विश्व इतिहास पर दृष्टि डालने से पता चलता हैं कि संसार के सभी प्रसिद्ध महापुरुष चिन्तक, वैज्ञानिक, कलाकार, कवि, लेखक जैसे पाइथागोरस, चूटार्क प्लौटीनस, सर आईजन न्यूटन, महान चित्रकार लिनाडों डाविसी, डाक्टर एनी बेसेन्ट अलबर्ट आईन्सटाइन, रेवरेण्ड डा. वाल्टर वाल्श व जार्ज बर्नार्ड शा, टॉल्सटॉय, कवि मिल्टन, पोप, शैले, सुकरात व यूनानी दार्शनिक अरस्तु सभी शाकाहारी थे । शाकाहार ने ही उन्हें सहिष्णुता, दयालुता, अहिंसा आदि सद्गुणों से विभूषित किया । महान वैज्ञानिक अल्वर्ट आईन्सटाईन कहते थे कि शाकाहार का हमारी प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ता है यदि दुनिया शाकाहार को अपना ले, तो इन्सान का भाग्य पलट सकता है ” ल्योनार्डो डाविसी तो पिंजरों में कैद पक्षियों को खरीद कर पिंजरे खोल कर उन्हें उड़ा दिया करते थे, वे कहते थे यदि मनुष्य स्वतन्त्रता चाहता है तो पशु पक्षियों को कैद क्यों करें । सेंट मैब्यू, सेंट पाल मांसाहार को धार्मिक पतन का सूचक मानते थे । मैथोडिस्ट और सकेथ डे एडवेण्टिएस्ट मांस खाने और शराब पीने की सख्त मनाही करते हैं । टालस्टाय और दुखोबोर (रुस के मोमिन ईसाई) भी मांसाहार को ईसाई धर्म के विरुद्ध मानते थे । यूनानी दार्शनिक पायथागोरस के शिष्य रोमन कवि सैनेका जब शाकाहारी बने तब उन्हें यह सुखद और आश्चर्यजनक अनुभव हुआ कि उनका मन पहले से अधिक स्वस्थ, सावधान व समर्थ हो गया ।
जार्ज बर्नार्ड शॉ ने एक कविता में ऐसे लिखा है हम मांस खाने वाले वे चलती फिरती कब्रें है, जिनमें वध किये हुए जानवरों की लाशें दफन की गई है, जिन्हें हमारे स्वाद के चाव के लिये मारा गया है । बनार्ड शॉ को डाक्टरों ने कहा कि यदि आप मांसाहार नहीं करेंगे तो मर जायेंगे । इस पर बर्नार्ड शॉ ने कहा कि मांसाहार से तो मृत्यु अच्छी है । उन्होंने डाक्टरों से कहा कि यदि मैं बच गया तब मैं आशा करता हूँ कि आप शाकाहारी हो जाएँगे । शॉ तो बच गए किन्तु डाक्टर शाकाहारी नहीं बने। उस महान् आत्मा ने साथी जीवों को खाने की बजाय मर जाना स्वीकार किया। इसी प्रकार महात्मा गांधी का बच्चा जब सख्त बीमार हुआ तो डाक्टरों ने उनसे कहा कि यदि इसे मांस का सूप नहीं दिया गया तो यह जिन्दा नहीं रहेगा, किन्तु महात्मा गांधी ने कहा कि चाहे जो परिणाम हो मांस का सूप नहीं देंगे। बच्चा बगैर मांस के प्रयोग के ही बच गया। चाणक्य नीति में कहा गया हैं कि जो मांस खाते है, शराब पीते हैं उन पुरुषरूपी पशुओं के बोझ से पृथ्वी दुःख पाती है।
रमण महिर्षी ने अहिंसा को सर्वप्रथम धर्म बताया, व सात्विक भोजन जैसे फल, दूध, शाक, अनाज आदि को ही एक निश्चित मात्रा में लेने का आदेश दिया है। भारतीय ऋषि-मुनि कपिल, व्यास पाणिनि, पतंजलि शंकराचार्य, आर्यभट्ट आदि सभी महापुरुष, इस्लाम के सभी सूफी सन्त व ‘ अहिंसा परमोधर्मः’ का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर, गुरुनानक, महात्मा गाँधी सभी शुद्ध शाकाहारी थे और सभी ने मांसाहार का विरोध किया है, क्योंकि शुद्ध बुद्धि व आध्यात्मिकता मांसाहार से संभव नहीं है। शाकाहार क्रान्ति, मई 90”महात्मा गाँधी ने तो यहाँ तक कहा हैं कि मेरे विचार के अनुसार गौ रक्षा का सवाल स्वराज्य के प्रश्न से छोटा नहीं है। कई बातों में मैं इसे स्वराज्य के सवाल से भी बड़ा मानता हूँ।
मेरे नज़दीक गौ-वध व मनुष्य वध एक ही चीज है प्रसिद्ध कवि Coleridge ने अपनी कविता दी एनशैन्ट मैरीनर (The Ancient Mariner) में जो कहा है वह सभी धर्मों का निचोड़ है।
He prayeth best, who liveth best All things both great and small, For the dear God Who loveth us, He made and loveth all
भावार्थ: उत्तम पूजा तो उसकी है, जो प्रेम सभी से करता है सब छोटे बड़े जीव जग के जो अपनी भांति समझता है। क्योंकि वह परम पिता जिसने जग में सबको उपजाया है हर जीव से करता वही स्नेह जैसा व हम से करता है।