समस्त उद्यापन विधानों के लिये जलयात्रा (घटयात्रा) का विधान यह है कि सौभाग्यवती स्त्रियाँ तूल में लिपटे और कलावा से सुसंस्कृत नारियलों से ढके कलश जलाशय के पास ले जावें। जलाशय के पूर्वभाग या उत्तर भाग में भूमि को जल से धोकर पवित्र करें। पश्चात् उस भूमि में चावलों से चौक बनाकर चावलों का पुंज रखे और कलशों को उन पुंजों पर स्थापित कर दें। चौक के चारों कोनों पर दीपक जलाना चाहिये। पुन: नीचे लिखी विधि करके कुएं से जल निकालें। श्री जिनेन्द्रदेव का १०८ कलशों द्वारा महाभिषेक करने के लिये जलयात्रा में इसी विधि से जल लाना चाहिये। वेदी शुद्धि के लिये भी यही विधि करना चाहिये। कलश लेकर कुएं पर पहुँच कर महामंत्र पढ़कर निम्न विधि करनी चाहिये—
शेर छंद
जो जैन मार्ग सदृश विमल नीर से भरे।
पद्मादि सरोवर से सुधाशीत गुण धरे।।
जल गंध अक्षतादि अर्घ को समप्र्य के।
संसार तपन दूर करूं हर्ष हर्ष के।।१।।
ॐ ह्रीं पद्माकराय अघ्र्यं समर्पयामि स्वाहा।
(पढ़कर जलाशय-कुएं पर अर्घ चढ़ावें।)
श्री आदि देवियाँ जिनेन्द्रमात सेवतीं।
कुल नग के पद्म आदि सरवरों पे निवसतीं।।जल.।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीप्रभृतिदेवताभ्य: इदं जलादि अघ्र्यं समर्पयामि स्वाहा।
(यहाँ से जलाशय पूजा करें।)
गंगादि देवियां सदा मंगलस्वरूप हैं।
गंगादि नदी में रहें जिनभक्ति युक्त हैं।।जल.।।३।।
ॐ ह्रीं गंगादिदेवीभ्य: इदं जलादि अघ्र्यं समर्पयामि स्वाहा।
सीतानदी संबंधि महाहृद में जो रहें।
ये नागकुमर देव पापमल को धो रहे।।
जल गंध अक्षतादि अर्घ को समप्र्य के।
संसार तपन दूर करूं हर्ष हर्ष के।।४।।
ॐ ह्रीं सीताविद्धमहाहृददेवेभ्य: इदं जलादि अघ्र्यं समर्पयामि स्वाहा ।
सीतोदनदी मध्य महाहृद में जो रहें।
ये नागकुमार धर्मनिष्ठ पाप धो रहे।।जल.।।५।।
ॐ ह्रीं सीतोदाविद्धमहाहृददेवेभ्य: इदं जलादि अघ्र्यं … ।
लवणोदधी कालोदधी में तीर्थ जो कहे।
मागध प्रभास वरतनू सुरगण वहां रहें।।जल.।।६।।
ॐ ह्रीं लवणोदकालोदमागधादितीर्थदेवेभ्य: इदं जलादि अघ्र्यं … ।
सीता व सीतोदा नदी के तीर्थ जो कहे।
मागध प्रभास वरतनू सुरगण वहां रहें।।जल.।।७।।
ॐ ह्रीं सीतासीतोदामागधादितीर्थदेवेभ्य: इदं जलादि अघ्र्यं … ।
लवणोद आदि जलधि असंख्यात गिनाये।
इनमें रहें जो सुर जिनेंद्र भक्त बताये।।जल.।।८।।
ॐ ह्रीं संख्यातीतसमुद्रदेवेभ्य: जलादि अघ्र्यं … ।
जो लोक में प्रसिद्ध श्रेष्ठ तीर्थ मान्य हैं।
नंदीश्वरादि वापि में सुरगण प्रधान हैं।।जल.।।९।।
ॐ ह्रीं लोकाभिमत तीर्थदेवेभ्य: जलादि अघ्र्यं … ।
इस श्लोक को बोलकर कुएँ से जल निकालकर बड़े बर्तन में भरना।
गंगादि व श्री आदि देवियां प्रसिद्ध हैं।
मागध प्रभास आदि जलधि के अधीश हैं।।
सरवर के देव अन्य जलाशय के देव भी।
ये नीर शुद्ध करें आयके यहां अभी।।१०।।
पुन: निम्नलिखित मंत्र बोलकर कलशों में भरना— ॐ ह्रीं श्रीह्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्मीशांतिपुष्टय: श्रीदिक्कुमार्यो जिनेंद्र-महाभिषेककलशमुखेषु एतेषु नित्यविशिष्टा भवत भवत स्वाहा। पुन: निम्न श्लोक पढ़कर जलशुद्धि करें। विसर्जन कर जल से भरे कलशों को सौभाग्यवती स्त्रियों अथवा कन्याओं द्वारा ले आवें। कलशों की संख्या ९ है। ये तीर्थनीर से भरे स्वर्णीय कुंभ हैं। श्रीआदि देवियों से सहित पुण्य कुंभ हैं।।
जय जय निनाद करके पूर्ण कुंभ उठाउँ।
मस्तक पे धरके लायके जिनवर को न्हवाउँ।।११।।
यदि यहाँ वेदी शुद्धि के लिये घटयात्रा से जल ला रहे हों तो अंतिम चरण में ऐसा बोलना चाहिये— (मस्तक पे धरके लाऊं वेदी शुद्धि कराउँ) इति घटयात्रा विधि: