गुणवत्ता की नींव
मनुष्य की वास्तविक पहचान वस्त्र नहीं हैं, भोजन नहीं नहीं है, भाषा नहीं है और उसकी साधत सुविधाएं नहीं हैं। वास्तविक पहचान तो मनुष्य में व्याप्त उसके आत्मिक गुणों के माध्यम से की जाती है। जीवन की सार्थकता और सफलता का मूल आधार व्यक्ति के वे गुण हैं, जो उसे मानवी बताते हैं, जिन्हें संवेदना और करुणा के रूप में, दया, शेला भावना, परोपकार के रूप में हम देखते हैं। असल में यही गुणवत्ता बुनियाद है, नींव है जिसपर खड़े होकर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाता है। जिनमें इन गुणों की उपस्थिति होती है, उनकी गरिमा चिरंजीवी रहती है।
गुणीजन सदा दूसरों की ही चिंता करते हैं, अपनी नहीं। उनमें दया होती है इसलिए उनकी भावना में मानवता भरी होती है। यही मानवता उनमें संवेदना की और मित्रता की पात्रता पैदा करती है। एक गुणी दूसरे गुणी से मिलकर गुणों को विकसित करता है, जबकि वही निर्गुण को पाकर दोष बन जाता है। गुणों की पात्रता के लिए स्वयं गुणी बनना जरूरी है। नदियों का जल बहता है। वह अत्यंत स्वादिष्ट होता है, किंतु समुद्र को प्राप्त कर वही जल अपेय अर्थात खारा बन जाता है।
भारतीय संस्कृति ने सिद्धांत का निरुपण किया, परंतु उतने तक ही अपने को सीमित नहीं रखा। ज्ञान को अनुभूत किया अर्थात सिद्धांत को व्यावहारिक जीवन में उतारा। यही कारण है कि उसका अस्तित्व आजतक नहीं मिटा। उसकी दृष्टि में गुण कोरा ज्ञान नहीं है, गुण कोरा आचरण नहीं ..है, दोनों का समन्वय है। जिसकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता वही समाज में आदर के योग बनता है। इसलिए कहा गया है कि गुण की सब जगह पूजा होती है। आज मानव मूल्यों का ह्रास हो गया है, नैतिकता चरमरा रही है और इंसानियत की नींव कमजोर और खोखली होती जा रही है। चारों ओर भौतिक मूल्य छा गए हैं। यही वजह है कि नाना प्रकार की विकृतियों से मानव, समाज और राष्ट्र आक्रांत हो गए हैं।