मानव व पशु एक दूसरे पर आश्रित अथवा एक दूसरे के पूरक हैं । मानव यदि एक पशु को पालता है तो वह पशु उसके सारे परिवार को पालता है व उसकी अनेकों सेवाएं करता है । तांगेवाला एक घोड़े के सहारे अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण कर लेता है । बैलगाड़ी वाला बैल के सहारे से ही परिवार पालता है । अनेकों व्यक्ति बन्दरों, रीछो आदि को नचाकर अपनी रोजी रोटी कमाते हैं और अपनी पूरी उम्र इन पशुओं के सहारे व्यतीत कर लेते हैं । राजस्थान के गडरियों के बारे में लोकोक्ति हैं कि कहने को ये लोग भेड़ें पालते हैं वरना तो भेड़ें ही इनको पालती हैं क्योंकि उनसे प्राप्त दूध, घी, ऊन आदि के व्यापार से ही इनका काम चलता है । भेड़ के दूध को तो विशेषज्ञों ने फेफड़े के वन्शानुगत रोगियों तक के लिए लाभप्रद पाया है ।
अहिंसा सन्देश, जुलाई ८९ रांची भूतपूर्व कृषि मंत्री श्री बूटासिंह ने संसद में बताया था कि ” भारत के अधिकृत बूचड़खानो में 20 लाख पशु प्रतिवर्ष काटे जाते हैं अन्य अनधिकृत बूचड़खानो में काटे जाने वाले पशुओं की संख्या इसके अतिरिक्त है । ” 20 लाख पशुओं को प्रतिवर्ष कत्ल करने का अर्थ प्रति वर्ष एक करोड़ टन गोबर व मूत्र अर्थात् करीब 2 करोड़ टन उस प्राकृतिक खाद के उत्पादन को खोना है जिसके उत्पादन में कोई पैसा नहीं लगाना पड़ता और जो मुफ्त प्राप्त हो जाती हैं । श्री बूटासिंह के अनुसार अनाज की बढ़ती कीमतों का मुख्य कारण रासायनिक खाद का महंगा होना है Fertiliser is the costliest input यदि रासायनिक खाद की जगह गोबर की मुफ्त प्राप्त होने वाली खाद प्रयोग में लाई जाए तो अनाज के दाम काफी कम हो जाएंगे और राष्ट्र को खाद उद्योग को प्रति वर्ष जो भारी अनुदान (huge Subsidy) देना पड़ता है वह भी बचेगा । इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद पर व्यय होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत व खाद उद्योगों पर लगने वाले भारी धन (Capital invested in fertiliser projects) को भी अन्य कार्यों पर लगाया जा सकेगा ।
एक गाय कितने मनुष्यों को आहार देती है, इसका अनुमान लगाना कठिन नही है । जरा देखें यदि एक गाय औसत 10 किलो दूध प्रतिदिन के हिसाब से वर्ष में औसत 10 महीने तक दूध देती है तो वह एक वर्ष मे 3000 कि॰ग्रा. दूध देकर करीब 6000 व्यक्तियों को एक बार तृप्त कर सकती है । यदि वह औसत 15 वर्ष तक दूध दे तो एक गाय अपनी कुल उस में नब्बे हजार व्यक्तियो को एक बार तृप्त कर सकती है किन्तु यदि उसकी हत्या कर उसके मांस का आहार किया जाए तो वह एक हजार व्यक्तियों को भी एक बार तृप्त नहीं कर सकेगा । यही बात बकरी आदि के साथ भी है । इसी प्रकार एक बैल अपने जीवन काल में कम से कम 40000 कि॰ग्रा. अन्न उत्पन्न कर करीब साठ हजार व्यक्तियों को एक बार तृप्त कर सकता है इसके अलावा गाड़ी, सवारी, भार ढोने आदि की सेवा अलग । इन पशुओ के गोबर से ईधन, खाद, गैस ऊर्जा आदि की जो अतिरिक्त प्राप्ति होती है उन सबका यदि हिसाब लगाया जाए तो यह प्रकट होता हैं कि ऐसे पशुओं का वध कर हम उतना ही लाभ प्राप्त करते हैं, जितना कोई चाय बनाने के लिए नोट जलाकर लाभ प्राप्त करे ।
नित्य एक सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी का पेट काटना समझदारी कभी नहीं है । जल को साफ रखने में मछलियों की भूमिका से अधिकांश लोग परिचित हैं । सन्ध्या टाइम्स, नई दिल्ली, 12.4.90 मे छपे समाचार के अनुसार अब भोपाल में मछलियो को मच्छरों को नष्ट कर मलेरिया उन्मूलन करने के लिए इस्तेमाजल किया जा रहा है, जहां पोखरों व गन्दे पानी के गड्ढों में गम्यूशिया व गप्पी प्रजाति की 25 हजार मछलियां छोड़ी गई हैं । ये मछलिया मच्छरो को प्रारम्भिक अवस्था अर्थात् लारवा की अवस्था में ही नष्ट कर देती हैं व पर्यावरण को दूषित करने से रोकती हैं । नवभारत टाइम्स तिथि 11. 5. 90 में प्रकाशित समाचार के अनुसार उल्लू फसल की रक्षा करने में कीट नाशकों की तुलना में अधिक सक्षम है । ढाका विश्वविद्यालय की प्रो. सरकार के अध्ययन के अनुसार एक उल्लू प्रतिदिन कम से कम दो चूहे और फसल नष्ट करने वाले अनेक कीड़े मकौड़े खा जाता है ।
इस प्रकार उल्लू एक खेत में तीन हजार डालर मूल्य के चावल की सुरक्षा करता है । बौम्बे झूमैनिटेरियन लीग के आनरेरी सैक्रेटरी दशरथ भाई ठक्कर के अनुसार पशु जगत हमारी राष्ट्रीय सम्पदा में प्रतिवर्ष 25500 करोड़ रूपये दूध, खाद, ऊर्जा व भार उठाने की सेवा से अपना पसीना बहाकर हमारे राष्ट्र को देते हैं, इसके अतिरिक्त इनके मरने के उपरांत, इनका चमड़ा व हड्डियाँ अलग उपयोग में आती हैं । हमें तो इन पशुओं का कृतज्ञ होना चाहिए, जो हमें इतनी सम्पदा देते हैं व हमारी सेवा करते हैं । यदि हम इनके उपकार का बदला इन्हें बूचड़खाने भेज कर चुकाएं तो यह हमारी कृतघ्नता ही है । पशुओं का वध रोकने से उपरोक्त प्रत्यक्ष लाभ के अतिरिक्त जो अप्रत्यक्ष लाभ हैं वे भी कम नहीं हैं । सस्ती खाद मिलने पर अनाज सस्ता, अनाज सस्ता होने से गरीब को भी भरपेट भोजन मिलेगा, जिससे कुपोषण से होने वाले रोग घटेंगे व उनकी दवाइयों पर होने वाला खर्च बचेगा । अनाज सस्ता होने से महंगाई सूचकांक गिरेगा , महंगई भत्तों की बचत होगी । मज़दूर आंदोलन, हड़तालें आदि कम होंगी जिससे उत्पादन बढ़ेगा व कीमतें कम होंगी । उत्पादन बढ़ने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी और राष्ट्र को विदेशी कर्जो के लिए हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा ।
अत: पशु-वध रोकना केवल एक धार्मिक, नैतिक या दया की बात ही नहीं है बल्कि राष्ट्र की आर्थिक उन्नति व स्वास्थ्य रक्षा की परम आवश्यकता भी है । केवल इस कार्य में हमारी सभी समस्याओं को हल करने व प्रत्येक देशवासी का जीवन स्तर सुधारने की क्षमता है । अपनी सुरक्षा व प्रसन्नता चाहने वाले को दूसरों को सुरक्षा व खुशी प्रदान करना सीखना चाहिए अन्यथा प्रकृति का दण्ड देने का अपना अलग ही नियम है । जिस प्रकार जंगल नष्ट होने से पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है और हम वन रक्षा व पेड़ लगाओ आंदोलन पर अपनी पूरी शक्ति लगा रहे हैं उसी प्रकार हमें अपने अस्तित्व व (Environment & Ecological) पर्यावरण व पारिस्थितिक संतुलन को कायम रखने के लिए एक दिन पशु, पक्षी बचाओ आंदोलन करना पड़ेगा । इस कार्य में जितनी देर होगी उतनी ही अधिक हानि होगी । हमारा भला इसी में हैं कि हम मा हिस्यात् ‘सर्वभूतानि (Do not inflict injury on any creature) के सिद्धांत पर चलें । Let all be happy without any pain or misery