एक गाँव में एक झील थी, वहाँ बहुत सारी मछलियाँ निवास करती थीं, उस झील के अंदर कई बड़ी मछलियों से एक मछली को सबकी सेवा करने के कारण रानी मछली बना दिया गया, बहुत दिन तक उसने झील का आनंद लिया। एक दिन वह समुद्र में रानी मछली के मन में रानी बनने का विचार आया, झील के पास से ही समुद्र की ओर रास्ता जाता था। एक दिन वह बिना किसी को वहां चली गयी। समुद्र में जाकर जब नीचे की ओर गई तो देखा गया कि दो-चार मछलियाँ उसकी ओर भाग रही हैं। रानी मछली उनसे और मछलियों के न दिखने का कारण पूछती है तो समुद्र की मछलियों ने बताया है कि यहां रहने वाली मछलियां मछुवारों के डर से समुद्र के नीचे जाकर बैठ जाती हैं। झील की रानी मछली ने जब समुद्र की रानी बनने का प्रस्ताव रखा तो उन मछलियों ने उसे सुझाव दिया कि अगर आप सुख-शांति से रहना चाहते हैं तो अपनी झील में वापस चली जाएँ, तो किसी भी समय आप भी काल के गाल में चली जाएँ हिरगी। भागेगी। वह अभी भी सोच रही थी कि इतनी देर में उसने देखा कि साडी की रस्सी में भगदड़ मच गई है, क्योंकि मछुवारे आ गए थे। उन मछलियों ने रानी मछली से कहा कि अब आपके लिए कोई सहारा नहीं है, रानी मछली घबराकर अपनी प्राणरक्षा करती हुई जल्दी-जल्दी झील में आई और अपनी मछलियों से सारी बात कह कर अपनी भूल स्वीकार की और प्रसन्न होने लगी।
आज के इस परिवेश में इसलिए यह कहानी याद आती है कि जो भारत देश अपनी आध्यात्मिक संस्कृति एवं अहिंसा की जीत के कारण सारी दुनिया के अंदर पूजा जाता था, सोने की चिड़िया के रूप में कहा जाता था, वह भारत देश को आज की दुनिया में अपना बनाता है। नाम देने के लिए तैयार है। अग्रणी करने के लिए, आर्थिक उपलब्धियों में स्वयं को आगे बढ़ाने के लिए किस तरह से अपनी अहिंसा नीति पर कुठाराघात कर रहा है। अगर सरकार यह सीखे कि उसी मछली की तरह समुद्र की स्वामिनी बनने के समान विश्व के मानसपटल पर नाम तो हो सकता है लेकिन अगर अपने सिद्धान्तों पर कुठाराघात करके वो नाम हमने पाया तो वह दिन दूर नहीं जब मछलियों को निगलने वाले मछुवारों की तरह, विदेशी पश्चिमी सिनेमा हमारी भारतीय संस्कृति को निगलने के लिए आतुर हो उठेगी। क्या ही अच्छा हो कि अहिंसा को भड़काने-प्रसारित करने वाले अनेक सेनाओं के नेता देश की सरकार को बढ़ावा देने के लिए, कि आप अपनी झील में ही भावुक रहें, पूरे समुद्र का स्वामी बनने का सपना न देखें, तभी हमारे देश की अस्मिता की रक्षा हो सकती है।
हमारे बोलने में अहिंसा, सदाचार, शाकाहार के बारे में विश्वास होता है, लेकिन मैं सोचता हूँ कि इन अहिंसकों के बीच अहिंसा की बात करने से क्या फायदा है? अगर हम बीच बाज़ार में कहें, अगर हम कत्लखानों के सामने कहें, जो नागरिकों के ट्रक जा रहे हैं उन्हें रोकने के लिए उन्हें ले जाने वालों को संदेश दें, अगर वह जो भरे हुए रास्ते में सार्वजनिक स्थान पर अनिवार्य रूप से गले पर छुरी चला रहे क्या उन्हें अपनी सेटिंग कोड जोड़ना जरूरी है तो कितना अच्छा हो सकता है, उन लोगों को काम में असमर्थ होने के कारण ही दुख हो रहा है।
वर्तमान समय में पाठ्य पुस्तकों में जैनधर्म एवं महावीर के जीवन को विकृत करके दिखाया जा रहा है। पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने सन् १९९३ में वह काम हाथ में लिया, उस समय सभी जोड़ों ने, सभी संतों ने साथ दिया तो आज हम उनसे कुछ सफलता प्राप्त कर सके हैं, भगवान ऋषभदेव को उन प्रथाओं में ला सके हैं। ऐसा ही एक विषय है कि लोग अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम के पाठ्यक्रम में गौरवान्वित महसूस करते हैं क्योंकि आगे चलकर अपने बच्चों को करियर बनाने की आवश्यकता होती है। कुछ बच्चों की किताबें मेरे देखने में आईं, एक किताब है—एन इनसाइट इनटू सोशल स्टडीज (पार्ट 2) दूसरी है—द जॉय ऑफ साइंस, ऐसी अनेक किताबें हैं जिनके अंदर एक पाठ पढ़ाया जाता है हमारी ज़रूरतें नाम से, जिसमें भोजन से संबंधित है जानकारी रहती है। आप सभी भी बच्चे आते हैं और हो सकते हैं कि यह सवाल भी करते होंगे कि माँ! मुझे अँधा क्यों नहीं दिया जाता ? क्योंकि तुम्हारे घर में अँधा नहीं आता, इसलिए तुम कुछ नहीं देते। क्या यह संभव है कि बच्चा आपको बताए कि वह हमें क्यों नहीं फगपगाता? इन किताबों के अंदर मछली के नाम पर मछली भी दिखाई गई है, मांस का टुकड़ा भी दिखाया गया है, अंदा भी दिखाया गया है और भूख के साथ दूध दिखाया गया है तथा सेब और लौकी आदि चीजें भी दिखाई गई हैं। उन बच्चों के कोमल मस्तिष्क के ऊपर यह दबाव डाला जाता है या समझा जाता है कि इन चीजों से आपको शक्ति प्राप्त होगी तो बच्चा जानता है कि जैसे दूध ऐसे ही अंदा है, जैसे सेब ऐसी ही मछली है। मैं जानता हूँ कि खरगोश का जो कत्ल हो रहा है वो सबके सामने है, लोग समझ रहे हैं कि ये बूचड़खाने हैं, इन खरगोशों का मांस खाने के लिए जा रहा है, खून की दवाओं के लिए जा रहा है या इन वस्तुओं को चमड़ा बनाना के लिए के लिए जा रहा है लेकिन जो धीरे-धीरे सामान्य तरीकों से आपके घरों के अंदर अंडा, मांस, मछली, ब्रेड, केक, पेस्ट्री, चकलेट, आइसक्रीम के रूप में प्रवेश कर रहे हैं, उन्हें रोकने की आवश्यकता है। अभी एक मामला सामने आया है कि कोल्डड्रिंक के अंदर किस तरह से जहर दिया जा रहा है, अंत में उन पर लेपापोटी करके बताया गया है कि वह तत्व के अंदर ही है, और उसकी मात्रा होनी चाहिए। वह सीमित है। इसका मतलब क्या है ? धीरे-धीरे मरने के लिए डाला जाता है जिसका नाम आप मरना न छोड़ते। मैं इन पुस्तकों के अंदर परिवर्तन के लिए कहना चाहता हूँ कि यदि प्राचीनकाल का इतिहास देखा जाए तो यह निश्चित है कि सदैव शाकाहारी लोग भी रहे हैं और मांसाहारी भी रहे हैं, लेकिन कम से कम शाकाहारी को मांसाहारी कहा गया है। को मांसाहार कहा गया। कारण करके अण्डे को शाखा नहीं बनाया गया। मछली उत्पादन को खेती करने वाले लोगों को कभी भी सफलता नहीं मिली। अगर कम से कम इन किताबों के अंदर दिया जाता है, अगर ईसाई संस्कृति या पश्चिमी सभ्यता में घुसना भी जा रहा है, तो उसे अलग से बताएं कि ये शाकाहारी चीजें हैं, ये मांसाहारी चीजें हैं। ऐसा पुरुषार्थ यदि पुस्तकों के लेखकों से निवेदन करके किया जाए कि आप शाकाहारी और मांसाहारी वनस्पतियों को अलग-अलग रूप में प्रस्तुत करें और क्या ही अच्छा हो कि छोटे-छोटे बच्चों को जो पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं उनमें मांसाहारी वनस्पतियों को न ही प्रतिपादित किया जाए क्योंकि भारतीय संस्कृति, शाकाहारी की संस्कृति रही है।
वास्तव में यह धरती अहिंसा की धरती है, यहाँ अहिंसा का अवतार पहले हुआ, महावीर का अवतार बाद में हुआ और इसलिए हम महावीर के नारे को ज्योतिर्मय करते हैं। हम कहते हैं कि महावीर का अमर संदेश- ‘जियो और जीने दो’। उसी अहिंसा को अपने हृदय में धारण करते हुए आप सभी को सर्वदा ही संकल्पपूर्वक अहिंसक भारत के निर्माण में सहयोगी बनना चाहिए तभी आप सच्चे भारतीय कहने के अधिकारी होंगे।
र : श