-स्थापना (स्रग्विणी छंद)-
मुक्तिपथ में सदा सत्य की जीत है।
साधुगण गाते सब सत्य के गीत हैं।।
स्वात्महित हेतु है सत्य की अर्चना।
मैं करूँ स्थापना धर्म की वंदना।।
ॐ ह्रीं उत्तम सत्य धर्म! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं उत्तम सत्य धर्म! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं उत्तम सत्य धर्म! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक (स्रग्विणी छंद)-
नीर गंगा नदी का भरूँ पात्र में।
तापत्रय नाश हेतू करूँ धार मैं।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।१।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुद्ध कर्पूर मिश्रित घिसा गंध है।
गंध चर्चन करूँ नाथ पद पद्म में।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।२।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ्र तंदुल अखंडित लिया पुंज मैं।
सौख्य अक्षय मिले मैं जजूँ पुंज ले।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।३।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
कुंद बेला चमेली कुसुम ले लिए।
आत्मसुख हेतु प्रभु पाद में अर्पिये।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।४।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
रस भरे मिष्ट पकवान हैं थाल में।
रोग क्षुध नाश हित अर्पू नत भाल मैं।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।५।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
थाल घृत दीप का ले करूँ आरती।
मोह नश जाय मन में जगे भारती।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।६।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूप ले चन्दनादि की दहन मैं करूँ।
कर्म नश जाँय ऐसे कष्ट सहन मैं करूँ।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।७।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सेव अंगूर बादाम फल थाल ले।
मोक्षफल हेतु अर्पूं विनय भाल मैं।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।८।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
नीर गंधादि अष्टद्रव्य अर्पण करूँ।
‘चंदनामती’ अर्घ्य को समर्पण करूँ।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।९।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतिधारा करूँ नीर ले भृंग में।
आत्मशांति और सर्वशांति हो विश्व में।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
नाथ पुष्पांजली मैं करूँ पुष्प ले।
ज्ञान का पुष्प खिल जाय अंतरंग में।।
सत्य उत्तम धरम की करूँ अर्चना।
सत्य व्रत पालकर दुख लहूँ रंच ना।।११।।
दिव्य पुष्पाञ्जलि:।
-सोरठा-
सत्यमेव जयते, सूत्र प्रसिद्ध अनादि से।
उसके पालन हेतु, पुष्पाञ्जलि कर पूजते।।
इति मण्डलस्योपरि चतुर्थवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
तर्ज-यदि भला किसी का कर न सको…………….
भगवान! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
जब क्रोध मुझे आ जाता है, कुछ भान न पाप का हो पाता।
मुख से कितने ही झूठ वचन, निकले उनमें मन खो जाता।।
उस सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।१।।
ॐ ह्रीं क्रोधातिचाररहित सत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
धन आदि लोभ में आ करके, कुछ वचन असत्य निकल जाते।
झूठे वचनों के कारण कितने, अशुभ कर्म हैं बंध जाते।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।२।।
ॐ ह्रीं लोभातिचाररहित सत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
परिजन पुरजन के भय से भी, यदि झूठ वचन बोले मैंने।
उनका कर पश्चाताप आज, वच सत्य का नियम लिया मैंने।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।३।।
ॐ ह्रीं भयातिचाररहित सत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
हँस हँसकर वचनालापों में, कितने असत्य बोले जाते।
पर उनके कटु फल पा करके, कष्टों से रोम सिहर जाते।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।४।।
ॐ ह्रीं हास्यातिचाररहित सत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
जिन आज्ञा में विश्वास न कर, कितने ही झूठ वचन बोले।
जग को ठगने की अभिलाषा से, वचन नहीं अपने तोले।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।५।।
ॐ ह्रीं जिनाज्ञोलंघनातिचाररहित सत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
इस उत्तम सत्य धर्म के हैं, दश भेद कहे जिन आगम में।
उनमें से प्रथम सत्य जनपद, जो बोला जाता जनपद में।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।६।।
ॐ ह्रीं जनपदसत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
रूढ़ीवश जो भी वचन बहुत से, प्राणीजन बोला करते।
उसी बात को संवृत सत्य, नाम से जिनआगम कहते।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।७।।
ॐ ह्रीं संवृत सत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
चित्र काष्ठ आदिक में जो, आकार कल्पना की जाती।
वह स्थापना सत्य नाम की, ही भाषा मानी जाती।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।८।।
ॐ ह्रीं स्थापनासत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
जिसका जो भी नाम जगत में, है प्रसिद्धि को प्राप्त बहुत।
उसी नाम को नामसत्य से, जाना जाता है बहुश्रुत।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।९।।
ॐ ह्रीं नामसत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
गोरा काला पीला जिसका, जो भी रंग अंग में है।
रूपसत्य उसको जानो जो, जिनवाणी के कथन से है।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।१०।।
ॐ ह्रीं रूपसत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
किसी वस्तु को किसी अपेक्षा, से छोटी या बड़ी कहें।
उसी कथन का नाम प्रतीतिसत्य गौण या मुख्य कहे।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।११।।
ॐ ह्रीं प्रतीतिसत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
नैगमनय से राजा का सुत, भी राजा कहलाता है।
व्यवहारसत्य के नाम से ही, इस बात को जाना जाता है।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।१२।।
ॐ ह्रीं व्यवहारसत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
इन्द्र में ऐसी शक्ति है तीनों, लोक पलट कर रख देवे।
शक्ति अपेक्षा इसको संभावना सत्य सब कह देवें।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।१३।।
ॐ ह्रीं संभावनासत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
जीव अनादि अनंत किन्तु हम, दृष्टि से उसे न देख सकें।
आगम द्वारा उसे जानकर, भावसत्य कह जान सकें।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।१४।।
ॐ ह्रीं भावसत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भगवान्! मुझे वह शक्ती दो, मैं सत्यधर्म पालन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।
किसी वस्तु की उपमा देकर, वस्तू की पहचान करें।
उपमा सत्य उसे कहकर, परवस्तू का सम्मान करें।।
अब सत्य धर्म को अर्घ्य चढ़ा, मैं निज मन को पावन कर लूँ।
यदि सत्य महाव्रत पल न सके, तो अणुव्रत ही पालन कर लूँ।।१५।।
ॐ ह्रीं उपमासत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य-
बहुत भेदयुत सत्यधर्म को यह पूर्णार्घ्य समर्पण है।
मन वच तन की शुद्धि सहित इस सत्य धर्म को प्रणमन है।।
हे जिनवर! उत्तम सत्य धरम मेरे मन में भी प्रगटित हो।
बस इसीलिए पूजन करने को आया मन में प्रमुदित हो।।१।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय नम:।
तर्ज-झिलमिल सितारों का……
सत्य धरम आराधन होगा, पापों का प्रक्षालन होगा।
इसका पालन वचन सिद्धि का, साधन होगा।। सत्य धरम.।।टेक.।।
जाने कितने झूठ भी मैंने, जनम-जनम में बोले हैं।
स्वार्थसिद्धि के कारण अपने, वचन न मैंने तोले हैं।।
अब उन सबका क्षालन होगा, सत्य धरम जब पालन होगा।।सत्य.।।१।।
बहुत से विषकण मिलकर जैसे, अमृत नहिं बन सकते हैं।
कई झूठ मिल कर वैसे ही, सत्य नहीं बन सकते हैं।।
धर्म सदा अमृत सम होगा, सत्य धरम जब पालन होगा।। सत्य.।।२।।
साधू उत्तम सत्य वचन को, पूर्णरूप से धरते हैं।
श्रावक भी सच्चाई का, आंशिक पालन कर सकते हैं।।
अत: झूठ वच टालन होगा, सत्य धरम जब पालन होगा।। सत्य.।।३।।
राजा वसु ने झूठ बोलकर, अधोगती को प्राप्त किया।
सत्य बोलने वालों ने सर्वदा ऊर्ध्वगति प्राप्त किया।।
धर्म सदा मन भावन होगा, सत्य धरम जब पालन होगा।। सत्य.।।४।।
अष्टद्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य समर्पण करते हैं।
पूजन से ‘चंदनामती’ सब, इच्छित फल को वरते हैं।
पूज्य परम पद पावन होगा, सत्य धरम जब पालन होगा।।सत्य.।।५।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मांगाय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-शेर छंद-
जो भव्यजन दशधर्म की, आराधना करें।
निज मन में धर्म धार वे, शिवसाधना करें।।
इस धर्म कल्पवृक्ष को, धारण जो करेंगे।
वे ‘‘चंदनामती’’ पुन:, भव में न भ्रमेंगे।।
।। इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि: ।।