अध:प्रवृत्तकरण में अंतर्मुहूर्त रहकर ये मुनि प्रतिसमय अनंतगुणी विशुद्धि को प्राप्त होते हुए एवं पूर्व में कभी भी नहीं प्राप्त हुए ऐसे अपूर्वकरण जाति के परिणामों को प्राप्त होते हैं । यहाँ पर एक समयवर्ती मुनियों के परिणामों में सदृशता और विसदृशता दोनों ही होती है । इसका काल भी अंतर्मुहूर्त है ।