हे पुष्पदन्त भगवान् पुष्प तव, चरणों में जब चढ़ता है।
पूजन की विधि में सर्वप्रथम, स्थापन कर वह कहता है।।
हो गया जन्म सार्थक मेरा, प्रभुपद में जब स्थान मिला।
मैं धूल में गिरकर मिट जाता, लेकिन यह तो सौभाग्य खिला।।१।।
आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण प्रधान।
पुष्पदन्त की अर्चना, क्रमशः दे निर्वाण।।२।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।
साधुचित्त के समान शुद्ध नीर ले लिया।
धार दे जिनेन्द्रपाद भव का तीर ले लिया।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।१।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
दिव्य चन्दन की ही प्रतीक केशर मेरी।
पादपद्म में विलेपते सुगंधि है मिली।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।२।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
तुच्छ तंदुलों में मोतियों की कल्पना मेरी।
नाथ! पूर्ण होएगी जरूर साधना मेरी।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।३।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
फूल होें या पीले चावलों में पुष्पभावना।
अर्चना के रूप में फलेगी मेरी भावना।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूर हो।।४।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
खीर और पूरियों को थाल में भरा लिया।
भूख व्याधि शांति के लिए चरू चढ़ा दिया।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।५।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीपकों की ज्योति से प्रकाश पैâलता सदा।
प्रभु की आरती से मन की ज्योति पाऊँ सर्वदा।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।६।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूप धूपघट में खेके पापकर्म नाश हों।
श्रीजिनेन्द्र की कृपा से पुण्य का विकास हो।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।७।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सत्फलों से युक्त मोक्षफल की याचना करूँ।
द्राक्ष आम्र आदि अर्प्य यह ही भावना करूँ।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।८।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जलफलादि द्रव्य ले करूँ जिनेन्द्र अर्चना।
तुम समान पद मिले, आश यह ही ‘‘चन्दना’’।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।९।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रत्नत्रय की प्राप्ति हेतु तीन धार मैं करूँ।
जन्म औ जरा मरण त्रिरोग नाश मैं करूँ।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रहअरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
श्री जिनेन्द्र के समीप पुष्प अंजली भरूँ।
पुष्प को बिखेर कर सुगंधि सर्वदिक् करूँ।।
पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रहअरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
(अब मण्डल के ऊपर शुक्रग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अर्घ्य चढ़ावें)
तर्ज-चाँद मेरे आ जा रे………
नाथ की पूजन करते हैं-२,
अष्टद्रव्य, की थाली प्रभू के, चरणों में धरते हैं।।नाथ की…… ।। टेक. ।।
जब अशुभ कर्म के कारण, तन में व्याधी आती है।
धनहानि कलह आदिक से, मन में आंधी आती है।।
नाथ की पूजन करते हैं।।१।।
प्रभु पुष्पदंत तीर्थंकर, ग्रहशुक्र के स्वामी माने।
वे इस ग्रह की शान्ती में, ‘‘चन्दना’’ प्रमुख हैं माने।।
नाथ की पूजन करते हैं।।२।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्यपुष्पांजलिः
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय नमः।
भगवान् तुम्हारी पूजन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।टेक०।।
जैसे अंगार दहकता है, जल सबकी प्यास बुझाता है।
सूरज जैसे देकर प्रकाश, धरती का तिमिर भगाता है।।
वैसे ही प्रभु मुख दर्शन से, मानों सब कुछ मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता हैै।।१।।
दर्शन के भाव हुए जिस क्षण, उपवास का फल प्रारंभ हुआ।
चलकर जब पहुँच गए मंदिर, लक्षोपवास फल सहज हुआ।।
प्रभु सम्मुख आ गद्गद मन से, भव भव का अघ धुल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।२।।
भक्ती में शक्ति अचिन्त्य कही, यह भुक्ति मुक्ति सब कुछ देती।
जिनप्रतिमा भले अचेतन हैं, फिर भी चेतन को फल देतीं।।
पौराणिक कथन ‘‘चन्दना यह, कलियुग में भी फलदाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निजन्तर्मन खिल जाता है।।३।।
हो शुक्र अनिष्ट यदी प्रभुवर, दुख इष्ट वियोग सताता है।
यह शुभ हो जावे यदि जिनवर, सांसारिक सौख्य दिलाता है।।
प्रभु पुष्पदन्त भगवान् तेरी, भक्ती से सब मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।४।।
ॐ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः
पुष्पदंत की अर्चना, हरे सकल दुख दोष।
करे शुक्रग्रह सान्त्वना, भरे स्वात्मसुख तोष।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।