भगवान महावीर के उपदेशों को गणधरों ने व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया। तीर्थंकर के प्रमुख शिष्यों को गणधर या गणेश कहते हैं। गणधरों के बाद वह ज्ञान स्मृतिज्ञान के बल पर आचार्य परम्परा के द्वारा चलता रहा। जब स्मृति और धारणा में हीनता आने लगी तब आज से बीस-बाईस सौ वर्ष पहले लेखन की परम्परा प्रारंभ हुई। महावीर की द्वादशांग वाणी को द्वादशांग या चार अनुयोग रूप से ग्रंथित किया गया।
प्रथमानुयोग- इसमें तीर्थंकर, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण आदि महापुरुषों के चरित्र पुराण तथा कथा साहित्य का समावेश है। महापुराण,
पद्मपुराण (रामायण), हरिवंशपुराण, श्रीपाल चरित, श्रेणिक चरित, प्रद्युम्न चरित, पांडव पुराण, धन्यकुमार चरित, सम्यक्त्व कौमुदी, धर्म परीक्षा, वरांगचरित भगवान महावीर और उनकी आचार्य परंपरा आदि प्रथमानुयोग के ग्रंथ हैं।
करणानुयोग- इसमें लोक, अलोक, चतुर्गति, युग परिवर्तन तथा भूगोल का वर्णन है। तिलोय पण्णति, त्रिलोकसार, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, तत्वार्थ सूत्र (3, 4, 5 अध्याय), सर्वार्थसिद्धि आदि करणानुयोग के ग्रंच हैं।
चरणानुयोग-इसमें मुनियों (संन्यासियों) और गृहस्थों (श्रावकों) के चारित्र-आचरण का मार्गदर्शन है। मूलाचार, भगवती आराधना, आचारसार (मुनि चरित्र), चरित्रसार, चारित्त पाहुड, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, धर्मामृत (सागार, अनगार), वसुनंदी श्रावकाचार, रयणसार आदि ग्रंथों में चरित्र-चर्या का विवेचन है।
द्रव्यानुयोग-इसमें जीव, अजीव आदि तत्वों, छह द्रव्यों, पुण्य-पाप, बंध-मोक्ष व कर्म व्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है। षट्खण्डागम, कषाय पाहुड सुत्त, तत्वार्थ सूत्र, तत्वार्थ राजवर्तिक, तत्वार्थश्लोक-वर्तिकालंकार, समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड, नियमसार द्रव्यानुयोग के प्राचीनतम ग्रंथ हैं।
महावीर वाणी के अनेक महान और प्राचीन ग्रंथ उपलब्ध हैं, इसलिए अन्य संप्रदायों की तरह एक ग्रंथ का मुख्यता से नाम ले पाना पकठिन है। फिर भी लेना ही पड़े तो ‘तत्वार्थ सूत्र’ सर्वोत्तम होगा। जिनेन्द्र वर्णी ने प्राचीन आगम साहित्य से गाथाएँ चुनकर ‘समणसुत्तं’ का भी संकलन किया है।