तीर्थराज सम्मेदशिखर दिगम्बर जैनों का सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा शाश्वत सिद्धक्षेत्र है। तीर्थराज सम्मेदशिखर झारखण्ड प्रदेश में पारसनाथ स्टेशन से २३ किलोमीटर मधुवन में स्थित है। तीर्थराज सम्मेदशिखर पर्वत की उँचाई ४,५७९ फीट है। इसका क्षेत्रफल २५ वर्गमील में है एवं २७ किलोमीटर की पर्वतीय वन्दना है। सम्पूर्ण भूमण्डल पर इस शाश्वत निर्वाणक्षेत्र से पावन, पवित्र और अलौकिक कोई भी तीर्थक्षेत्र, अतिशयक्षेत्र, सिद्धक्षेत्र और निर्वाणक्षेत्र नहीं है। इस तीर्थराज के कण—कण में अनन्त विशुद्ध आत्माओं की पवित्रता व्याप्त है अत: इसका एक—एक कण पूज्यनीय है, वन्दनीय है। कहा भी है—एक बार वन्दे जो कोई, ताहि नरक पशुगति नहीं होई। एक बार जो इस पावन पवित्र सिद्धक्षेत्र की वन्दना श्रद्धापूर्वक करते हैं। उसकी नरक और तिर्यञ्चगति छूट जाती है अर्थात् वो नरकगति में और तिर्यञ्चगति में जन्म नहीं लेता है। इस तीर्थराज सम्मेदशिखर से वर्तमानकालसम्बन्धी चौबीसी के बीस तीर्थंकरों के साथ—साथ ८६ अरब, ४८८ कोड़ाकोड़ी, १४० कोड़ी, १०२७ करोड़, ३८ लाख, ७० हजार, ३२३ मुनियों ने कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया है। सम्मेदशिखर का अस्तित्व कभी नष्ट नहीं होगा, अनन्तकाल तक रहेगा, अत: ये शाश्वत है। एक बार इस तीर्थ की वन्दना करने से ३३ कोटि, २३४ करोड़, ६४ लाख उपवास का फल मिलता है। इस सिद्धक्षेत्र की भूमि के स्पर्शमात्र से संसार ताप नष्ट हो जाता है। परिणाम निर्मल, ज्ञान उज्जवल, बुद्धि स्थिर, मस्तिष्क शांत और मन पवित्र हो जाता है। पूर्वबद्ध पाप तथा अशुभ कर्म नष्ट हो जाते हैं। दु:खी प्राणी को आत्मशांति प्राप्त होती है। ऐसे निर्वाण क्षेत्र की वन्दना करने से उन महापुरुषों के आदर्श से अनुप्रेरित होकर आत्मकल्याण की भावना उत्पन्न होती है।