-दोहा-
प्रभु अनंतगुण के धनी, मुनिसुव्रत भगवान।
मंत्र एक सौ आठ से, पूजूँ सौख्य निधान।।१।।
अथ द्वितीयवलये मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं त्रिलोक-त्रिकालवर्तिसर्वद्रव्यपर्यायात्मकवस्तुस्वरूपज्ञायकाय
सर्वज्ञनामप्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं सर्वचराचरजगद्वित्ज्ञानप्रदाय सर्वविन्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनावलोकनसमर्थदर्शनप्रापणकराय सर्वदर्शिनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं त्रैलोक्यदर्शनसमर्थनेत्रसहिताय सर्वावलोकननामप्राप्ताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं मुक्तिपथाचरणशक्तिप्रदाय अनवधिपराक्रमसहिताय अनन्त-
विक्रमनामविभूषिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं अनन्तबलप्रदानसमर्थाय अनन्तवीर्यनामालंकृताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं अनवधिसुखप्रदाय अनन्तसुखात्मकनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं अतीन्द्रियसुखप्रापणशक्तिप्रदाय अनन्तसौख्यनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं समस्तविश्वज्ञातृशक्तिप्रदाय विश्वज्ञनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं अखिलजगदावलोकनसमर्थयुक्तिप्रदाय विश्वदृश्वन्नामप्राप्ताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं समस्तपदार्थावलोकनदृष्टिधारकाय अखिलार्थदृङ्नामविभूषिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं इन्द्रियसाहाय्यमन्तरेण सर्वलोकालोकावलोकनसमर्थाय
न्यक्षदृङ्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानदर्शनचक्षुर्भ्यां सर्वविश्वावलोकनसमर्थाय विश्वतश्चक्षुर्नाम-
धारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं सर्वजगदावलोकनदर्शनप्रदाय विश्वचक्षुर्नामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं सर्वलोकालोकज्ञायकाय अशेषविन्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं अतीन्द्रियसौख्यसागरनिमग्नाय आनंदनामसमन्विताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं परमोत्कृष्टसौख्यप्रदानसमर्थाय परमानन्दनामविभूषिताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं सर्वकालोदयास्तमनविरहितसौख्यमंडिताय सदानन्दनाम-विभूषिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं उत्कृष्टाभ्युदयप्रदानसमर्थाय सदोदयनामविभूषिताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं शाश्वतसौख्यप्रदायकाय नित्यानन्दनामसमन्विताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं भक्तानां चरणपूजया महानन्दप्रदायकाय महानन्दनामसहिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं भक्तानां चरणपूजया उत्कृष्टानन्दप्रदायकाय परानन्दनामसहिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं परमोत्कृष्टज्ञानोदयप्रदायकाय परोदयनामालंकृताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं अतिशयकारि-उत्साहप्रदायकाय परमोजनामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं उत्कृष्टभास्करप्रकाशरूपसमन्विताय परंतेजोनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं उत्कृष्टधामप्रापणसमर्थाय परंधामनामप्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रत
-नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं परमतेजःस्वरूपसमन्विताय परंंमहोनामसहिताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं कोटिरविप्रभालज्जितकरणभामंडलविभवप्राप्ताय प्रत्यग्ज्योति-
र्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं लोकालोकलोचनोत्कृष्टनेत्रसमन्विताय परंज्योतिर्नामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं पंचमज्ञानस्वरूपाय परंब्रह्मनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय
अर्र्घ्यंंनिर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं रहस्यमयात्मतत्त्वोपदेशनकराय परंरहोनामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं उत्कृष्टबुद्धिप्रदायकाय प्रत्यगात्मनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानप्रदानकरणसमर्थाय प्रबुद्धात्मनामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानमहसा लोकालोकव्यापकाय महात्मनामविभूषिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरनामोदयविभूतिसमन्विताय आत्ममहोदयनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३५।।
ॐ ह्रीं उत्कृष्टकेवलज्ञानप्रदायकाय परमात्मनामसमन्विताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।३६।।
ॐ ह्रीं घातिकर्मक्षयकरणबुद्धिप्रदाय प्रशान्तात्मनामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।३७।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानोपेताय परात्मनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३८।।
ॐ ह्रीं शरीरस्वरूपपरनिवासविरहितात्मगृहनिवासबुद्धिप्रदाय आत्म-
निकेतननामविभूषिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं
निर्वपामीति स्वाहा।।३९।।
ॐ ह्रीं इन्द्रधरणेन्द्रनरेन्द्रगणीन्द्रादिवंदितपदस्थिताय परमेष्ठिनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४०।।
ॐ ह्रीं अतिशाय्यात्मस्वरूपसमन्विताय अष्टमीभूमिस्थिताय महिष्ठात्म-
नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४१।।
ॐ ह्रीं अतिप्रशस्तकेवलज्ञानापेक्षासर्वव्यापकाय श्रेष्ठात्मनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४२।।
ॐ ह्रीं निजशुद्धबुद्धैकस्वरूपात्मस्थिताय स्वात्मनिष्ठितनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४३।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानमयब्रह्मस्वरूपात्मस्थिताय ब्रह्मनिष्ठनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४४।।
ॐ ह्रीं सर्वोत्कृष्टयथाख्यातचारित्रस्थिताय महानिष्ठनामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४५।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनप्रसिद्धात्मस्वरूपाय निरूढात्मनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४६।।
ॐ ह्रीं निश्चलस्वरूपानन्तबलोपेतसत्तामात्रावलोकनसमर्थदृक्समन्विताय
दृढात्मदृङ्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४७।।
ॐ ह्रीं एकाद्वितीयकेवलज्ञानलक्षणोपलक्षितविद्यासमन्विताय एकविद्य-
नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४८।।
ॐ ह्रीं महतीकेवलज्ञानविद्याप्रदायकाय महाविद्यनामविभूषिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।४९।।
ॐ ह्रीं महाब्रह्मरूपमोक्षपदस्वामिने महाब्रह्मपदेश्वरनामप्राप्ताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५०।।
ॐ ह्रीं पंचविधज्ञानप्रदाय पंचपरमेष्ठिगुणविभूषिताय पंचब्रह्ममयनाम-
धारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५१।।
ॐ ह्रीं सर्वप्राणिनां हितैषिणे सार्वनामविभूषिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थं-
कराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५२।।
ॐ ह्रीं सर्वविद्यानां स्वामिने सर्वविद्याप्रदाय सर्वविद्येश्वरनामप्राप्ताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५३।।
ॐ ह्रीं समवसरणलक्षणास्थानप्राप्ताय स्वभूनामविभूषिताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५४।।
ॐ ह्रीं मोक्षमार्गे बुद्धिस्थिरीकरणाय अनन्तधीनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५५।।
ॐ ह्रीं अनंतकेवलज्ञानोपलक्षिताय अनन्तात्मनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५६।।
ॐ ह्रीं अनन्तशक्तिप्रदाय अनन्तशक्तिनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५७।।
ॐ ह्रीं केवलदर्शनप्रापणबुद्धिदायकाय अनन्तदृङ्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथ
तीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५८।।
ॐ ह्रीं अनवधिबुद्धि-शक्तिप्रदाय अनन्तानंतधीशक्तिनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।५९।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानचिज्ज्योतिःप्रदाय अनन्तचिन्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६०।।
ॐ ह्रीं अनवधिसुखकारकाय अनन्तमुद्नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथ-
तीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६१।।
ॐ ह्रीं अखंडप्रकाशपुंजप्रदायकाय सदाप्रकाशनामप्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६२।।
ॐ ह्रीं सर्वद्रव्यगुणपर्यायप्रत्यक्षकरणशक्तिप्रदाय सर्वार्थसाक्षात्कारि-
नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६३।।
ॐ ह्रीं समस्तज्ञेयप्रमाणबुद्धिधारणसमर्थाय समग्रधीनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६४।।
ॐ ह्रीं पुण्यपापरूपकर्मज्ञायकाय कर्मसाक्षिनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६५।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनस्थितप्राणिनां लोचनसदृशज्ञायकाय जगत्चक्षुर्नामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६६।।
ॐ ह्रीं छद्मस्थमुनीनामदृश्यस्वरूपाय अलक्ष्यात्मनामसहिताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६७।।
ॐ ह्रीं अस्मादृशानां दृढचारित्रप्रदाय निश्चलस्थानप्राप्ताय अचलस्थिति-
नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६८।।
ॐ ह्रीं सर्वबाधाविरहितपदप्रदाय निराबाधनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।६९।।
ॐ ह्रीं छद्मस्थजनचिंतनविरहिताय अप्रतर्क्यात्मनामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७०।।
ॐ ह्रीं सहस्रारदेदीप्यमान-जगज्जनसंतापशान्तकरणसमर्थाय धर्मचक्र-
प्राप्ताय धर्मचक्रिनामसमन्विताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं
निर्वपामीति स्वाहा।।७१।।
ॐ ह्रीं सर्वविद्वज्जनश्रेष्ठपदप्रदाय विदांवरनामविभूषिताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७२।।
ॐ ह्रीं लोकालोकस्वरूपज्ञायकाय भूतात्मनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७३।।
ॐ ह्रीं स्वाभाविकज्ञानज्योतिःप्रदाय सहजज्योतिर्नामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७४।।
ॐ ह्रीं लोकालोकप्रकाशज्योतिःप्रदाय विश्वज्योतिर्नामप्राप्ताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७५।।
ॐ ह्रीं इन्द्रियमनोविरहितज्ञानप्रदाय अतीन्द्रियनामप्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७६।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानप्रापणकराय केवलिनामसमन्विताय श्रीमुनिसुव्रतनाथ-
तीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७७।।
ॐ ह्रीं अतीन्द्रियज्ञानप्रकाशप्रदाय केवलालोकनामविभूषिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७८।।
ॐ ह्रीं लोकालोकप्रकाशज्ञानप्रदाय लोकालोकविलोकननामविभूषिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।७९।।
ॐ ह्रीं सर्वविषयेभ्य: पृथग्भूताय विविक्तनामसमन्विताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८०।।
ॐ ह्रीं असहायज्ञानप्रदायकाय केवलनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८१।।
ॐ ह्रीं इन्द्रियमनोऽगोचरपददायकाय अव्यक्तनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८२।।
ॐ ह्रीं अर्तिमथनसमर्थाय सर्वजनशरणप्रदाय शरण्यनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८३।।
ॐ ह्रीं साधारणजनमनोऽगोचरवैभवप्रदाय अचिन्त्यवैभवनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८४।।
ॐ ह्रीं अखिलविश्वजनतापोषणसमर्थाय विश्वभृद्नामप्राप्ताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८५।।
ॐ ह्रीं ज्ञानकिरणैस्त्रैलोक्यव्याप्ताय विश्वरूपात्मनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८६।।
ॐ ह्रीं विश्वस्थितप्राणिगणनिजसदृशावलोकनदक्षाय विश्वात्मनाम-
समन्विताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८७।।
ॐ ह्रीं केवलज्ञानेन लोकालोकव्यापकाय विश्वतोमुखनामप्राप्ताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।८८।।
ॐ ह्रीं आत्मप्रदेशैर्लोकपूरणसमुद्घातकाले विश्वव्यापकाय विश्व-
व्यापिनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति
स्वाहा।।८९।।
ॐ ह्रीं आत्मज्योति:स्वरूपभास्कराय स्वयंज्योतिर्नामसमन्विताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।९०।।
ॐ ह्रीं अवाङ्मानसगोचरस्वरूपप्रदाय अचिन्त्यात्मनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।९१।।
ॐ ह्रीं कोटिभास्कर-कोटिचन्द्रसमानशरीरतेजःसमन्विताय अमितप्रभ-
नामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।९२।।
ॐ ह्रीं वाञ्छितफलप्रदायकदानशक्तिसमन्विताय महौदार्यनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।९३।।
ॐ ह्रीं रत्नत्रयप्राप्तिस्वरूपबोधिप्रदाय महाबोधिनामधारकाय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।९४।।
ॐ ह्रीं नवकेवललब्धिस्वरूपलाभदायकाय महालाभनामधारकाय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरनामकर्मोदयसहिताय महोदयनामसमन्विताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।९६।।
ॐ ह्रीं सच्छत्रचामरसिंहासनाशोकतरुप्रमुखमुहुर्भोग्यसमवसरणादि-
लक्षणविभवसहिताय महोपभोगनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं
निर्वपामीति स्वाहा।।९७।।
ॐ ह्रीं शोभनबुद्धिकेवलज्ञानस्वरूपाय सुगतिनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९८।।
ॐ ह्रीं गंधोदकवृष्टि-पुष्पवृष्टिशीतलमृदुसुगंधवातादिललक्षणभोग्य-
वस्तुसमन्विताय महाभोगनामधारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय
अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।९९।।
ॐ ह्रीं समस्तवस्तुपरिच्छेदलक्षणानन्तवीर्यसहिताय महाबलनाम-
धारकाय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१००।।
ॐ ह्रीं चतुर्गतिपरिभ्रमणमूलकारणमोहनीयकर्मनाशनबुद्धिप्रदाय
अनन्तगुणसमुद्रनिमग्नाय सम्यक्त्वनामप्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रत-
नाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१०१।।
ॐ ह्रीं दर्शनावरणकर्मक्षपणयुक्तिप्रदाय समस्तलोकालोकाव-
लोकनसमर्थाय दर्शननामप्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय
अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१०२।।
ॐ ह्रीं ज्ञानावरणकर्मक्षपणयुक्तिप्रदाय युगपत्समस्तलोका-लोकप्रत्यक्ष—
करणसमर्थाय ज्ञाननामप्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय
अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१०३।।
ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मनाशनबुद्धिप्रदाय अनन्तशक्तिसमन्विताय वीर्यनाम—
प्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं निर्वपामीति
स्वाहा।।१०४।।
ॐ ह्रीं नामकर्मक्षपणयुक्तिप्रदाय ज्ञानकिरणैः समस्तसंसारव्याप्ताय
सूक्ष्मत्वनामप्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्र्घ्यंं
निर्वपामीति स्वाहा।।१०५।।
ॐ ह्रीं आयुःकर्मनाशनबुद्धिप्रदाय अनन्तानन्तसिद्धावगाहनप्रदान-
समर्थाय अवगाहननामप्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०६।।
ॐ ह्रीं गोत्रकर्मनाशनबुद्धिप्रदाय अनन्तानन्तकालनिजात्मविश्राम-
कारणस्वरूपाय अगुरूलघुनामप्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेंद्राय
अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१०७।।
ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मक्षपणयुक्तिप्रदाय परमातीन्द्रियसौख्यसागरनिमग्नाय
अव्याबाधनामप्रमुखगुणमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय
अर्र्घ्यंं निर्वपामीति स्वाहा।।१०८।।
-पूर्णार्घ्य-
तर्ज-हे वीर तुम्हारे द्वारे पर…….
हे नाथ! तुम्हारी पूजा को, हम थाल सजाकर लाये हैं।
हे सुव्रतदाता मुनिसुव्रत! हम चरण शरण में आये हैं।।
शनिग्रह की बाधा दूर करो, यद्यपि यह ख्याति जगत में है।
फिर भी सब ग्रह बाधा विनशें, ऐसा यश सुन हम आये हैं।।१।।
हे नाथ!………….।
संपूर्ण अमंगल, रोग, शोक, दारिद्रादिक दुःख दूर भगें।
अपमृत्यु टले सुसमाधि मिले, यह आशा लेकर आये हैं।।२।।
हे नाथ!………….।
संसार विपिन में जन्म मरण, करते करते हम श्रांत हुए।
परमानन्दामृत सुख की बस, अभिलाषा लेकर आये हैं।।३।।
हे नाथ!………….।
ॐ ह्रीं सर्वडाकिनी—शाकिनी—भूतपिशाचव्यन्तरदेवादिकृतोपद्रवविनाशन-
समर्थाय सर्वज्ञादि—अव्याबाधगुणपर्यन्त—अष्टोत्तरशतनामसमन्विताय श्रीमुनि-
सुव्रतनाथतीर्थंकराय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य – ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वरुणयक्ष-बहुरूपिणीयक्षीसहिताय
श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय नम:।
अथवा – ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय नम:।
(108 बार सुगंधित पुष्प या लवंग या पीले चावल से जाप्य करें)