समस्त पदार्थों के प्रकाश करने में सूर्य के समान भावी तीर्थंकर श्री पद्मनाभ भगवान को नमस्कार कर स्वकल्याण सिद्ध्यर्थ उन्हीं भगवान के आचार्यों द्वारा प्रतिपादित पाँच कल्याणों का वर्णन करता हूँ।१
उत्सर्पिणी काल के एक हजार वर्ष बाद अतिशय चतुर उत्तम ज्ञान के धारक चौदह कुलकर ‘मनु’ होंगे। और वे अपने बुद्धिबल से प्रजा को शुभ कार्य में लगायेंगे। उन सब में शुभकर्ता, अनेक देवों से पूजित, अनेक गुणों के आकर, अपनी किरणों से समस्त अन्धकार को नाश करने वाले, गंभीर, अनेक आभरणों से शोभित और अतिशय प्रसिद्ध तीर्थंकर पद्मनाभ के पिता अन्तिम कुलकर महापद्म होंगे। कुलकर महापद्म मुख से चन्द्रमा को, नेत्रों से ताराओं को, वक्षस्थल से शिला को, दाँतों से कुन्दपुष्प को और बाहुयुग्म से शेषनाग को जीतेंगे। अनेक राजाओं से वंदित राजा महापद्म में उत्तमोत्तम गुण, रूप, समस्त कलाएँ, शील, यश आदि होंगे।
महापद्म अपने उत्तम बुद्धिबल से जीवेंगे। मनोहर रूप से कामदेव की तुलना करेंगे। निरन्तर विभूति के प्रभाव से देवतुल्य और अपने शरीर की कांति से सूर्य के समान होंगे। महापद्म के रहने के लिए इन्द्र की आज्ञा से कुबेर अनेक रत्नों से जड़ित, मनोहर भूमियों से शोभित, अयोध्या नगरी का निर्माण करेगा।
अयोध्या का परकोटा मनोहर किरणों से व्याप्त, मुक्ताफल और भी अनेक रत्नों से निर्माण किया गया स्वर्ग की समता को धारण करेगा। घर स्वर्ग घरों के साथ स्पर्द्धा करेंगे। अयोध्या के घर विमानों को जीतेंगे। मनुष्य देवों को, स्त्रियाँ देवांगनाओं को, राजा इन्द्रों को और वृक्ष कल्पवृक्षों को नीचा दिखायेंगे। अयोध्या में रहने वाली कामिनियों के मुख से चन्द्रमंडल जीता जायेगा। नखों से तारागण, मनोहर नेत्रों से कमल और गमन से हाथी पराजित होंगे। अयोध्यापुरी के महलों पर लगी ध्वजा चन्द्रमण्डल का स्पर्श करेगी। अयोध्यापुरी का विशेष कहाँ तक वर्णन किया जाये ? जिनेन्द्र के रहने के लिए कुबेर इन्द्र की आज्ञा से उसे एक ही बनावेगा। और वहाँ अनेक राजाओं से पूजित चौतरफा अपनी कीर्ति प्रसार करने वाले अतिशय पुण्यवान, चतुर, सुन्दर और सात हाथ शरीर के धारक कुलकर महापद्म, महापद्म की प्रिय भार्या सुन्दरी होगी। सुन्दरी अतिशय शरीर की धारक, पद्म के समान सुन्दर, रति के सामन होगी। उसके केश अतिशय दैदीप्यमान और उत्तम होंगे। मुख कमल की सुगन्धि से उसके मुख पर भौंरे गिरेंगे। और उसके सिर पर रत्न जड़ित दैदीप्यमान चूड़ामणि शोभित होगा। अतिशय तिलक से युक्त उसका भाल अतिशय शोभा को धारण करेगा और वह ऐसा मालूम पड़ेगा मानों त्रिलोक की स्त्रियों के विजय के लिए विधाता ने एक नवीन यंत्र रचा हो। कानों तक विस्तृत, विशाल और रक्त उसके नेत्र होंगे और वे पद्मदल की शोभा धारण करेंगे।।१-१८।।
सरस्वती उत्तम रीति से दैदीप्यमान होती है उसी प्रकार सुन्दरी भी अतिशय सुडोल होगी। सरस्वती जैसे अनेक रसों से युक्त होती है, सुन्दरी भी लावण्ययुक्त होगी। सरस्वती जैसी शुभ अर्थयुक्त होती है, सुन्दरी भी अपनी अवयवों से सुडौल होगी। माता सुन्दरी गति से हथिनी जीतेगी और नयन से मृगी, वाणी से कोकिल, रूप से रति एवं मुख से चन्द्रमा जीतेगी। भगवान के जन्म के छह मास पहले से जन्म तक पन्द्रह मास पर्यंत कुबेर इन्द्र की आज्ञा से तीनों काल अमोघ रत्नों की वर्षा करेगा। माता की सेवा के लिए इन्द्र की आज्ञा से छप्पन कुमारियाँ माता की सेवार्थ आवेंगी और राजा महापद्म को नमस्कार कर राजमहल में प्रवेश करेंगी।।१९-३५।।
किसी समय कमल नेत्रा रानी सुन्दरी शयनागार में अपनी मनोहर शय्या पर शयन करेगी अचानक ही वह रात्रि के पिछले प्रहर में ये स्वप्न देखेगी।
(१) जिससे मद चू रहा है ऐसा सफेद हाथी,
(२) उन्नत स्कंध का धारक नाद करता हुआ बैल,
(३) हाथी को विदारण करता बलवान िंसह,
(४) दुग्ध से स्नान करती लक्ष्मी,
(५) भ्रमरों से व्याप्त उत्तम दो माला,
(६) सम्पूर्ण चन्द्रमा
(७) अंधकार का नाशक (प्रतापी सूर्य)
(८) जल में किलोल करती दो मछलियाँ
(९) दो उत्तम घड़े
(१०) अनेक पद्मों से व्याप्त (सरोवर)
(११) रत्न मीन आदि से युक्त विशाल समुद्र
(१२) मणि जड़ित सोने का िंसहासन
(१३) अनेक देवांगनाओं से शोभित सुर विमान
(१४) नागेन्द्र का घर
(१५) रत्नों का ढेर
(१६) और निर्धूम अग्नि।
तथा उन्नत देह का धारक पवित्र किसी हाथी को अपने मुख में प्रवेश करते भी वह सुन्दरी देखेगी। प्रात:काल में वीणा, ढक्का, शंख आदि के शब्दों से और मागधों की स्तुति के साथ रानी पलंग से उठाई जायेगी और शय्या से उठते समय वह प्राची दिशा से जैसा सूर्य उदित होता है वैसा शोभा धारण करेगी। महारानी उठकर स्नान करेगी और सिर पर मुकुट, कंठ में ललित हार, हाथों में कंगन, भुजाओं में बाजूबन्ध, कानों में कुण्डल, कमर पर करधनी एवं पैरों में नूपुर पहनेगी। तथा अपने स्वामी राजा महापद्म के पास जायेगी और सिंहासन पर उनके बामभाग में बैठकर चित्त में हर्षित हो इस प्रकार कहेगी।
स्वामिन् ! रात्रि के पिछले प्रहर मैंने स्वप्न देखे हैं कृपाकर उनका जैसा फल हो वैसा आप कहें। रानी के ऐसे वचन सुन राजा महापद्म इस प्रकार कहेंगे—
प्रिये ! मृगाक्षि ! जो तुमने मुझसे स्वप्नों का फल पूछा है मैं कहता हूँ तुम ध्यानपूव&क सुनो जिससे तुम्हें सुख मिलें—
स्वप्न में हाथी के देखने का फल तो यह है कि तेरे पुत्र रत्न उत्पन्न होगा। बैल के देखने का फल यह है कि वह तीन लोक में अतिशय पराक्रमी होगा। तूने जो सिंह देखा है उसका फल यह है कि तेरा पुत्र अनन्त वीर्यशाली होगा। और दो मालाओं के देखने से धर्म तीर्थ का प्रवर्तक होगा। जो तूने लक्ष्मी को स्नान करते देखा है उसका फल यह है कि मेरू पर्वत पर तेरे पुत्र को ले जाकर देवगण क्षीरोदधि के जल से स्नान करावेंगे। चन्द्रमा के देखने से तेरा पुत्र समस्त जगत को आनन्द प्रदान करने वाला होगा। सूय& के देखने का फल यह है कि तेरा पुत्र अद्वितीय कांति का धारक होगा।
कुम्भ के देखने से अगाध द्रव्य का स्वामी होगा। मीन के देखने से तेरा पुत्र सुख का भंडार होगा और उत्तमोत्तम लक्षणों का धारक होगा। समुद्र के देखने का फल यह है कि तेरा पुत्र ज्ञान का समुद्र होगा और जो तूने िंसहासन देखा है उससे तेरा पुत्र तीन लोक के राज्य का स्वामी होगा। देव विमानों के देखने से बलवान और पुण्यवान होगा। तूने जो नागेन्द्र का घर देखा है उसका फल यह है कि तेरा पुत्र जन्मते ही अवधिज्ञान का धारक होगा। चित्र-विचित्र रत्नराशि देखने से तेरा पुत्र अनेक गुणों का धारक होगा। निर्धुम अग्नि के देखने का यह फल है कि तेरा पुत्र समस्त कम& नाश कर सिद्धि पद प्राप्त करेगा। और तूने जो मुख में हाथी प्रवेश करते देखा है उसका फल यह है कि तेरे शीघ्र ही पुत्र होगा।
राजा के मुख से ज्यों ही रानी स्वप्न फल सुन हर्षित होगी त्यों ही महान पुण्य का भंडार महाराज श्रेणिक का जीव नरक की आयु का विध्वंसकर रानी सुन्दरी के शुभ उदर में जन्म लेगा। तीर्थकर महापद्म का आगमन अवधिज्ञान से विचार देवगण अयोध्या आवेंगे। तीथं&कर के माता पिता को भक्तिपूव&क प्रणाम करेंगे। उन्हें उत्तमोत्तम वस्त्र पहनायेंगे।
भगवान का गर्भ कल्याणक कर सीधे स्वग& चले जायेंगे और वहाँ समस्त पुण्यों के भंडार समस्त कर्मनाश करने वाले भगवान तीर्थकर की कथा सुन आनन्द से रहेंगे। छप्पन कुमारियाँ माता की भोजनादि से भक्तिपूव&क सेवा करेंगी। आज्ञानुसार माता का स्नपन, विलेपन आदि काम करेंगी। कोई कुमारी माता के पैर धोयेगी। कोई उनके सामने उत्तमोत्तम पुष्प लाकर धरेगी। कोई माता की देह में तेल मलेगी। कोई क्षीरोदधि जल से माता को स्नान करायेगी। कोई पूवा, माँड, लड्डू, खीर, उर्द, मूँग के स्वाद दूध, दही और भी भाँति के व्यंजन माता को देगी। कोई माता के भोजनार्थ उत्तमोत्तम भोजन बनाने के लिए उत्तमोत्तम पात्र देगी। कोई-कोई माता की प्रसन्नता के लिए हावभावपूर्वक नृत्य करेगी। कोई माता की आज्ञानुसार बर्ताव करेगी और कोई कुमारिका अपने योग्य बता&व से माता के चित्त को अतिशय आनन्द देगी। कोई-कोई कुमारी कत्था-चूना, सुपारी रखकर सुन्दरी को पान देगी। कोई उसके गले में अतिशय सुगन्धित माला पहनायेगी, कोई-कोई माता के लिए मनोहर शय्या का निमा&ण करेगी और कोई रत्नों के दीपक जलायेगी। कोई-कोई कुमारी माता के मस्तक पर मुकुट, कान में कुण्डल, हाथ में कंगन, गले में हार, नेत्र में काजल, मुख में पान, मस्तक पर तिलक, कमर में करधनी, नाक में मोती, कंठ में कंठी, पैरों में नूपुर, पाँव की अंगुलियों में बीछिये पहिनायेगी। जब नौवां महीना पास आ जायेगा तब कुमारियाँ माता के विनोदार्थ क्रिया गुप्त, कतृ गुप्त, कम& गुप्त और प्रहेलिका कहकर माता का आनन्द बढ़ायेगी। कोई पूछेगी, बताओ माता-शरीर का ढँकने वाला कौन है ? चन्द्र मंडल में क्या है ? और पाप की कृपा से जीव कैसे होते हैं ? माता उत्तर देगी।।३६-६५।।
कुमारियाँ फिर पूछेंगी बता माता—जीवों का अन्त में क्या होता है ? कामी लोग क्या करते हैं ? ध्यान के बल से योगी वैâसा होता है ? माता उत्तर देगी—(१) विनाश, (२) विलास, (३) विपास।
कोई कुमारी माता से यह कहेगी, शुभ लक्षणों का आकर, मृगनयनी! प्रियवादिनी ! नियम से आपके गभ& में किसी पुण्यवान ने अवतार लिया है। माता यह झूठ न समझो क्योंकि जो मनुष्य पक्षपाती और पूज्यों का वंचन करते हैं संसार में वे अनेक कष्ट भोगते हैं। इस प्रकार समस्त कुमारियाँ तीनों काल हृदय से माता की सेवा करेंगी और तीथं&कर, चक्रवती&, नारायण, प्रति- नारायण, वासुदेव आदि महापुरुषों की कथा कहकर माता का मन आनन्दित करेंगी। प्राय: स्त्रियों के गभ& के समय वृद्धि, आलस्य, तन्द्रा वगैरह हुआ करते हैं किन्तु माता के गभ& के समय न तो उदर वृद्धि होगी, न आलस्य और तंद्रा होगी, मुख पर सफेदाई भी न होगी। जब पूरे नवमास हो जायेंगे तब उत्तम योग में और उत्तम दिन, चन्द्रमा, लग्न और नक्षत्र में माता उत्तम पुत्ररत्न जनेगी। उस समय पुत्र के शरीर की कांति से दिशा निम&ल हो जाती है।
भवनवासियों के घरों में शंख शब्द होने लगेंगे। व्यंतरों के घरों में भेरी बजेगी। ज्योतिषियों के घर मेघ ध्वनि के समान सिंहनाद और वैमानिक देवों के घर घंटा शब्द होंगे। अपने अवधि बल से तीथं&कर का जन्म जान देवगण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर अयोध्या आयेंगे। प्रथम स्वग& का इन्द्र भी अतिशय शोभनीय ऐरावत गज पर सवार हो अपनी इन्द्रानी के साथ अयोध्या आयेगा। अयोध्या आकर इन्द्रानी इन्द्र की आज्ञा से शीघ्र ही प्रस्ति घर में प्रवेश करेगी। वहाँ तीर्थंकर को अपनी माता के साथ सोता देख उनकी गूढ़भाव से स्तुति करेगी। माता को किसी प्रकार का कष्ट न हो इसलिये इन्द्रानी उस समय एक मायामयी पुत्र का निर्माण करेगी और उसे माता के पास सुलाकर और भगवान को हाथ में लेकर इन्द्र के हाथ में देगी। भगवान को देख इन्द्र अति प्रसन्न होगा।।६६-८६।।
और शीघ्र ही हाथी पर विराजमान करेगा। उस समय ईशान इन्द्र भगवान पर छत्र लगायेगा। सनत्कुमार और माहेन्द्र दोनों इन्द्र चमर ढोरेंगे एवं सबके सब मिलकर आकाश मार्ग से मेरू पर्वत की ओर उसी क्षण चल देंगे। मेरू पर्वत पर पहुँच इन्द्र भगवान को पांडुक शिला पर बिठायेगा। उस समय देवगण एक हजार आठ कलशों से भगवान का अभिषेक करेंगे। इन्द्र उसी समय भगवान का नाम पद्मनाभ रखेगा। अनेक प्रकार भगवान की स्तुति करेगा और उस समय भगवान का रूप देख तृप्त न होता हुआ सहस्राक्ष होगा। बालक भगवान को इन्द्रानी अपनी गोद में लेगी और अनेक भूषणों से भूषित करेगी। भूषण भूषित भगवान उस समय सूर्य के समान जान पड़ेंगे और दुंदुभि, आनक, शंख, काहलों के शब्दों के साथ नृत्य करते हुए ताल के शब्दों से समस्त दिशापूर्ण करते हुए, लयपूर्वक राग सहित सरस गान करते हुए और जय जय शब्द करते हुए, समस्त देव मेरु पर्वत पर भगवान के जन्मकाल का उत्सव मनायेंगे। पश्चात् अनेक देवों से सेवित इन्द्र भगवान को गोद में लेकर हाथी पर विराजमान करेगा। अनेक शालि धान्ययुक्त, बड़ी-बड़ी गलियों से व्याप्त ध्वजायुक्त, अनेक मकानों से शोभित अयोध्यापुरी में आयेगा, बड़े-बड़े नेत्रों से शोभित भगवान को पिता के सुपुर्द करेगा। मेरू पर्वत पर जो काम होगा इन्द्र उस सबको भगवान के पिता महापद्म से कहेगा। पिता- माता के विनोदार्थ इन्द्र फिर नृत्य करेगा एवं भगवान को अनेक भूषण प्रदान कर और भगवान को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर इन्द्र समस्त देवों के साथ स्वर्ग चला जायेगा। इस प्रकार समस्त देवों से पूजित भाँति-भाँति के आभरणयुक्त देह का धारक, अनेक गुणों का आकर बालक पद्मनाभ दिनों दिन बढ़ता हुआ पिता माता का संतोष स्थान होगा। पद्मनाभ अमृत से परिपूर्ण अपने पाँव के अंगूठे को चूसेगा और पवित्र देह का धारक शुभ लक्षणों का स्थान वह, कलाओं से जैसा चन्द्रमा बढ़ता चला जाता है वैसा ही शुभ लक्षणों से बढ़ता चला जायेगा। अतिशय पुण्यात्मा तीर्थंकर पद्मनाभ के शरीर की ऊँचाई सात हाथ होगी और आयु ११६ (एक सौ सोलह) वर्ष की होगी। तीर्थंकर पद्मनाभ की स्त्रियाँ उत्तम अनेक गुणों से भूषित सुवर्ण के समान कांति की धारक शुभ और यौवनकाल में अतिशय शोभायुक्त होंगी। भगवान वृषभदेव के जैसे भरत चक्रवर्ती आदि शुभ लक्षणों के धारक पुत्र हुए थे, वैसे ही तीर्थंकर पद्मनाभ के भी चक्रवर्ती पुत्र होंगे। तीर्थंकर वृषभदेव के ही समान तीर्थंकर पद्मनाभ राज्य करेंगे। नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करेंगे और प्रजा वर्ग को षट्कर्म की ओर योंजित करेंगे तथा देश-ग्राम-पुर-द्रोण आदि की रचना करायेंगे। वर्णभेद और नृपवंश भेद का निर्माण करेंगे। राजा लोगों को नीति की शिक्षा देंगे, व्यापार का ढंग सिखलायेंगे और भोजनादि सामग्री की शिक्षा प्रदान करेंगे। इस रीति से भगवान पद्मनाभ कुछ दिन राज्य करेंगे पश्चात् कुछ निमित्त पाकर शीघ्र ही भवभोगों से विरक्त हो जायेंगे और सद्धर्म की ओर अपना ध्यान खीचेंगे। भगवान को भवभोगों से विरक्त जान शीघ्र ही लौकांतिक देव आयेंगे और भगवान की बार-बार स्तुति कर उन्हें पालकी में बैठाकर ले जायेंगे। भगवान तप धारण कर और तप के प्रभाव से मन:पर्ययज्ञान प्राप्त करेंगे और पीछे केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। भगवान को केवलज्ञानी जान देवगण आयेंगे और समवसरण की रचना करेंगे। भगवान समवसरण में सिंहासन पर विराजमान हो भव्य जीवों को धर्मोपदेश देंगे। जहाँ-तहाँ विहार भी करेंगे और अपने उपदेशरूपी अमृत से भव्यजीवों के मन संतुष्ट कर समस्त कर्मों का नाशकर निर्वाण स्थान चले जायेंगे। जिस समय भगवान मोक्ष चले जायेंगे उस समय देव निर्वाण कल्याणक मनायेंगे तथा सानन्द अपनी देवागंनाओं के साथ स्वर्ग चले जायेंगे और वहाँ आनन्द से रहेंगे।।८७-१२५।।