ऐतिहासिक राजकीय भारतीय संवत् के सर्वप्रथम प्रवर्तक राजा विक्रमादित्य थे। आप अनेक भारतीय लोककथाओं के नायक हैं। अयोध्या के राजा राम के बाद उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने इस देश की परम्परा में जैसा गहरा स्थान बनाया है, वैसा दूसरा कोई राजा कभी नहीं बना सका। राजा विक्रमादित्य तीव्र बुद्धिमान, पराक्रमी, उदार, दानशील, धर्मसहिष्णु, विद्यारसिक, विद्वानों के प्रश्रयदाता, न्यायपरायण, धर्मात्मा, प्रजावत्सल एवं सुशासक के रूप में आदर्श भारतीय नरेश माने जाते हैं। पूर्ववर्ती चन्द्रगुप्त मौर्य एवं खारवेल जैसे महान् जैन सम्राटों की परम्परा में देश को विदेशियों के आक्रमण से मुक्त करने में यह महान् जैन सम्राट विक्रमादित्य भी अविस्मरणीय है। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार वह जैनधर्म का परमभक्त था। कुलधर्म और राजधर्म भी जैनधर्म था। विक्रमादित्य ने चिरकाल तक राज्य किया और स्वदेश को सुखी, समृद्ध एवं नैतिक बनाया। विक्रमादित्य तथा उसके उपरान्त उसके वंशजों ने मालवा पर लगभग १०० वर्ष राज्य किया था। विक्रमादित्य जैसे राजा के आदर्शों का स्मरण हम लोग चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन यानि युग प्रतिपदा को राष्ट्रीय नव वर्ष दिवस के रूप में मना कर करते हैं।