तर्ज-कभी तू………
मुझे पावापुर जाना है, मुझे जलमंदिर जाना है,
वहाँ लाडू चढ़ाकर, दीवाली का पर्व मनाना है।
जय जय दीवाली हो………जय जय दीवाली………।।टेक.।।
महावीर प्रभु कर्म नाशकर, मोक्षधाम जब पहुँचे।
पावापुर के जलमंदिर में, देव इन्द्र सब पहुँचे-देव इन्द्र सब पहुँचे।
उनकी ही यादों में, अब दीप जलाना है।
घर घर में धन लक्ष्मी का, भण्डार भराना है।।मुझे.।।१।।
वह पावापुरी सरोवर, अब तक भी लहर रहा है।
प्राचीन वहाँ जलमंदिर, का उपवन महक रहा है, हाँ उपवन महक रहा है।
आती है याद वहाँ, महावीर प्रभू जी की।
जिनको वन्दन करती, है भारत की धरती।।मुझे.।।२।।
महावीर वीरसंवत्सर, मंगलमय हो सब जग में।
नर्वाण की ही स्मृति में, जो शुरू हुआ भारत से……..जो शुरू…….
‘‘चन्दनामती’’ सबको, दीवाली मंगल हो।
जीवन में हरक्षण सबके, नव खुशियाँ शामिल हों।।मुझे.।।३।।
(तर्ज-मेरे देश की धरती…….)
कुण्डलपुर धरती वीरप्रभू के जन्म से धन्य हुई है
कुण्डलपुर धरती………..ओ………….।।टेक.।।
छब्बिस सौ वर्षों पूर्व जहाँ, धनपति ने रतन बरसाये थे।
रानी त्रिशला के सपने सुन, सिद्धार्थराज हरषाये थे।।
तीर्थंकर सुत को पाकर त्रिशला माता धन्य हुई है।।
कुण्डलपुर धरती……………ओ………….।।१।।
पलने में देख वीर प्रभु को, मुनियों की शंका दूर हुई।
इक देव सर्प बनकर आया, उसकी शक्ती भी चूर हुई।
कुण्डलपुर की ये सत्य कथाएं जिन आगम में कही हैं।।
कुण्डलपुर धरती…………….ओ………….।।२।।
गणिनी माताश्री ज्ञानमती के, चरण पड़े कुण्डलपुर में।
अतएव वहाँ पर नंद्यावर्त, महल मंदिर भी शीघ्र बने।।
महावीर जन्मभूमि विकास की घड़ियां धन्य हुई हैं।
कुण्डलपुर धरती……………ओ………….।।३।।
उस जन्मभूमि के दर्शन कर, तुम भी निज शंका दूर करो।
महावीर प्रभू के सन्मुख अपनी, इच्छाएँ परिपूर्ण करो।।
‘‘चन्दनामती’’ उसके दर्शन पाकर के धन्य हुई है।
कुण्डलपुर धरती…………..ओ………….।।४।।