भक्तामर मण्डल विधान की, आरति करलो आज।
आदि प्रभो के दर्शन से ही, बनते सारे काज।।
ओ जिनवर! हम सब उतारें तेरी आरती………….
कृतयुग के हे प्रथम जिनेश्वर, जग के तुम निर्माता।
अषि मषि आदिक क्रिया बताकर, बन गए आदि विधाता।।
जिनवर! हम सब उतारें तेरी आरती……….।।१।।
कोड़ाकोड़ी वर्ष बाद भी, तुम्हें सभी ध्याते हैं।
मनवचतन से पूजा करके, इच्छित फल पाते हैं।।
जिनवर! हम सब उतारें तेरी आरती……….।।२।।
एक समयश्री मानतुंग-मुनि पर उपसर्ग था आया।
तुम भक्ती से ताले टूटे, वैâसी तेरी माया।।
जिनवर! हम सब उतारें तेरी आरती……….।।३।।
भोजराज ने यह अतिशय लख, मुनि को शीश नमाया।
मुनिवर ने भक्तामर का, संक्षिप्त सार बतलाया।।
जिनवर! हम सब उतारें तेरी आरती……….।।४।।
वीतराग प्रभु का आराधन, क्रम से मुक्ति दिलाता।
जग में भी ‘चन्दनामती’ यह, सर्वसौख्य दिलवाता।।
जिनवर! हम सब उतारें तेरी आरती……….।।५।।