-अथ स्थापना-
(तर्ज-गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो……..)
पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ, मम हृदय विराजो-२
हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे।
हो रसना में प्रभु नाममंत्र, पूजा में प्रीती घनी रहे।।हम०।।
हे पार्श्वनाथ आवो आवो, आह्वान आपका करते हैं।
हम भक्ति आपकी कर करके, सब दुख संकट को हरते हैं।।
देवेन्द्र परमपद प्राप्ति हेतु, गुण कीर्तन में मति बनी रहे।।हम०।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्रदायक! श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्रदायक! श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्रदायक! श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टकं-
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरगंगा का उज्ज्वल जल ले, प्रभु चरणों त्रयधार करूँ।
पुनर्जन्म का त्रास दूर हो, इसीलिए प्रभु ध्यान धरूँ।।
भव भव तृषा मिटाने वाली, पूजा जिन भगवान की।।।।जिनकी०।।
वंदे जिनवरम्-४।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मलयागिरि का शीतल चंदन, केशर संग घिसाया है।
प्रभु के चरण कमल में चर्चत, भव संताप मिटाया है।।
तन मन को शीतल कर देती, अर्चा जिन भगवान की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।।।जिनकी०।।
वंदे जिनवरं-४।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
चिन्मय परमानंद आतमा, नहीं मिला इन्द्रिय सुख में।
प्रभु को अक्षत पुंज चढ़ाते, सौख्य अखंडित हो क्षण में।।
इन्द्र सभी मिल करें वंदना, प्रभु के अक्षयज्ञान की।।।।जिनकी०।।
वंदे जिनवरं-४।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
रतिपति विजयी पार्श्वनाथ को, पुष्प चढ़ाऊँ भक्ती से।
निज आत्मा की सुरभि प्राप्त हो, निजगुण प्रगटे युक्ती से।।
ब्रह्मर्षीसुर स्तुति करते, चिच्चैतन्य महान की।।।।जिनकी०।।
वंदे जिनवरम्-४।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मालपुआ रसगुल्ला बरफी, जिनवर निकट चढ़ाते ही।
नाना उदर व्याधि विघटित हो, समरस तृप्ती प्रगटे ही।।
गणधर मुनिवर भी गुण गाते, महिमा जिन भगवान की।।।।जिनकी०।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
केवलज्ञान सूर्य हो भगवन् ! मुझ अज्ञान हटा दीजे।
दीपक से मैं करूँ आरती, ज्ञान ज्योति प्रगटित कीजे।।
चक्रवर्ति भी करें वंदना, अतिशय ज्योतिर्मान की।।।।जिनकी०।।
वंदे जिनवरम्-४।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरभित धूप धूपघट में मैं, खेऊँ सुरभि गगन पैले।
कर्म भस्म हो जाएं शीघ्र ही, जो हैं अशुभ अशुचि मैले।।
सम्यग्दर्शन क्षायिक होवे, मिले राह उत्थान की।।।।जिनकी०।।
वंंदे जिनवरम्-४।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
अनंनास मोसम्मी नींबू, सेव संतरा फल ताजे।
प्रभु के सन्मुख अर्पण करते, मिले मोक्षफल भव भाजें।।
जिनवंदन से निजगुण प्रगटे, मिले युक्ति शिवधाम की।।।।जिनकी०।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
रत्नत्रय अनमोल प्राप्त कर, बसूँ मोक्ष में जा करके।।
रत्नत्रय अनमोल प्राप्त कर, बसूं मोक्ष में जा करके।।
इसी हेतु त्रिभुवन जनता भी, भक्ति करे भगवान की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।।।जिनकी०।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
कनक भृंग में मिष्ट जल, सुरगंगा सम श्वेत।
जिनपद धारा करत ही, भवजल को जल देत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
वकुल कमल चंपा सुरभि, पुष्पांजलि विकिरंत।
मिले निजातम संपदा, होवे भव दुःख अंत।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका गर्भ कल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ.।।टेक०।।
विश्वसेन पितु ब्राह्मी माता, तुमको पाकर धन्य हुए।
तिथि वैशाख वदी द्वितीया को, गर्भ बसे जगवंद्य हुए।।
प्रभु का गर्भकल्याणक पूजत, मिले निजातम सार है।।
पार्श्वनाथ.।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं वैशाखकृष्णाद्वितीयायां श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकरगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ.।।
पौष कृष्ण ग्यारस तिथि उत्तम, वाराणसि में जन्म हुआ।
श्री सुमेरु की पांडुशिला पर, इन्द्रों ने जिन न्हवन किया।।
जो ऐसे जिनवर को जजते, हो जाते भव पार हैं।।
पार्श्वनाथ.।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकरजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका तपकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ.।।
पौषवदी ग्यारस जाति स्मृति, से बारह भावन भाया।
विमलाभा पालकि में प्रभु को, बिठा अश्ववन पहुँचाया।।
स्वयं प्रभू ने दीक्षा ली थी, जजत मिले भव पार है।।
पार्श्वनाथ.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकरदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका ज्ञानकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ.।।
चैत्रवदी सुचतुर्थी प्रात:, देवदारु तरु के नीचे।
कमठ किया उपसर्ग घोर तब, फणपति पद्मावति पहुँचे।।
जित उपसर्ग केवली प्रभु का, समवसरण हितकार है।।
पार्श्वनाथ.।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं चैत्रकृष्णाचतुर्थ्यां श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकरकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका मोक्षकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ.।।
श्रावण शुक्ल सप्तमी पारस, सम्मेदाचल पर तिष्ठे।
मृत्युजीत शिवकांता पायी, लोकशिखर पर जा तिष्ठे।।
सौ इन्द्रों ने पूजा करके, लिया आत्म सुखसार है।।
पार्श्वनाथ.।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रावणशुक्लासप्तम्यां श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकरमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-सोरठा-
तीर्थंकर अवतार, पार्श्वनाथ जग वंद्य हो।
करो भवोदधि पार, पुष्पांजलि से पूजहूँ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि चतुर्थकोष्ठके पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं जिताशयगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं जितैनस्गुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं जितकर्मारिगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं जितेन्द्रियगुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं जिताखिलगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं जितशत्रुगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं आशासमूहविजयिजिताशौघगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं जितजेयगुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं जितात्मभाग्गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं जितलोभगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं जितक्रोधगुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं जितमानगुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं जितान्तकगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं जितरागगुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं जितद्वेषगुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं जितमोहगुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं जिनेश्वरगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं जिताजय्यगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं जिताशेषगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं जितेशगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं जितदुर्मतगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं जितवादिगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं जितक्लेशगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं जितमुंडगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं जिताव्रतगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं जितदेवगुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं जितशान्तिगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं जितखेदगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं जितारतिगुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं यतीडितगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं यतीशार्च्यगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं यतीशगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं यतिनायकगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं यतिमुखगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
ॐ ह्रीं यतिप्रेक्ष्यगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३५।।
ॐ ह्रीं यतिस्वामिगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३६।।
ॐ ह्रीं यतीश्वरगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३७।।
ॐ ह्रीं यतिगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३८।।
ॐ ह्रीं यतिवरगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३९।।
ॐ ह्रीं यत्याराध्यगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४०।।
ॐ ह्रीं यतिगुणस्तुतगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४१।।
ॐ ह्रीं यतिश्रेष्ठगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४२।।
ॐ ह्रीं यतिज्येष्ठगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४३।।
ॐ ह्रीं यतिभतृगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४४।।
ॐ ह्रीं यतीहितगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४५।।
ॐ ह्रीं यतिधुर्यगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४६।।
ॐ ह्रीं यतिसृष्टृगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४७।।
ॐ ह्रीं यतिनामगुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४८।।
ॐ ह्रीं यतिप्रभुगुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४९।।
ॐ ह्रीं यत्याकारगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५०।।
ॐ ह्रीं यतित्रातृगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५१।।
ॐ ह्रीं यतिबंधुगुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५२।।
ॐ ह्रीं यतिप्रियगुणधारकाय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५३।।
ॐ ह्रीं योगीन्द्रगुणप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५४।।
-पूर्णार्घ्य-
कोटि कोटि सुर सहित महर्द्धी, गुण सम्पन्न कहाता।
सुरपति पद सब देवगणों में, आज्ञा नित्य चलाता।।
वर सुरेन्द्र पद दाता जजते, उत्तम सौख्य भजूँ मैं।
पार्श्वनाथ को अष्ट द्रव्य ले, हर्षित भाव जजूँ मैं।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय नम:।
(शंभु छंद-तर्ज-चंदन सा वदन……….)
जय पार्श्व प्रभो! करुणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।
जय जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।टेक.।।
नाना महिपाल तपस्वी बन, पंचाग्नी तप कर रहा जभी।
प्रभु पार्श्वनाथ को देख क्रोधवश, लकड़ी फरसे से काटी।।
तब सर्प युगल उपदेश सुना, मर कर सुर पद को पाये हैं।।जय.।।१।।
यह सर्प सर्पिणी धरणीपति, पद्मावति यक्षी हुए अहो।
नाना मर शंबर ज्योतिष सुर, समकित बिन ऐसी गती अहो।।
नहिं ब्याह किया प्रभु दीक्षा ली, सुर नर पशु भी हर्षाये हैं।।जय.।।२।।
प्रभु अश्वबाग में ध्यान लीन, कमठासुर शंबर आ पहुँचा।
क्रोधित हो सात दिनों तक बहु, उपसर्ग किया पत्थर वर्षा।।
प्रभु स्वात्म ध्यान में अविचल थे, आसन कंपते सुर आये हैं।।जय.।।३।।
धरणेंद्र व पद्मावति ने फण पर, लेकर प्रभु की भक्ती की।
रवि केवलज्ञान उगा तत्क्षण, सुर समवसरण की रचना की।।
अहिच्छत्र नाम से तीर्थ बना, अगणित सुरगण हर्षाए हैं।।जय.।।४।।
यह देख कमठचर शत्रू भी, सम्यक्त्वी बन प्रभु भक्त बने।
मुनिनाथ स्वयंभू आदिक दश, गणधर थे ऋद्धीवंत घने।।
सोलह हजार मुनिराज प्रभू के, चरणों में शिर नाये हैं।।जय.।।५।।
गणिनी सुलोचना प्रमुख आर्यिका, छत्तिस सहस धर्मरत थीं।
श्रावक इक लाख श्राविकायें, त्रय लाख वहाँ जिन भाक्तिक थीं।।
प्रभु सर्प चिन्ह तनु हरित वर्ण, लखकर रवि शशि शर्माये हैं।।जय.।।६।।
नव हाथ तुंग सौ वर्ष आयु, प्रभु उग्र वंश के भास्कर हो।
उपसर्ग जयी संकट मोचन, भक्तों के हित करुणाकर हो।।
प्रभु महा सहिष्णू क्षमासिंधु, हम भक्ती करने आये हैं।।जय.।।७।।
चौंतिस अतिशय के स्वामी हो, वर प्रातिहार्य हैं आठ कहे।
आनन्त्य चतुष्टय गुण छ्यालिस, फिर भी सब गुण आनन्त्य कहे।।
बस केवल ‘ज्ञानमती’ हेतू, प्रभु तुम गुण गाने आये हैं।।
जय पार्श्व प्रभो! करुणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।।जय.।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं सुरेन्द्रत्वपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-गीता छंद-
जो सप्तपरमस्थान तीर्थंकर विधान सदा करें।
वे भव्य क्रम से सप्तपरमस्थान की प्राप्ती करें।।
संसार के सुख प्राप्त कर फिर सिद्धिकन्या वश करें।
सज्ज्ञानमति रविकिरण से भविमन कमल विकसित करें।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।