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तत्त्वार्थसूत्र भजन- सप्तम अध्याय!
June 14, 2020
भजन
jambudweep
भजन-७ सप्तम अध्याय
हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।।
हिंसादिक पापों से विरक्त, होना व्रत कहलाता सच में।
वह अणुव्रत और महाव्रत से, दो रूप कहा जाता जग में।।
मुनि और आर्यिका महाव्रती, श्रावक अणुव्रत को अपनाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।१।।
कर्माश्रव से बचने हेतू, तत्त्वार्थसूत्र का पाठ करो।
सप्तम अध्याय के सूत्रों पर, चिन्तन व मनन स्वाध्याय करो।।
भव भव में रोते प्राणी भी, आगे अविनश्वर सुख पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।२।।
जीवन भर व्रत का पालन कर, अंतिम समाधि को ग्रहण करो।
सम्यग्दृष्टि बनकर अतिचार, रहित व्रत संयम ग्रहण करो।।
गुरुमुख से यह प्रवचन सुन कर, ‘‘चंदनामती’’ सब तिर जाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।३।।
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Tatvaarth Sutra bhajan
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