
महावीर प्रभु जहां जन्म ले, सचमुच बने अजन्मा हैं। 
जिनवर ने कर्मों की ज्वाला, समता के जल से शांत किया। 
जहां प्रभु सन्मति को लखते ही, मुनियों की शंका दूर हुई। 
प्रभु ने अक्षय पद पाने का, जिस धरती पर संकल्प लिया। 
महलों का सुख वैभव तज कर, जहाँ वीर बने वैरागी थे। 
देवों द्वारा लाया भोजन, महावीर सदा ही खाते थे। 


प्रभु शुक्ल ध्यान की अग्नी में, कर्मों की धूप जलाते थे। 
महावीर प्रभु ने तप करके, ववल्य महाफल पाया है। 





जहाँ जन्मे वीर वर्धमान जी, जहाँ खेले कभी भगवान जी।