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08 . अष्टसहस्री ग्रंथ पूजा
August 15, 2024
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अष्टसहस्री ग्रंथ पूजा
रचयित्री – आर्यिका चन्दनामती
-स्थापना (चौबोल छंद)-
जिनशासन का इक न्याय ग्रंथ है, अष्टसहस्री कहें जिसे।
इक सहस वर्ष पहले श्री, विद्यानंदि सूरि ने रचा उसे।।
देवागम का स्तोत्र आप्त-मीमांसा से जो ख्यात हुआ।
उसकी टीका के ग्रंथ को अष्ट-सहस्री नाम है प्राप्त हुआ।।१।।
-दोहा-
अष्टसहस्री ग्रंथ का, अर्चन है सुखकार।
ज्ञान प्राप्त हो न्याय का, अनेकांत का सार।।२।।
आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण प्रधान।
इस विधि से ही आतमा, होवे पूज्य महान।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीअष्टसहस्रीन्यायग्रंथराज! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीअष्टसहस्रीन्यायग्रंथराज! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीअष्टसहस्रीन्यायग्रंथराज! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
-अष्टक –
(चाल-नंदीश्वर श्री जिनधाम……..)
ले ज्ञानामृत का नीर, निज मन तृप्त करूँ।
मिटे जन्मजरा की पीर, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।१।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ले चंदन श्वेत कपूर, मन में सुरभि भरूँ।
संसारताप हो दूर, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।२।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ले अक्षत धवल अनूप, मन को सुखद करूँ।
अक्षयपद हो अनुकूल, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।३।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ले विविध वर्ण के फूल, निजमन चमन करूँ।
हो काम व्यथा सब दूर, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।४।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ले नानाविध पकवान, श्रुत का यजन करूँ।
हो क्षुधारोग की हानि, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।५।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ले दीप कनकमय थाल, ज्ञानप्रकाश भरूँ।
हो मोह तिमिर का नाश, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।६।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ले अगर तगर की धूप, जग में सुरभि भरूँ।
हों अष्टकर्म सब दूर, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।७।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ले फल अंगूर अनार, श्रुत का यजन करूँ।
मिले मोक्ष महाफल सार, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।८।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ले कोमल वस्त्र अनेक, श्रुत का यजन करूँ।
निज आत्मसुरक्षा हेतु, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।९।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय वस्त्रं निर्वपामीति स्वाहा।
ले अष्टद्रव्य का थाल, श्रुत का यजन करूँ।
‘‘चन्दना’’ मिले निजधाम, श्रुत को श्रवण करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूूं हरषा के।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टसहस्री न्याय ग्रंथाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा-
ले जल का उत्तम पात्र, शान्तीधार करूँ।
मिले रत्नत्रय का सार, भवदधि पार करूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूं हरषाके।।११।।
शान्तये शांतिधारा।
ले चंपक हरसिंगार, पुष्पांजलि कर लूँ।
गुण पुष्प से हो शृँगार, मन पावन कर लूँ।।
वर अष्टसहस्री ग्रंथ, पूजूँ मन लाके।
सर्वोच्च न्याय का ग्रंथ, वंदूं हरषाके।।१२।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जयमाला
तर्ज-मिलो न तुम तो……………
अष्टसहस्री ग्रंथराज की पूजन करने आए,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।टेक.।।
आठ सहस्र श्लोकों की, संख्या वाली टीका है इस ग्रन्थ में। हो…….
आचार्य विद्यानन्द की, ज्ञान गंगा है इस ग्रंथ में।।हो……..
कष्टसहस्री कहते जिसको उसी को अर्घ्य चढ़ाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।१।।
मोक्षशास्त्र ग्रंथ में जो, मंगलाचरण है उमास्वामी का। हो…..
मोक्षमार्ग के नेता को, वंदन किया है शिवपथगामी का।।हो…….
उसी मूल मंगलाचरण को हम भी मन में ध्याएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।२।।
श्री समन्तभद्र मुनि का, उस पर ही देवागमस्तोत्र है। हो……
एक शतक चौदह जिसमें, संस्कृत के सुन्दर श्लोक हैं।।हो……..
वही आप्तमीमांसा पुस्तक हम भी पढ़ें-पढ़ाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।३।।
उसी आप्तमीमांसा पर, आचार्य श्री अकलंक देव ने। हो…….
अष्टशती नाम का इक, ग्रंथ लिख दिया है उन गुरुदेव ने।। हो……..
आठ शतक श्लोक सहित उस ग्रंथ को शीश नमाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।४।।
आचार्य विद्यानंदी, ने भी आप्तमीमांसा पर लिख दिया। हो…….
आठ सहस्र श्लोकों में, अष्टसहस्री ग्रंथ रच दिया।। हो……..
उसी न्यायदर्शन के ग्रंथ की पूजन यहाँ रचाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।५।।
कठिन-कठिन इस टीका में, अष्टशती की पंक्ती भी गूंथी हैं। हो…….
अनेकान्त की पुष्टी में, एक मात्र ग्रंथ यही पूंजी है।। हो…….
सप्तभंग, सर्वज्ञसिद्धि विषयों में रुचि बढ़ जाए,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।६।।
संस्कृत के क्लिष्टतम इस, ग्रंथ को न कोई समझ पाते थे। हो……
बिरले ही विद्वानों के, द्वारा ऐसे शास्त्र पढ़े जाते थे।। हो…….
देख-देख कर उसी ग्रंथ को हम भी हर्ष मनाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।७।।
ज्ञानमती माता गणिनी, आर्यिका प्रसिद्ध हुईं इस युग में। हो……..
अपने शिष्य शिष्याओं को, अध्ययन कराया इसी ग्रंथ से।। हो…….
बिना किसी से पढ़े ग्रंथ की टीका स्वयं रचाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।८।।
उन्नीस सौ इकहत्तर सन्, पौष शुक्ला बारस की तिथि आ गई। हो……
डेढ़ वर्ष के श्रम द्वारा, हिन्दी टीका पूर्णता को पा गई।। हो…….
राजस्थान के टोडारायसिंह नगर में वे क्षण आए,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।९।।
ग्रंथ को नमन कर उसके, रचनाकार गुरुओं को भी मैं नमूँ। हो…….
श्री समन्तभद्र एवं, भट्टाकलंक गुरुवर को प्रणमूँ।। हो……..
इनकी कृति से अष्टसहस्री मूल ग्रंथ को पाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।१०।।
इक हजार वर्ष पहले, के सूरि विद्यानन्दी को नमन। हो……
स्याद्वादचिन्तामणि, हिन्दी टीकाकर्त्री माता को वन्दन।। हो……..
गणिनी माता ज्ञानमती को शत-शत शीश झुकाएँ,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।११।।
अपने-अपने ग्रंथालय में, अष्टसहस्री ग्रंथ रखना है। हो…….
‘‘चन्दनामती’’ अब उसका, अध्ययन भी हम सबको करना है।। हो……..
सभी मतों को जान-जानकर अनेकांत को पाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।१२।।
जिनवाणी माँ की प्रतिकृति, अष्टसहस्री को अर्घ्य चढ़ाना है। हो…….
न्याय का उजाला पाकर, अन्याय का तिमिर भगाना है।। हो……..
स्याद्वादचिन्तामणि टीका सहित ग्रंथ अपनाएं,
ज्ञान की ज्योति जलेगी।।१३।।
ॐ ह्रीं स्याद्वादचिंतामणि हिन्दी टीका समन्वित अष्टसहस्रीमहाग्रंथाय जयमाला पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शंतिधारा। पुष्पांजलि:।
अष्टसहस्री ग्रंथ को, नमन करूँ शत बार।
ज्ञान ज्योति प्रगटित करूँ, मन में अपरम्पार।।
।। इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।
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