(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. चातुर्मास की स्थापना।
२. धर्मसभा का आयोजन-माताजी के शुभाशीर्वचन।
३. चातुर्मास क्या है?
४. सामयिक पर्वों का आयोजन।
५. पर्यूषण पर्व का आगमन-अनेक आयोजन।
६. शरदपूर्णिमा पर जन्ममहोत्सव।
७. विद्वानों को पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
८. माधोराजपुरा में ज्ञानमती दीक्षातीर्थ का निर्माण।
९. चंद्रप्रभ-पार्श्र्वनाथ का जन्मदिवस मनाया गया।
१०. अहिच्छत्र में सहस्राब्दि समारोह हेतु संकल्पदीप प्रज्ज्वलन।
११. यह महोत्सव २००७ में मनाया जायेगा।
१२. ज्ञान-ध्यान शिविर का आयोजन।
नहीं समय पर वश किसी का, रोके किसी के रुकता ना।
पंख लगाकर उड़ जाता है, कोई पकड़ है पाता ना।।
दो हजार पाँच सन् बीता, छटवें की आ गई जुलाई।
चातुर्मास काल ने आकर, निज उपस्थिति दर्ज कराई।।१३७४।।
दिल्ली-महाराष्ट्र-ग्वालियर, मेरठ से पधराये जन।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती के, श्रीचरणों में किया नमन।।
हे पूज्याश्री! हम चातक हैं, आप मेघ जलधारी हैं।
वृष्टि-वास यहीं पर होवे, सविनय अर्ज हमारी है।।१३७५।।
श्रीफल अर्पित किए भक्तजन, प्रणति-निवेदन बारम्बार।
करुणाकलित हृदय पूज्याश्री, लख औचित्य किया स्वीकार।।
जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में, हुआ स्थापित चातुर्मास।
माताजी के जयकारों से, गूँजे धरती औ आकाश।।१३७६।।
वर्षायोग हुआ स्थापित, हुआ सभा का आयोजन।
माताजी के पद-प्रक्षालन, तथा पिच्छिका परिर्वतन।।
हुई आरती भक्ति-भाव से, फिर पूज्याश्री उद्बोधन।
क्या है वर्षायोग, क्या करें, क्या आचरण, क्या भोजन।।१३७७।।
जीवन तो है एक यात्रा, यात्रा होती कई प्रकार।
प्रमुख भेद उसके दो होते, आत्मरमण औ बाह्याचार।।
आत्म साधना इच्छुक साधक, बाहर से रुक जाते हैं।
और भीतरी यात्रा करने, आतम में रच जाते हैं।।१३७८।।
एक स्थल पर ठहरें साधक, करते पाप कर्म का नाश।
स्वाध्याय-साधना द्वारा, नाम इसी का चातुर्मास।।
वर्षाऋतु आने के कारण, आते यात्रा कई व्यवधान।
उफनाने लगतीं सरिताएँ, सूक्ष्मजीव उत्पत्ति महान।।१३७९।।
धर्म अहिंसा का आराधन, हो ना पाता ठीक तरह।
अत: जीव रक्षा को लेकर, रुकते साधक एक जगह।।
जीव दया से भर जाता है, उनका करुणा कलित हृदय।
रोक यात्रा जगजीवों को, कर देते हैं वे निर्भय।।१३८०।।
यथा बाँध से बँधती सरिता, आगे बढ़ ना पाती है।
लेकिन ऊर्ध्र्वमुखी हो जाती, यात्रा रुक ना पाती है।।
बस वैसे ही यद्यपि साधक, रुक जाता है बाहर से।
किन्तु उतर जाता है गहरे, भरता रहता भीतर से।।१३८१।।
ऋषि औ कृषि दोनों कार्यों को, वर्षा ऋतु सर्वोत्तम है।
यदि चूके तो उपज-धर्म की, होती हानि महत्तम है।।
अत: कृषक वर्षा से पहले, कर लेता तैयारी सब।
साधु साधना हितकर स्थल, वर्षावास बनाता तब।।१३८२।।
श्रावक को भी उचित यही है, करे मानसिक तैयारी।
अवसर लाये साधु समागम, महकाए जीवन क्यारी।।
तज प्रमाद, आचरण सँभाले, जिनवाणी मन धरे विमल।
प्राप्त करे परिणाम भद्रता, वर्षावास रहा यह फल।।१३८३।।
इधर प्रकृति ने झड़ी लगाई, वर्षा में जल बरसाकर।
होने लगे इधर आयोजन, धर्म पूर्ण अतिशय सुंदर।।
शासन वीर जयंति मनाई, उत्सव पार्श्र्वनाथ निर्वाण।
रक्षाबंधन पर्व भी मना, माताजी के संघ सन्निधान।।१३८४।।
पर्व एक पहलू अनेक हैं, धर्म-समाज से जुड़ा विशेष।
धर्म और धर्मायतनों की, रक्षा का देता संदेश।।
भाई द्वारा बहन की रक्षा, वीरों द्वारा निर्बल जन।
राष्ट्र-धर्म को अर्पण कर दें, अपना तन-मन-धन-जीवन।।१३८५।।
कदम समय के बढ़ते-बढ़ते, दशलक्षण के आये दिन।
जम्बूद्वीप मंडल विधान का, हुआ सुष्ठुतम आयोजन।।
गणिनी ज्ञानमती भक्तमण्डल, महाराष्ट्र से आया था।
राजकुमार औ शकुन्तला ने, इंद्र-शची पद पाया था।।१३८६।।
प्रातकाल से मध्यरात्रि तक, होते रहते आयोजन।
ध्यान-अभिषेक-अर्चना जिनवर, तत्त्वार्थसूत्र उत्तम प्रवचन।
सायंकाल आरती होती, दश धर्मों पर प्रवचन भी।
प्रश्नमंच से ज्ञानार्जन का, पाते थे उपहार सभी।।१३८७।।
माह अक्टूबर सब में उत्तम, सर्व सुखाकर चंद्रस्वरूप।
इसी माह पूनम को जन्मीं, ज्ञानमती जी मैनारूप।।
जन्ममहोत्सव का आयोजन, तीन दिनों का रखा गया।
अंतिम दिन आस्था चैनल पर, पूर्ण प्रसारण किया गया।।१३८८।।
प्रज्ञाश्रमणी पूज्य आर्यिका, श्री चंदना माताजी।
विद्वानों के प्रति रखती हैं, वत्सलता का भाव अती।।
इनसे प्राप्त प्रेरणा द्वारा, श्री त्रिलोक शोध संस्थान।
एक लक्ष के पुरस्कार से, करेगा सम्मानित विद्वान्।।१३८९।।
पुरस्कार प्रति पाँच वर्ष में, एक विद्वान् ही पायेगा।
जैन साहित्य संस्कृति क्षेत्र में, जो ख्याति विशेष को पायेगा।।
गणिनी आर्यिका ज्ञानमती जी, पुरस्कार है इसका नाम।
होगा निश्चित भाग्यवान वह, जो पायेगा यह सम्मान।।१३९०।।
सन् पिंचानवै में था पाया, डॉक्टर श्री अनुपम इंदौर।
शिवचरणलाल जी मैनपुरी का, दो हजार में आया दौर।।
दो हजार पाँच में मिला, शेखरचंद जी अहमदाबाद।
हुआ वार्षिक, छह में पाया, श्री प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश।।१३९१।।
अन्य-अन्य पुरस्कारों द्वारा, विद्वज्जन पाया सम्मान।
कुण्डलपुर से हुआ अलंकृत, भागचंद भागेन्दु नाम।।
जम्बूद्वीप से डी.ए. पाटिल, नंद्यावर्त से सुशील-मैनपुरी।
रत्नमती शैलेष कापड़िया, छोटेलाल से दिलीप-जयपुरी।।१३९२।।
विविध धार्मिक कार्यकलापों, सह-सम्पन्ना चातुर्मास।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि, हुआ समापन सह विधि खास।।
निर्वाणोत्सव महावीर का, गया मनाया यथाविधि।
निर्वाणलाडू किये समर्पित, सबने मिल माता सन्निधि।।१३९३।।
सन् छप्पन में माताजी ने, ग्रही आर्यिका दीक्षा थी।
माधोराजपुरा नगरी में, वीरसागर आचार्य श्री।।
चंदनामती जी प्राप्त प्रेरणा, भाक्तिक जनता उक्त नगर।
दीक्षातीर्थ श्री ज्ञानमती का, हुई बनाने को तत्पर।।१३९४।।
भूमि प्राप्त कर हेतु वेदिका, शिलान्यास भी किया गया।
क्षुल्लक श्री मोतीसागर ने, आयोजन सान्निध्य दिया।।
विराजमान होगा वेदी पर, पन्द्रह फुट बिम्ब पारसनाथ।
चौबीसी स्थापित होंगे, पंचकल्याणक उत्सव साथ।।१३९५।।
पौषकृष्ण एकादशि आयी, पार्श्र्वनाथ का जन्म दिवस।
जन्म लिया था पूज्यश्री ने, पूरब तीन हजार बरस।।
नगर बनारस अश्वसेन पितु, वामादेवी जी थीं मात।
हस्तिनागपुर मना महोत्सव, हर्ष और उल्लास के साथ।।१३९६।।
तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभ का, जन्म हुआ था इस ही दिन।
जन्म और दीक्षा कल्याणक, हुए उभय के आयोजन।।
चंद्रप्रभ-श्रीपारसजिन को, ऐरावत पर बैठाया।
धूमधाम से यात्रा निकली, सोत्साह प्रभु यश गाया।।१३९७।।
सहस अठोत्तर कलशों द्वारा, गिरि सुमेरु अभिषेक हुआ।
पार्श्र्वनाथ मंडल विधान का, आयोजन मध्यान्ह किया।।
सर्वार्थसिद्धी दिव्य महल है, धातुविनिर्मित पारसनाथ।
हुआ उद्घाटित नवखंडों का, विजय-नितिन मंत्रों के साथ।।१३९८।।
सब तीर्थों में अनुपम सुंदर, तीर्थक्षेत्र अहिच्छत्र सुनाम।
रुहेल खण्ड पंचाल देश में, स्थित जैन संस्कृति धाम।।
उत्तरप्रदेश के जिला बरेली, में स्थित आँवला तहसील।
स्टेशन से रामनगर किला, रहता बस एकादश मील।।१३९९।।
रामनगर ही अहिच्छत्र है, पार्श्र्वनाथ जिन तप स्थान।
यहीं किया उपसर्ग कमठ ने, प्रभु को उपजा केवलज्ञान।।
नाग-युगल धरणेन्द्र-पद्मावति, यहीं प्रभू पर ताना छत्र।
इसीलिए यह थल कहलाता, तीर्थस्थान श्रीअहिच्छत्र।।१४००।।
उस ही थल पर बना जिनालय, अतिशय शोभा देता है।
पार्श्र्वनाथ का बिम्ब मनोहर, सबका मन हर लेता है।।
देवों रचित वेदिका सुंदर, उसमें बना एक आला।
उस पर सात फणीं प्रभु प्रतिमा, पन्ना रत्न, वर्ण काला।।१४०१।।
मन में कोइ मनौती लेकर, जो प्रभु चरणों आता है।
अल्पकाल में ही वह निश्चित, शत प्रतिशत फल पाता है।।
प्रतिमा जी प्राचीन-अतिशयी, वर्ष व्यतीते तीन हजार।
महामहोत्सव सहस्राब्दि हित, हुए संकल्पित दीप प्रजार।।१४०२।।
पौषकृष्ण एकादशि शुभ दिन, दो हजार छह अंतिम माह।
पारसनाथ जयंती शुभ दिन, करी प्रतिज्ञा सह-उत्०साह।।
बंगाली स्वीट्स नई दिल्ली के, महावीर प्रसाद जी संघपति।
संकल्पदीप का किया प्रज्ज्वलन, मन में धारे हर्ष अति।।१४०३।।
क्षुल्लक श्री समर्पणसागर, ब्रह्मचारी रवीन्द्र कुमार।
क्षेत्र विकास संकल्पित होकर, प्रकट किए अपने उद्गार।।
श्री क्षुल्लक मोतीसागर जी, पीठाधीश हस्तिनापुर।
सन्निधान दिया मंगलमय, अमित प्रमोद धार कर उर।।१४०४।।
दो हजार सात सन् भीतर, मस्तकाभिषेक श्री पारसनाथ।
विश्वस्तर होगा आयोजित, गणिनी क्षुल्लक सन्निधि साथ।।
ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्र कुमारजी, कर्मयोगी, व्यक्तित्व धनी।
राष्ट्रीय अध्यक्ष रहेंगे, महामहोत्सव आगामी।।१४०५।।
परम पूज्य माँ ज्ञानमती जी, ज्ञान-ध्यान अर्पित साध्वी।
एतदर्थ आयोजित करतीं, शिविर प्रशिक्षण इत्यादि।।
पच्चीस दिसम्बर दो हजार छह, रखा शिविर सत दिनी एक।
ज्ञान-ध्यान उत्तम उपलब्धि, शिविरार्थी पाई प्रत्येक।।१४०६।।
पंचाशत बालक थे आये, प्रौढ़ वर्ग भी आया था।
माताजी ने तीन लोक का, सबको ध्यान सिखाया था।।
ॐ ह्रीं अर्हं असि-आ-उ-सा, का भी करते ध्यान तभी।
प्रतिदिन प्रात: सात बजे पर, जुड़ते थे शिविरार्थी सभी।।१४०७।।
अतिशय विदुषी प्रज्ञाश्रमणी, पूज्य चंदना माताजी।
द्रव्य संग्रह अध्यापित करतीं, काल दोपहर मोद मती।।
नेमिचंद्र आचार्यश्री की, ग्रंथराज यह लघु कृति।
षड्द्रव्यों का भरे खजाना, वितरित करती ज्ञान निधि।।१४०८।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती की, कृतियाँ सुंदर बालविकास।
क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी, संध्या करते ज्ञान-प्रकाश।।
भजन-आरती, प्रतिदिन सायं, करते शिविरार्थी मिलकर।
सिद्धि विधान से किया समापन, नरेशचंद्र विद्वान् प्रवर।।१४०९।।
सद् प्रयास जो भी हम करते, उपलब्धी देकर जाता।
ज्ञान-ध्यान अनुशासित जीवन, शिविरार्थी निश्चित पाता।।
दो हजार छह पूर्ण हुआ सन्, अब हम लेते अल्प विराम।
गणिनी आर्यिका ज्ञानमती के, पद पंकज में सहस प्रणाम।।१४१०।।