स्नान से शरीर व मुखशुद्धि करके शुद्ध-धुले वस्त्र पहनकर मंदिर जाना चाहिए। ऊनी कपड़े, चमड़े के बेल्ट या जूते पहनकर तथा चमड़े का पर्स लेकर जिनालय नहीं जाना चाहिए। मंदिर में प्रवेश करते समय हाथ व पैरों का प्रक्षालन करना चाहिए। फिर यह बोलते हुए मंदिर में प्रवेशकर दर्शन करना चाहिए।
ॐ जय जय जय, निःसहि निःसहि निःसहि, नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु
फिर प्रभु पतित पावन, दर्शनं देव दवस्य, सकल ज्ञेय ज्ञायक या कोई भी स्तुति बोलते हुए परिक्रमा तथा स्तुति करना चाहिए।
शुद्ध धोती दुपट्टा पहनकर श्रीजिन का अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक पाठ नहीं आता हो तो ‘ॐ ह्रीं ऋषभादि-वीरान्तेभ्यो नमः जलेन स्नपयामि स्वाहा।’
यह मंत्र बोलना चाहिए अथवा ‘सहस अठोत्तर कलशा प्रभु जी के सिर दुरे, पुनिश्रृंगार प्रमुख आचार सबहि करें।’…. इत्यादि बोलकर अभिषेक करना चाहिए।
जो श्रावक प्रतिदिन विधिपूर्वक अभिषेक करते हैं, उनके साथ अभिषेक करने से नए लोग भी अभिषेक करना सीख जाते हैं। जिस मंदिर में जिस विधि से अभिषेक होता है वैसे कर लेना चाहिए।