(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. चातुर्मास की स्थापना।
२. जम्बूद्वीप-शोधार्थियों के विचार अति सुंदर।
३. सामयिक सभी पर्वों का आयोजन।
४. ‘‘ज्ञानमती जी का साहित्यिक अवदान’’ पर विद्वत्संगोष्ठी।
५. क्षुल्लक मोतीसागर जी का आलेख सर्व प्रशंसित रहा।
६. विद्वानों के प्रश्न, माताजी के उत्तर।
७. माताजी द्वारा ध्यान साधना का प्रशिक्षण।
८. शांतिनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक।
९. माताजी का बहत्तरवां जन्मदिवस।
१०. तेरहद्वीप रचना निर्माण का शिलान्यास।
११. काकंदी तीर्थक्षेत्र की विकास योजना।
१२. माताजी का दीक्षा स्वर्ण जयंती महोत्सव अभूतपूर्व रहा।
१३. माताजी का विद्वानों के प्रति अपार वात्सल्य।
१४. डॉ.शेखरचंद ‘‘गणिनी ज्ञानमती पुरस्कार’’ से विभूषित
१५. चातुर्मास निष्ठापन एवं विहार।
१६. क्षेत्र गिरनार सुरक्षा की प्रेरणा।
१७. षट्खंडागम की १४वीं पुस्तक की टीका पूर्ण।
१८. श्रवणबेलगोल अभिषेक में अपने प्रतिनिधि भेजे।
१९. अयोध्या में ऋषभदेव जन्मोत्सव।
२०. प्रयाग में भगवान ऋषभदेव दीक्षाकल्याणक का आयोजन।
२१. कुण्डलपुर में महावीर जयंती का आयोजन।
२२. दीक्षा स्वर्ण जयंती में १२ भट्टारक पधारे।
२३. माताजी को ‘‘ऐतिहासिक आर्यिका’’ की उपाधि।
२४. आचार्य बाहुबलीसागर द्वारा नूतन पिच्छी तथा ‘‘ज्ञानचंद्रिका’’ की उपाधि प्रदान।
२५. अक्षय तृतीया, श्रुतपंचमी आदि पर्वों का आयोजन।
मानव जीवन एक रहँट है, सुख-दुख आते-जाते हैं।
जीवों की यदि आयु शेष हो, स्वास्थ्य लाभ पा जाते हैं।।
श्रीमाताजी रोग-मुक्त हो, हुर्इं समर्पित साध्वाचार।
वर्षाऋतु का हुआ आगमन, शुरू हो गये मेघ-मल्हार।।१३३८।।
चातुर्मास समय नियराया, दिल्ली दौड़ी आई है।
अवध-विहार सभी ने आकर, माँ को टेर लगाई है।।
चतुर्मास हो हस्तिनागपुर, हमको शुभ आशीष मिले।
माँ स्वीकृति पा, सकल जनों के, मानस-मुख अरविन्द खिले।।१३३९।।
आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को, पूज्य आर्यिका ज्ञानमती।
चातुर्मास किया स्थापित, त्रयतीर्थंकर जन्मथली।।
साथ आर्यिका अभयमती जी, तथा क्षुल्लिका शांतिमती।
प्रज्ञाश्रमणी मात चंदना, मोतीसागर क्षुल्लक जी।।१३४०।।
लोहा चुम्बक को पा करके, आकर्षित हो जाता है।
वैसे ही सन्तों के चरणों, भक्त भी खिंचता आता है।।
जम्बूद्वीप स्वर्ग धरती पर, फिर सन्तों का चातुर्मास।
उमड़ पड़े जत्थे के जत्थे, लेकर माँ दर्शन की प्यास।।१३४१।।
कुछ शोधार्थीजन विदेश से, आये माँ की करके याद।
नमन किया पावन चरणों में, पाया मंगल आशीर्वाद।।
जम्बूद्वीप की प्रतिकृति देखी, जिनायतनों के दर्शन कर।
बोले-धन्य-धन्य हो माता, सब रचनाएँ अति सुंदर।।१३४२।।
उनने देखा समझा आकर, जैन साधु आचार कठिन।
एक बार, दिन, नीरस भोजन, उसी समय जल करें ग्रहण।।
ज्ञान-ध्यान-तपलीन सर्वदा, विषयाशा से कोसों दूर।
हुए प्रभावित, साधू चर्या, मुश्किल चढ़ना पेड़ खजूर।।१३४३।।
परम पूज्य माताजी सन्निधि, हुए धार्मिक आयोजन।
पर्व अठाई, गुरू पूर्णिमा, श्री वीरसागर पूजन।।
महावीrर जिन कमल जिनालय, किया गया पावन अभिषेक।
शासन वीर जयंति महोत्सव, रोम-रोम हर्षे सब देख।।।१३४४।।
मुकुट सप्तमी, रक्षाबंधन, शांतिसिंधु की पुण्यतिथि।
पर्व पर्यूषण, रत्नमालिका, गये मनाये यथाविधि।।
जम्बूद्वीपी महामहोत्सव, पाँच वर्ष में आया है।
गिरि सुमेरु अभिषेक जिनेश्वर, करके सभी मनाया है।।१३४५।।
गणिनी ज्ञानमती जी द्वारा, रचा गया साहित्य महान।
संस्कृत-हिन्दी ग्रंथों द्वारा, दिया गया अनुपम अवदान।।
सफल रही विद्वत्संगोष्ठी, आये शतकाधिक विद्वान्।
सरस्वती अवतार हैं माता, कहकर किए सभी गुणगान।।१३४६।।
कल्पद्रुम मंडल विधान है, अनुपम रचना पूज्याश्री।
शोधपूर्ण आलेख लिखा था, मोतीसागर क्षुल्लक जी।।
सर्वमनीषी विद्वानों से, हुआ प्रशंसित करतल ध्वनि।
माताजी के जयकारों से, गूँज उठे अम्बर-अवनि।।१३४७।।
ज्ञान-पिपासू विद्वज्जन ने, माताजी से प्रश्न किए।
विदुषी परम पूज्य माताजी, सबको उत्तर तुरंत दिए।।
आगमसम्मत समाधान सुन, सबका हुआ प्रफुल्लित मन।
हाथ जोड़ माँ के चरणों में, विद्वत्-विदुषी किया नमन।।१३४८।।
लौकिक-धार्मिक सब कार्यों में, ध्यान महत्तम कारण है।
धर्मध्यान संसार जीव के, करता कर्मनिवारण है।।
परमपूज्य श्रीमाताजी ने, धर्मध्यान विधि सिखलाई।
तीन लोक में भ्रमण जीव का, होता अतिशय दुखदाई।।१३४९।।
शांति प्रदाता शांतिनाथ जिन, हुआ महामस्तक अभिषेक।
गिरि सुमेरु जिन कलशा ढारे, प्रकटा पुलक हर्ष अतिरेक।।
वर्ष बहत्तर जन्म जयंती, गई मनाई हर्ष-उमंग।
किए समर्पित पुष्प विनय के, पूजा-भक्ति-आरती संग।।१३५०।।
आस्था चैनल हुए प्रसारित, युगल कार्यक्रम युगल दिवस।
पुण्य कमाया दर्शन करके, माताजी का गाया यश।।
तेरहद्वीप जिनालय भीतर, तेरहद्वीप रचना निर्माण।
शिलान्यास सम्पन्न हुआ था, शरद पूर्णिमा दिवस महान।।१३५१।।
परमपूज्य श्री माताजी ने, छेड़ रखा उत्तम अभियान।
जन्मभूमियों का विकास हो, चौबिस तीर्थंकर भगवान।।
पुष्पदंत जिन जन्मभूमि है, काकंदी नामक स्थान।
मंदिर बनकर शीघ्र ही यहाँ, होंगे प्रभुवर पंचकल्याण।।१३५२।।
दीक्षा लेना कई जन्म के, रहा प्रबल पुरुषारथ फल।
संयम पोत करें जो यात्रा, वे ही पाते मोक्ष महल।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, हुए पूर्ण पंचाशत वर्ष।
संयम स्वर्ण जयंति मनाई, सबने भरके मन में हर्ष।।१३५३।।
मोक्ष परमपद को पाने का, दीक्षा लेना श्रेष्ठ कदम।
वीतराग पथ पथिक जनों की, दीक्षा जयंति मनाते हम।।
पद आर्यिका वर्ष पंचाशत, पूर्ण हुए माँ ज्ञानमती।
दीक्षा स्वर्ण जयंति महोत्सव, गया मनाया हर्ष अती।।१३५४।।
दीक्षाधारण अवधि संयमी, ज्यों ज्यों बढ़ती जाती है।
दीक्षित की गौरव-गरिमा भी, त्यों-त्यों बढ़ती जाती है।।
भोग विलासी, भौतिकवादी, इस युग का विस्मय यह खास।
गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि, ज्ञानमती के वर्ष पचास।।१३५५।।
संयम स्वर्ण जयंति महोत्सव, गया मनाया गजपुर में।
कई हजार जनता पधराई, हर्ष-प्रमोद लिए उर में।।
पैंतालिस शीर्षस्थ संस्थाओं, दीं प्रशस्ति सम्मान भरी।
कई ने कई उपाधी देकर, निज गौरव में वृद्धि करी।।१३५६।।
संयम स्वर्ण जयंति महोत्सव, गया मनाया पूरे वर्ष।
नगरों-गाँवों हुर्इं सभाएँ, माँ गुण गाकर माना हर्ष।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, जीवित रहें हजारों साल।
प्रभु प्रार्थना की भक्तों ने, चरण कमल किया नत भाल।।१३५७।।
भाग्यवान हम मानें खुद को, उनके पावन दर्श मिले।
शांत-सौम्य-समता-रविभा-से, भव्यों के हृद कमल खिले।।
हर मुख से ध्वनि निकल रही है, माताजी वंदामि तुम्हें।
भव-तम-भंजन-पदरज चंदन, शुभाशीष-सह मिले हमें।।१३५८।।
दीक्षा स्वर्ण जयंति महोत्सव, ऐतिहासिक प्रसंग रहा।
श्रद्धाविनय समर्पण करने, उमड़ा जन-सैलाब महा।।
कहा सभी ने हे माताजी!, कुल को आप पवित्र किया।
माँ कृतार्थता पायी तुमसे, भू को पुण्योपहार दिया।।१३५९।।
पूरे वर्णन की समर्थता, नहीं लेखनी पा सकती।
गौरव गरिमा की समग्रता, नहीं ग्रंथ में आ सकती।।
लेकिन इतना हर मुख कहता, रहा असाधारण सब कुछ।
हुआ न होगा ऐसा जिसमें, सबने पाया हो सब कुछ।।१३६०।।
विद्वानों प्रति माताजी मन, वात्सल्य का सागर है।
पुरस्कार उनको देकर के, करतीं उसे उजागर हैं।।
उत्तम कार्य प्रशंसा करतीं, अति उत्साह बढ़ाती हैं।
अपने मंगल शुभाशीष से, उन्नति शिखर चढ़ाती हैं।।१३६१।।
अहमदाबाद निवास करते हैं, श्री डॉक्टर शेखरचंद।
जैनधर्म करते प्रचार हैं, अखिलविश्व, उत्साह अमंद।।
रहता अतिशय योग आपका, जो गतिविधि करता संस्थान।
दो हजार पाँच का पाया, उनने ज्ञानमती सम्मान।।१३६२।।
विद्वज्जन होते हैं दीपक, जिनवाणी की ज्योति जला।
नगर-ग्राम करते प्रकाश हैं, जगज्जनों का करें भला।।
ऐसे पाँच शारदा-सुत को, माँ देतीं प्रतिवर्ष इनाम।
माणिक-लता-पवन-सुलोचना, उदयभान पाँच के नाम।।१३६३।।
समय बीतते देर न लगती, आई अमावस कार्तिक मास।
सकल संघ ने क्रिया करके, किया निष्ठापित चातुर्मास।।
महावीर के श्रीचरणों में, अर्पित किया मोदक निर्वाण।
की अर्चना मात शारदा, गौतम गणधर केवलज्ञान।।१३६४।।
सब क्षेत्रों में क्षेत्र मनोरम, श्री निर्वाण क्षेत्र गिरनार।
किन्तु ग्रहण है लगा चंद्र को, छिना जैनियों का अधिकार।।
माताजी की रही प्रेरणा, चेतो, जागो क्षेत्र गहो।
क्षेत्र सुरक्षा प्रथम जरूरी, प्राण सुरक्षा भले न हो।।१३६५।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती जी, मात शारदा की अवतार।
अभीक्ष्ण ज्ञान साधिका साध्वी, माता सरस्वती भंडार।।
षट्खंडागम भाग चतुर्दश, टीका रचकर दी सौगात।
कार्य महत्तम-अतिशय उत्तम, बड़े हर्ष-गौरव की बात।।१३६६।।
माताजी के मन लहराता, सकल सब्र औदार्य अपार।
छोटे-बड़े सभी क्षेत्रों की, होवे उन्नति सभी प्रकार।।
श्रवणबेलगुल बाहुबली का, सम्पन्ना अभिषेक महान।
माताजी ने भेजे प्रतिनिधि, दीदी-ब्रह्मचारी-विद्वान्।।१३६७।।
ऋषभदेव का जन्म महोत्सव, हुआ अयोध्या आयोजन।
जिन अभिषेक-विधान-आरती, प्रश्नमंच-शास्त्र प्रवचन।।
ऋषभदेव दीक्षा कल्याणक, प्रयागराज सम्पन्न हुआ।
जैनाजैन सकल जनता ने, पूर्ण धर्म का लाभ लिया।।१३६८।।
कुण्डलपुर बिहार-नालंदा, जन्मभूमि महावीर प्रभो।
जन्मजयंती गई मनाई, चैत्र शुक्ल तेरस तिथि को।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, वर्ष पंचाशत पूर्ण हुए।
संयम स्वर्ण जयंति मनाने, जन मन भावातीर्ण हुए।।१३६९।।
दक्षिण भारत में चौदह मठ, रहते उनमें भट्टारक।
द्वादश उत्सव में पधराये, माँ गुणगान किया अनथक।।
ऐतिहासिक आर्यिका उपाधि, माताजी को करी प्रदान।
जम्बूद्वीप-जिनालय देखे, बोले माँ के कार्य महान।।१३७०।।
संयम स्वर्ण महोत्सव आये, बाहुबलीसागर गुणखान।
शुभाशीष-सह नूतन पिच्छी, माताजी को करी प्रदान।।
विदुषी परम, वाग्देवी हैं, श्रीमाताजी ज्ञानमती।
ज्ञानचंद्रिका की उपाधि से, हुई अलंकृत पूज्याश्री।।१३७१।।
अक्षय तृतिया पर्व महत्तम, ऋषभदेव जिन प्रथमाहार
। गया मनाया हस्तिनागपुर, माता सन्निधि हर्ष अपार।।
शांतिनाथ कल्याणक दिवसे, किया गया जिनवर अभिषेक।
निर्वाणलाडू हुआ समर्पित, गिरि कैलाश प्रतिकृति देख।।१३७२।।
माँ जिनवाणी भक्ति दिवस है, श्रुतपंचमी पर्व महान।
गया मनाया हार्दिकता से, पूजा-आरति-किए विधान।।
इंद्रध्वज मंडल विधान भी, सोत्साह सम्पन्न हुआ।
आदिनाथ लघु पंचकल्याणक, माता सन्निधि पूर्ण हुआ।।१३७३।।