कुण्डल के आकार की गोलाकार पर्वत श्रंखला होने के कारण यह तीर्थ कुण्डलपुर कहलाया। प्रकृति की पावन, प्रांजल और सुखद हरीतिमा के बीच विद्यमान बुन्देलखण्ड का यह सुप्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र है। भगवान आदिनाथ (बड़े बाबा) की १५ फुट उँची पद्मासन प्रतिमा ५—६ वीं सदी की अतिशयकारी है। ईसवीं पूर्व छठवीं सदी में २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का समवसरण यहाँ आया था और अन्तिम केवली श्रीधर स्वामी की निर्वाणभूमि होने से यह सिद्ध तीर्थ के रूप में मान्य है। उनके चरण भी यहाँ स्थापित हैं। भव्य ६३ प्राचीन मंदिरों ने इस तीर्थ को अद्भुत गरिमा प्रदान की है। बीच में पावन वर्धमान सागर नाम के सरोवर के तीर्थ की सुन्दरता को और भी अधिक आकर्षक बनाया है। जनश्रुति के अनुसार मोहम्मद गजनवी ने जब प्रतिमा पर छैनी लगाई, तब प्रतिमा से दूध की धारा निकल पड़ी। जैन तीर्थों में कुण्डलपुर जैसे विरल ही पुण्य स्थल हैं। जहाँ जैनेतर राजाओं ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर जीर्णोद्धार कराया हो। इतिहास साक्षी है कि बुंदेलकेसरी महाराज छत्रसाल जब विदेशी मुगल आतताइयों से सब कुछ हार चुके थे तो जंगलों से भटकते—भटकते यहाँ बड़े बाबा से मन्नत माँगने आ पहुँचे और कहते हैं, जब उन्हें बुंदेलखण्ड का राज्य पुन: वापस मिल गया तो वे बड़े बाबा के मन्दिर पर सोने—चाँदी का घण्टा और चँवर—छत्र चढ़ाया वरन् मंदिर और तालाब का जीर्णोद्धार भी कराया था। यह उल्लेख बुंदेलखण्ड के इतिहासकारों ने तो किया ही है। बड़े बाबा के मंदिर में स्थित शिलालेख भी यह प्रमाणित करता है। विगत १७ जनवरी, २००६ को सुप्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से वह मूर्ति निर्माणाधीन बहुत विशाल मंदिर में स्थापित की जा चुकी है।