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स्याद्वाद चन्द्रिका:- स्वोपज्ञ हिन्दी सानुवाद टीका

July 18, 2017Books, स्वाध्याय करेंHarsh Jain

स्याद्वाद चन्द्रिका:- स्वोपज्ञ हिन्दी सानुवाद टीका


पू० माता जी ने प्रस्तुत कृति का हिन्दी अनुवाद स्वयं लिखा है। इसके साथ विशेषार्थ (भावार्थ) लिखा है इससे यह टीका सी लगती है। इसे मैं उपयोगी रूप से स्वीकार करता हूँ। एक दृष्टि से तो वह स्याद्वाद चन्द्रिका की अंग ही बनी हुई है। यह केवल संस्कृत टीका का अनुवाद मात्र नहीं है। वरन् इसमें विशेषतायें हैं। इन विशेषताओं के कारण ही यह जन सामान्य को हृदयंगम करने हेतु आवश्यक सिद्ध हुई है।

वर्तमान में प्रायः सर्वत्र संस्कृत भाषा की अनभिज्ञता ही देखी जाती है। अतः भाषानुवाद आवश्यक है माता जी द्वारा सरल शब्दों में स्याद्वाद चन्द्रिका का यह अनुवाद उपयोगी और आकर्षक है। जैसे आ० ज्ञानसागर जी महाराज ने अपने संस्कृत टीका ग्रन्थों में स्वोपज्ञ हिन्दी भाषा टीका भी प्रस्तुत की है। ठीक उसी प्रकार माता जी ने अनिवार्यता अनुभव कर यह कार्य किया है। वास्तव में लेखक ही अपने विचारों का मूल ज्ञाता होता है अतः वही अपनी रचना का हार्द अधिक अच्छी प्रकार खोल सकता है अतः यह टीका भी जो कि स्याद्वाद चन्द्रिका में ही साथ प्रकाशित हुई है, सहायक के रूप में विशेष कही जावेगी। हिन्दी टीका की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें संस्कृत भाषा में लिखित तात्पर्य अथवा भावार्थ के अतिरिक्त भी आवश्यक स्पष्टिकरण हेतु हिन्दी भावार्थ या विशेषार्थ समाहित किया गया है। यह अनेक स्थलों पर दृष्टव्य है। सारांश यह है कि भाषानुवाद से सहित प्रस्तुत कृति अपेक्षित पूर्णता एवं शोभा को प्राप्त हुई है। यहाँ एक स्थल प्रस्तुत है,

भावार्थ – मार्गणादि का विस्तार गोम्मटसार जीव काण्ड आदि ग्रन्थों से समझ लेना चाहिए। वास्तव में गोम्मटसार के जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड का अच्छी तरह स्वाध्याय कर लेने पर ही नियमसार आदि अध्यात्म ग्रन्थों का अर्थ ठीक से समझ में आ सकता है।

गाथा क्रमांक 19 की टीका के अन्त में हिन्दी भावार्थ विस्तार से दिया है जिसमें लोक रचना सम्बन्धी विस्तृत वर्णन किया है पठनीय है। अन्यत्र भी जहाँ टीकाकत्री को यह अनुभव हुआ कि संस्कृत टीका से कोई बात अवषिष्ट है तो हिन्दी अनुवाद के उपरान्त विशेषार्थ द्वारा उन्होंने उस विषय को पूर्ण किया है।

वस्तुतः स्वोपज्ञ हिन्दी अनुवाद हम सभी के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। आवश्यकता है स्वाध्याय की रुचि बढ़ाकर उससे लाभ प्राप्त करने की। वर्तमान में ही सारे समय और स्वाध्याय रुचि को पश्चिमी अथवा भौतिक विज्ञान की साधन पूर्णता रूप संस्कृति के परिवेश में दूरदर्शनगत विकार खा रहे हैं। इससे बचकर इन ज्ञान-कृतियों का आनन्द उठाकर सुख शांति प्राप्त की जा सकती है।

आगे हम स्याद्वाद चन्द्रिका पर विहंगम दृष्टि डालने हेतु विभिन्न शीर्षकों से विषयवार वर्णन करेंगे। जैसे किसी सर्च लाइट से अपेक्षित विषय पर प्रकाश डाला जाता है उसी प्रकार हम यथा संभव इस सरस्वती अंग रूप कृति के विविध वाष्वों पर प्रकाश डालने का उपक्रम कर रहे हैं।

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