साधारणतः महावीर स्वामी के सिद्धांतों पर चलने वाले सद्गृहसथों को श्रावक-श्राविका कहते हैं। यही जब वैवाहिक जीवन के पूर्व या जिम्मेदारियाँ पूरी करने के बाद संयम साधना के मार्ग पर चलता है तो प्रथमतः ब्रह्मचर्य व्रत धारण करते हैं फिर गुरु योग्यता देखकर लंगोटी दुपट्टा (चादर) धारण करने वाला क्षुल्लक या केवल लंगोटी धारी ऐलक बना देते हैं, वर्षों की एकाशन अर्थात् 24 घंटे में एक बार आहार-पानी, शुद्ध, ब्रह्मचर्य, केशलॉच, ध्यान- अध्ययन में परिपक्व होने के बाद दिगंबर मुनि दीक्षा होती है।
दूध के ऊपर जूस, खट्टे फल या मट्ठा नहीं देना चाहिए। घुने-सड़े या बासी पदार्थ भी नहीं देना चाहिए। ऋतु के अनुसार आहार देने का प्रयास करना चाहिए।… एक बार आहार लेकर त्यागी-तपस्वी 24 घंटे तप-साधना करते हैं, इसीलिए गृहस्थों को चाहिए कि वे विधि व विवेक पूर्वक साधुओं की सेवा कर
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