
तीर्थंकर श्री विमलनाथ की, जन्मभूमि काम्पिल्यपुरी।
गंग नदी का नीर, कलश में भर लिया।
काश्मीरी केशर घिसकर के लाइये।
मोती सम उज्जवल अक्षत के पुंज हैं। 
चम्प चमेली बेला पुष्प चढ़ाय के। 
घेवर बावर आदि बहुत पकवान ले। 




अंगूरों का गुच्छा सुंदर लाय के। 


श्री विमलनाथ तेरहवें तीर्थंकर का अर्चन करना है। 


कम्पिल जी की गौरव गाथा, सब मिलकर वृद्धिंगत करना।