भगवान नेमिनाथ तीर्थंकर और पार्श्वनाथ तीर्थंकर के अंतराल में ये बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त हुए हैं। ये ब्रह्मराजा की महारानी चूड़ादेवी के पुत्र थे। इनके शरीर की ऊँचाई ७ धनुष एवं सात सौ वर्ष की आयु थी। इसमें इनका कुमारकाल २८ वर्ष, महामण्डलेश्वर काल ५६ वर्ष, दिग्विजयकाल १६ वर्ष, चक्रवर्ती राज्यकाल ६०० वर्ष रहा है। ये चक्रवर्तियों में अंतिम चक्रवर्ती हुए हैं। इन्होंने भी चक्ररत्न प्राप्तकर १४ रत्न एवं नवनिधियों के स्वामी होकर छह खण्ड पृथ्वी को जीतकर एकछत्र शासन किया है। पुन: राज्य में ही दुध्र्यान से मरकर सातवें नरक गए हैं। जैनशासन में यह नियम है कि जो राज्यवैभव को भोगते हुए दुध्र्यान-आर्त अथवा रौद्रध्यान से मरते हैं, वे नरक चले जाते हैं और जो राज्य त्यागकर दीक्षा लेकर संयम धारण कर लेते हैं, वे ही स्वर्ग अथवा मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। प्रत्येक चतुर्थकाल में १२ चक्रवर्ती होते हैं। इनमें से वर्तमान के चतुर्थकाल में प्रथम चक्रवर्ती भरत, द्वितीय सगर, तृतीय मघवा, चतुर्थ सनत्कुमार, पंचम शांतिनाथ, छठे कुंथुनाथ, सातवें अरनाथ, नवमें महापद्म, दशवें हरिषेण ये मोक्ष गए हैं। आठवें सुभौम एवं बारहवें ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नरक गए हैं तथा ग्यारहवें चक्रवर्ती जयसेन जयंत नाम के तृतीय अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुए हैं। यहाँ तक द्वादश चक्रवर्ती का वर्णन करने वाला यह तृतीय अधिकार पूर्ण हुआ।