मंदिर एवं वेदी शुद्धि हेतु घटयात्रा और शुद्धि विधान विधि
मंदिर, वेदी तथा कलशों की शुद्धि के लिए तीर्थजल की आवश्यकता होती है। अत: किसी जलाशय पर गाजे-बाजे के साथ जाकर जल लाना चाहिए। इस कार्य के लिए कम से कम ९ और अधिक से अधिक ८१ घटों का भरना बतलाया है। कहीं-कहीं १०८ या २१, ४१ आदि कलश ले जाते हैं। घटों को तूल तथा नारियल आदि से बाँधकर इन्द्र-इन्द्राणी तथा अन्य स्त्री-पुरुषों के द्वारा जलाशय पर ले जाना चाहिए। वहाँ पीले पुष्पों अथवा पंचरंगों से रंगे चावलों से ८१ खण्ड का एक मण्डल बनाना चाहिए। एक चौकोर मण्डल बनाकर उसमें नौ-नौ के नौ खण्ड बना देने से ९²९·८१ खण्ड का मण्डल अनायास बन जाता है। उन सबमें एक-एक छोटा स्वस्तिक अथवा पूरे मण्डल में एक बड़ा नंद्यावर्त स्वस्तिक बनाकर उस पर सब घट रख देवें। चौकोर मण्डल के सामने एक नौ कलिकाओं का कमल बनावें और उसमें अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनआगम, जिनप्रतिमा और जिनमंदिर इन नौ देवों की स्थापना कर नवदेव पूजन करें। एक बड़े बर्तन में जल छान कर भरवाये। उसमें लवंग का चूर्ण या केशर मिला दें, जिसमें अन्तर्मुहूर्त बाद फिर से छानने की आवश्यकता न रहे। एक छोटी रकेबी में केशर से जल यंत्र बनावें अथवा ताम्रपत्र आदि पर यंत्र बना हो, तो उसे उसी बर्तन में डाल देवें। तदनन्तर वह जल साथ में लाये हुए घटों में भर ले। पश्चात् नीचे लिखी तीर्थमण्डल पूजा पढ़कर अर्घ चढ़ावें।
नवदेवताघ्र्यम् मध्ये कर्णिकमर्हदार्यमनघं बाह्येऽष्ट पत्रोदरे, सिद्धान् सूरिवरांश्च पाठकगुरून् साधूंश्च दिक्पत्रगान्।
यह श्लोक और मंत्र बोलकर जलाशय के तट पर पुष्प बिखेरें। तदनन्तर प्रारंभ में छपा मङ्गलाष्टक बोलकर घटों पर पुष्प बिखेरें। यहाँ यदि समय हो तो आगे लिखे ८१ श्लोकों द्वारा उनके मंत्रों को चतुथ्र्यन्त (ॐ ह्रीं इन्द्रकलशायाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा) बदलकर कलशपूजन करें। अन्यथा समुदायरूप में एक अघ्र्य चढ़ाकर यह श्लोक बोले। फिर कलश उठाकर जिस प्रकार ले आये थे, उसी प्रकार वापिस ले जावे।
यदि कलशारोहण होना है तो इन्द्र उस कलश को साथ में लेकर नगर के खास-खास मार्गों में प्रभावना के साथ घूमकर नगर कीर्तन करें। नगर कीर्तन के समय प्रतिष्ठाचार्य मन में शांतिमंत्र का उच्चारण करते हुए सब ओर पुष्प अथवा पीली सरसों क्षेपित करते रहें। जुलूस के अन्य स्त्री-पुरुष स्वर से स्तुति आदि पढ़ते जावें। वापिस आने पर यदि मंदिर प्रतिष्ठा है तो मंदिर के शिखर पर, वेदी प्रतिष्ठा है तो वेदी पर और कलशारोहण है तो एक थाली में कलश को रखकर उस पर नीचे लिखे श्लोक व मंत्र बोलकर वह जल डालना चाहिए। मंदिर शुद्धि आदि की विधि यह है कि एक इतना बड़ा दर्पण रखा जाये, जिसमें शिखर सहित मंदिर का प्रतिबिम्ब आ जाये। फिर मंदिर के प्रतिबिम्ब सहित दर्पण के सामने देखते हुए एक पात्र में प्रत्येक घट से एक धारा देवें, यदि एक साथ तीनों कार्य हों तो तीनों की शुद्धि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के द्वारा एक साथ कर लेना चाहिए।