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अयोध्या
काकन्दी तीर्थ पूजा
July 24, 2020
पूजायें
jambudweep
काकन्दी तीर्थ पूजा
(स्थापना)
तर्ज-आओ बच्चों……..
चलो चलें काकन्दी नगरी, पुष्पदन्त को नमन करें।
जन्मभूमि की पूजन करके, अपना पावन जनम करें।।
तीरथ को नमन, तीरथ को नमन-२।।टेक.।।
चौबिस तीर्थंकर में से, श्रीपुष्पदन्त नवमें प्रभु हैं।
उनसे काकन्दी नगरी ने, प्राप्त किया वैभव सब है।।
इन्द्र मनुज भी आकर जिस, तीरथ को शत-शत नमन करें।
जन्मभूमि की पूजन करके, अपना पावन जनम करें।।
तीरथ को नमन, तीरथ को नमन-२।।१।।
आह्वानन स्थापन सन्निधिकरण, विधी हम करते हैं।
पूजन में काकन्दी नगरी, का स्थापन करते हैं।।
आत्मशक्ति प्रगटाने हेतु, तीर्थक्षेत्र का यजन करें।
जन्मभूमि की पूजन करके, अपना पावन जनम करें।।
तीरथ को नमन, तीरथ को नमन-२।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदन्तनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदन्तनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदन्तनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अष्टक
(स्रग्विणी छंद)
स्वर्ण भृंगार में क्षीर सम नीर ले।
धार डालूँ तो मिट जाय भव पीर है।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय जन्म-जरामृत्युविनाशनय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
घिस के चन्दन मलयगिरि का लाया प्रभो।
भव का संताप मैंने नशाया विभो।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमि काकन्दीतीर्थक्षेत्राय संसारताप-विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
शालि के पुंज से नाथ पूजा करूँ।
पूर्ण आनंदमय आत्मसुख को वरूँ।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमि काकन्दीतीर्थक्षेत्राय अक्षय-पदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
मोगरा जूही चंपा चमेली कुसुम ।
तीर्थ पद में चढ़ा कर लहूँ पद विमल।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय कामबाण- विध्वसंनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
पूरियां लाडुओं से भरा थाल है।
रोग क्षुध नाश हेतू चढ़ाऊँ तुम्हें।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत के दीपक की ज्योति जलाई प्रभो।
स्वर्ण थाली में आरति सजाई प्रभो।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूप को अग्निघट में जलाऊँ प्रभो।
कर्म की धूम्र चहुँदिश उड़ाऊँ प्रभो।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल अनंनास नींबू नरंगी लिया।
मोक्षफल आश से नाथ अर्पित किया।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुख रंच ना।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
नीर गंधादि युत अघ्र्य अर्पण करूँ।
‘‘चन्दना’’ अघ्र्य प्रभु पद समर्पण करूँ।।
तीर्थ काकन्दि की जो करे अर्चना।
जन्म होवे सफल उनको दुःख रंच ना।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शेरछन्द
गंगानदी के नीर से त्रयधार करूँ मैं।
त्रयरत्न प्राप्ति हेतु शांतिधार करूँ मैं।।
शांतये शांतिधारा
नाना तरह के पुष्प अंजुली में भर लिया।
पुष्पांजली कर मैंने आत्मसौख्य वर लिया।।
दिव्य पुष्पांजलि
प्रत्येक अर्घ्य
(शेर छन्द)
फाल्गुन वदी नवमी जहाँ प्रभु गर्भ में आये।
काकन्दी में जयरामा माँ को स्वप्न दिखाये।।
उस गर्भकल्याणक से पूज्य भूमि को वन्दूँ।
काकन्दी को मैं अघ्र्य चढ़ा दुःख को खंडूँ।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथगर्भकल्याणक पवित्रकाकन्दी-तीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मगशिर सुदी एकम को जन्म पुष्पदंत का।
काकन्दी में हुआ था जब त्रैलोक्य धन्य था।।
उस जन्मकल्याणक पवित्र तीर्थ को नमूँ।
कर अघ्र्य समर्पण प्रभू तीर्थेश को प्रणमूँ।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथजन्मकल्याणक पवित्र काकन्दीतीर्थ-क्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मगशिर सुदी एकम जहाँ वैराग्य हुआ था।
श्री पुष्पदंत जिनवर ने त्याग लिया था।।
काकन्दी का वह पुष्पक वन हो गया पावन।
उस तीर्थ को ही मेरा यह अघ्र्य समर्पण।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदन्तनाथदीक्षाकल्याणक पवित्रकाकन्दी-तीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कार्तिक सुदी दुतिया को जहाँ ज्ञान हुआ था।
जिनवर समवसरण का निर्माण हुआ था।।
काकन्दि उस पवित्र धरा को नमन करूँ।
मैं अघ्र्य चढ़ा घाति कर्म को हनन करूँ।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथकेवलज्ञानकल्याणक पवित्र-काकन्दीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्णार्घ्य
(शेरछंद)
श्रीपुष्पदंत जिनवर के चार कल्याणक।
सम्मेदगिरि से मोक्ष गये उनको नमूं नित।।
उन गर्भ जन्म तप व ज्ञान भूमि को जजूँ।
काकन्दि को पूर्णाघ्र्य दे निज आत्मा भजूँ।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदंतनाथगर्भजन्मदीक्षाज्ञानचतुःकल्याणक पवित्रकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं काकन्दीजन्मभूमिपवित्रीकृत श्रीपुष्पदंतनाथजिनेन्द्राय नमः।
जयमाला
(गीताछन्द)
जय तीर्थ काकन्दी जगत में, जन्मभूमि जिनेन्द्र की।
जय चार कल्याणक धरा वह, पुष्पदन्त जिनेन्द्र की।।
जय मात जयरामा व पितु, सुग्रीव का शासन जहाँ।
जयवंत हो त्रैलोक्यपूज्य, जिनेन्द्र का शासन जहाँ।।१।।
शुभ स्वर्ग प्राणत का सुखी, जीवन व्यतीत किया प्रभो।
प्रकृती जो तीर्थंकर बंधी थी, उसकी थी महिमा प्रभो।।
माँ के गरभ में आने से, छह माह पहले से हुई।
काकन्दि नगरी में धनद, द्वारा रतन वर्षा हुई।।२।।
रोमांच होता है हृदय में, जन्म का क्षण सोचकर।
जब स्वर्ग पूरा आ गया था, इस धरा पर भक्तिवश।।
सौधर्म सुरपति की शची, इन्द्राणी का सौभाग्य था।
जिसने प्रसूतिगृह में जा, पहले किया प्रभुदर्श था।।३।।
मायामयी बालक को रख, माँ को किया निद्रामगन।
गोदी में लाकर जिनशिशू को, कर लिया जीवन सफल।।
फिर इन्द्र ने जिनराज दर्शन, हेतु नेत्र सहस किया।।
मेरू शिखर पर जा प्रभू के, जन्म का उत्सव किया।।४।।
भारत की ही धरती का यह, इतिहास पौराणिक रहा।
त्रेसठ शलाका पुरुषों का, जिसने कथानक है कहा।।
जहाँ विश्वमैत्री का सदा, संदेश देते ऋषि मुनी।
उस देश में ही जिनवरों के, जन्म की महिमा सुनी।।५।।
तीर्थंकरों की श्रेणि में, श्रीपुष्पदंत नवम कहे।
उनके जनम से धन्य, काकन्दीपुरी के नृप रहे।।
बीते करोड़ों वर्ष फिर भी, वह धरा तो पूज्य है।
पूजी सदा जाती रहेगी, उस धरा की धूल है।।६।।
जहाँ देख उल्कापात प्रभु, वैरागि बनकर चल दिये।
साम्राज्य और कुटुम्ब को, समझा क्षणिक सब तज दिये।।
दीक्षा लिया तप कर जहाँ, केवल्यज्ञान प्रगट किया।
उस पुण्यथान जिनेन्द्र भूमी, का सदा अर्चन किया।।७।।
जयमाल में पूर्णाघ्र्य का, यह थाल अर्पित कर दिया।
गुणमाल में निज आत्म का, उद्गार प्रगटित कर दिया।।
स्वीकार कर लो द्रव्य मेरा, तीर्थ अर्चन कर रहा।
भंडार भर दो ‘‘चन्दनामति’’, आत्मचिंतन चल रहा।।८।।
दोहा पुष्पदन्त जन्मस्थली, काकन्दी शुभ तीर्थ।
अघ्र्य समर्पण कर प्रभो, पाऊँ आतम तीर्थ।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपुष्पदन्तनाथजन्मभूमिकाकन्दीतीर्थक्षेत्राय जयमाला पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
गीता छन्द
जो भव्य प्राणी जिनवरों की, जन्मभूमी को नमें।
तीर्थंकरों की चरण रज से, शीश उन पावन बनें।।
कर पुण्य का अर्जन कभी तो, जन्म ऐसा पाएंगे।
तीर्थंकरों की श्रँखला में, ‘‘चन्दना’’वे आएंगे।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।
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