गया नागरिक सम्मान।।१३२६।।

शैशव में श्री मैनाबाई, निज परिवार रहीं भूषण।

बाल्यकाल में शिक्षा पाकर, बनीं नगर की आभूषण।।

व्रत धारण कर साध्वी पद से, हुआ सुशोभित धर्म-समाज।

सबने मिल दी माताजी को, भारतभूषण उपाधि आज।।१३२७।।

कार्यक्रम सम्पन्न अनंतर, माताजी का हुआ गमन।

अतिशय क्षेत्र श्रीत्रिलोकपुर, हुआ संघ का शुभागमन।।

श्री महावीर जयंति महोत्सव, गया मनाया सह-उल्लास।

वर्ष पंचाशत आर्यिका दीक्षा, मना नगर महमूदाबाद।।१३२८।।

तृतीय शताब्दी वर्ष महोत्सव, पार्श्र्वनाथ भगवान श्री।

के अंतर्गत अहिच्छत्र में, उत्सव की शोभा बिखरी।।

भव्य जिनालय तीस चौबीसी, पारस प्रतिमा अद्भुत एक।

नायक मूल तिखाल जिनेश्वर, हुआ महामस्तकाभिषेक।।१३२९।।

अहिच्छत्र में पार्श्र्वनाथ को, माताजी ने किया प्रणाम।

कर विहार संघ पधराया, नगर मुरादाबाद मुकाम।।

माताजी से प्राप्त प्रेरणा, कीर्तिस्तम्भ का शिलान्यास।

किया गया कॉलिज परिसर में, द्वारा सुरेशचंद्र जी खास।।१३३०।।

साधू एक न थल रुकते हैं, जैसे बहता सरिता जल।

नहीं किसी के रोके रुकता, कहता जाता है कल-कल।।

कर विहार माताजी पहुँचीं, शांतिनाथ के चरण कमल।

हर्ष मनाते लगा फूलकर, परिसर जम्बूद्वीप सकल।।१३३१।।

मई माह का तपता सूरज, भू पर बरसाता था आग।

पंथी-पंछी राह न चलते, कोई न करता घर का त्याग।।

ऐसे में विहार कर माता, बढ़ती जाती थीं सत्वर।

अत: स्वास्थ्य प्रतिकूल हो गया, माँ को लगा सताने ज्वर।।१३३२।।

लगातार दश-बीस दिनों में, ज्वर ने धरा रूप विकराल।

फलस्वरूप श्लथगात हो गया, रहा स्वस्थ पर आत्म मराल।।

अत: पूर्ण की सकल क्रियाएँ, सतत जागरूक रहकर।

हुई देश में चिन्ता सबको, माँ की रुग्ण दशा सुनकर।।।१३३३।।

किए जाप्य-विधान भक्तों ने, माता स्वास्थ्य सु-लाभ करें।

जब तक गंगा-यमुना बहती, तब तक जग कल्याण करें।।

मुनी-आर्यिका के संघों से, शुभ सूचना आई है।

माताजी के स्वास्थ्य लाभ की, हमने भावना भाई है।।१३३४।।

आयु कर्म यदि शेष जीव का, साथ पुण्य देता सहयोग।

तब तो वह पा जाता निश्चित, जीवन-स्वास्थ्य लाभ का योग।।

फलत: स्वस्थ हुर्इं माताजी, जैसे दीपक पाकर नेह।

आत्मबली ही जय पाते हैं, सहयोगी बन जाती देह।।१३३५।।

मंगलकारी शुभ दिन आया, पाँच जून, सन् पाँच रहा।

जब मुस्काकर माताजी ने, सबको शुभ आशीष कहा।।

भक्तों का मुर्झाया चेहरा, सुनकर खिलता कमल हुआ।

गिरि सुमेरु पर शांतिनाथ जिन, पंचामृत अभिषेक हुआ।।१३३६।।

ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी शुभ दिन, श्रुतपंचमी पर्व महान।

गया मनाया धूमधाम से, किए सरस्वती माँ गुणगान।।

पंचामृत अभिषेक हुआ माँ, हुई महापूजा सम्पन्न।

हे वाग्देवी! मुझ सेवक पर, कृपा करें, नित रहें प्रसन्न।।१३३७।।

Previous post कमल मंदिर, प्रीतविहार-दिल्ली चातुर्मास-सन् २०००! Next post प्रयाग-इलाहाबाद चातुर्मास-सन् २००२!
Privacy Policy