परमपूज्य आचार्यश्री ने उन दिनों जीर्णोद्धारक संस्था की स्थापना की थी, संस्था का कार्यभार अच्छी तरह से चलता रहे इसलिए प्रामाणिक और सेवाभावी कार्यकर्ताओं के चयन करने के बारे में अपूर्व चातुर्य आचार्यश्री में था। दो वर्ष में तीन लाख रुपयों की धु्रवनिधि हो गई। ये सर्व निधि ‘तुलजाराम चतुरचन्द शहा’ रा. बारामती वाले, इन्हें कोषाध्यक्ष बनाकर इनके स्वाधीन कर दिया।