सिंहपुरी श्रेयाँसनाथ जन्मस्थली।
है प्रसिद्ध जो सारनाथ पुण्यस्थली।।
उसकी पूजन हेतु करूँ स्थापना।
तीरथ अर्चन से होगा हित आपना।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्र!
अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्र!
अत्र तिष्ठ तिष्ठः ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्र!
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
प्रासुक जल से भर झारी, कर धार मिटे भ्रम भारी।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय जन्म-
जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिरि चन्दन लाया, चर्चत भवताप नशाया।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय संसार-
तापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
गजमोती सम अक्षत हैं, अर्चत लूँ अक्षय पद मैं।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय अक्षयपद-
प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
पुष्पों को चुन-चुन लाऊँ, भर अंजलि नाथ चढ़ाऊँ।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय कामबाण-
विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
पकवान अनेक बनाये, पूजन हेतू ले आये।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय क्षुधारोग-
विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मणिदीप कपूर जलाऊँ, आरति कर पुण्य बढ़ाऊँ।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय मोहांधकार-
विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कृष्णागरु धूप बनाई, अग्नी में उसे जलाई।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय अष्टकर्म-
दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल आदि फल लाऊँ, शिवफल हित उन्हें चढ़ाऊँ।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय मोक्षफल-
प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
आठों द्रव्यों को मिलाया, ‘‘चन्दना’’ प्रभू को चढ़ाया।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय अनर्घ्यपद-
प्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल से करूँ शान्तीधारा, हो शांत जगत यह सारा।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वन्दन।।१०।।
शान्तये शांतिधारा
उपवन से पुष्प मंगाऊँ, पुष्पांजलि कर सुख पाऊँ।
करूँ सिंहपुरी का अर्चन, श्रेयाँसनाथ पद वंदन।।११।।
दिव्य पुष्पांजलिः
(इति मण्डलस्योपरि अष्टमदले पुष्पांजल् क्षिपेत्)
जिस सिंहपुरी में विष्णुमित्र, राजा ने राज्य किया सुंदर।
देवों की टोली आती थी, जिनकी रानी नंदा के घर।।
शुभ ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी को, श्री श्रेयांस गर्भ में आये थे।
मैं उस नगरी को नमूँ जहाँ, धनपति ने रतन बरसाये थे।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथगर्भकल्याणक पवित्रसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तिथि फाल्गुन वदि ग्यारस को जहाँ, श्रेयाँसनाथ का जन्म हुआ।
सुरपति ने मेरु सुदर्शन पर, कर न्हवन जन्म निज धन्य किया।।
फिर सिंहपुरी में लाकर के, जन्मोत्सव पुनः मना डाला।
उस भू को अर्घ्य चढ़ा मैंने , निज जीवन सफल बना डाला।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मकल्याणक पवित्रसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
उपभोग राज्यवैभव का कर, वैराग्य जहाँ मन में आया।
जहाँ पर बसंतऋतु नाश देख, प्रभु ने दीक्षा पथ अपनाया।।
उस सिंहपुरी में फाल्गुन वदि, ग्यारस को तपकल्याण हुआ।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, तो मेरा भी कल्याण हुआ।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथदीक्षाकल्याणक पवित्र सिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ माघ वदी नवमी को जहाँ, जिनवर को केवलज्ञान हुुआ।
श्रेयाँसनाथ तीर्थंकर ने, तुंबुरु तरु नीचे ध्यान किया।।
उस सिंहपुरी को सारनाथ के, नाम से जाना जाता है।
जो अर्घ्य चढ़ाकर जजे इसे, श्रुतज्ञान उसे मिल जाता है।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथकेवलज्ञानकल्याणक पवित्रसिंह-
पुरीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रेयाँसनाथ के गर्भ जन्म तप, ज्ञान चार कल्याण जहाँ।
वह सिंहपुरी है धन्य तथा, सम्मेदशिखर निर्वाण हुआ।।
चारों कल्याणक से पवित्र, श्रीसिंहपुरी को वंदन है।
पूर्णार्घ्य समर्पित कर चाहूँ, तीरथपूजन का शुभ फल मैं।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयासँनाथगर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञानचतुः
कल्याणकपवित्र सिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं सिंहपुरी जन्मभूमि पवित्रीकृत श्रीश्रेयाँसनाथजिनेन्द्राय नमः।
तर्ज-आओ बच्चोें………
अष्ट द्रव्य का थाल सजाकर, तीर्थ यजन को आये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल बनाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन ।। टेक. ।।
बड़े पुण्य से तीर्थंकर प्रभु, जन्म धरा पर लेते हैं।
अपनी पावनता से वे जग, को पावन कर देते हैं।।
उनकी पदरज पाने हेतु, तीर्थ यजन को आये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल बनाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन।।१।।
ढाई द्वीपों में इक सौ, सत्तर जो कर्मभूमियाँ हैं।
वे तीर्थंकर के जन्मों से, बनती धर्मभूमियाँ हैं।।
इसीलिए वे जन्मक्षेत्र, साक्षात तीर्थ कहलाये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल सजाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन।।२।।
जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र का, आर्यखण्ड जो पहला है।
उसमें जन्मे चौबिस तीर्थंकर का परिचय करना है।।
उनकी जन्मभूमियों को हम, वन्दन करने आये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल सजाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन।।३।।
ग्यारहवें तीर्थंकर श्रीश्रेयाँसनाथ को नमन करूँ।
चारकल्याणक से पावन, उनके जन्मस्थल को प्रणमूँ।।
अतिशयकारी प्रतिमा के, दर्शन भक्तों ने पाये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल सजाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन।।४।।
जहाँ प्रभू ने राजा बनकर, राजनीति सिखलाई थी।
धर्मनीति के साथ जहाँ पर, न्यायनीति बतलाई थी।
होते ही वैराग्य जहाँ, लौकान्तिक सुरगण आये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल सजाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन।।५।।
ध्यानलीन हो जहाँ प्रभू ने, कर्म घातिया नष्ट किया।
दिव्यध्वनि सुन जहाँ प्राणियों, ने मिथ्यातम ध्वस्त किया।।
उस श्रेयासँनाथ धर्मस्थल का यश गाने आये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल सजाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन।।६।।
हे स्वामी! इस कलियुग में, सम्यक्त्व जहाँ अतिदुर्लभ है।
वहीं आपकी भक्ति से, भक्तों को मिलता सब कुछ है।।
इसीलिए ‘‘चन्दनामती’’, हम अर्घ्य सजाकर लाये हैं।
सिंहपुरी गुणमाल सजाकर, चरण चढ़ाने आये हैं।।
सिंहपुरी को नमन, सारनाथ को नमन।।७।।
सिंहपुरी की अर्चना, करे चमत्कृत लाभ।
जिन प्रतिमा की वन्दना, हरे सभी दुख व्याधि।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीश्रेयाँसनाथजन्मभूमिसिंहपुरीतीर्थक्षेत्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जो भव्यप्राणी जिनवरों की, जन्मभूमी को नमें।
तीर्थंकरों की चरण रज से, शीश उन पावन बनें।।
कर पुण्य का अर्जन कभी तो, जन्म ऐसा पाएंगे।
तीर्थंकरों की श्रँखला में, ‘‘चन्दना’’ वे आएंगे।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।