-स्थापना (शंभु छंद)-
तीर्थंकर प्रभु श्री नेमिनाथ का, शौरीपुर में जन्म हुआ।
माँ शिवादेवि अरु पिता समुद्रविजय का शासन धन्य हुआ।।
उस जन्मभूमि शौरीपुर की, पूजन हेतू आह्वानन है।
सन्निधीकरण विधि के द्वारा, मैं करूँ तीर्थ स्थापन हैै।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर
अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्र! अत्र तिष्ठ
तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्र! अत्र मम सन्निहितो
भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।
-अष्टक-
तर्ज-तीरथ करने चली सती…….
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्में बाइसवें जिनवर जी।।टेक०।।
नीर पिया भव भव में मैंने, प्यास न लेकिन बुझ पाई।
प्रभु पद में जलधारा देने, हेतु तभी स्मृति आई।।
स्वर्ण कलश में जल लेकर, पूजा कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि के साथ वहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर की।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय जन्मजरा-
मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।। टेक०।।
चन्दन एवं चन्द्रकिरण, तन को शीतल कर सकते हैं।
मन को शीतल करने में, नहिं वे सक्षम हो सकते हैं।।
सुरभित चंदन घिस कर अब, पूजन कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय संसारताप-
विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जीr।।टेक०।।
आतम सुख का स्वाद चखा नहिं, इसीलिए दुख पाया है।
खंडित सुख को समझ अखंडित, उसमें ही भरमाया है।।
अक्षयपद हित अक्षत ले, पूजन कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय अक्षयपदप्राप्तये
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।टेक०।।
हे प्रभु! कामदेव ने सारे, जग को अपने वश में किया।
इससे बचने हेतु सुगंधित, पुष्प चरण में अर्प दिया।।
निज सौरभ हित पुष्प को ले, पूजन कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय कामबाण-विनाशनाय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।टेक०।।
सभी तरह के पकवानों से, भूख मिटानी चाही है।
लेकिन कुछ पल भूख मिटी, नहिं शाश्वत तृप्ती पाई है।।
अब नैवेद्य थाल लेकर, पूजन कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय क्षुधारोग-विनाशनाय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।टेक०।।
अज्ञान तिमिर के कारण आतम, में अंधियारा छाया है।
इसीलिए प्रभु सम्मुख आकर, घृत का दीप जलाया है।।
आरति थाल सजाकर मैं, पूजन कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय मोहांधकार-विनाशनाय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।टेक०।।
कर्म मुझे दुख देते हैं, तुम तो प्रभु कर्मरहित स्वामी।
अशुभ कर्म हों भस्म मेरे, इसलिए शरण आया स्वामी।।
अग्निपात्र में धूप जला, पूजन कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय अष्टकर्मदहनाय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।टेक०।।
बहुत तरह के फल खाकर भी, रसना तृप्त न हो पाई।
इसीलिए ताजे फल लेकर, प्रभु अर्चन की मति आई।।
शिवफल हित कुछ फल लेकर, पूजन कर लूँ तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय मोक्षफलप्राप्तये
फलं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजन करने चलो सभी, शौरीपुर में नेमीश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।टेक०।।
जल गंधाक्षत आदि अष्ट, द्रव्यों का थाल सजाया है।
निज अनर्घ्य पद प्राप्त करूँ, यह भाव हृदय में आया है।।
रत्नत्रय हित अर्घ्य चढ़ा, पूजन कर लूं तीर्थेश्वर की।
जन्मभूमि से सार्थ जहाँ, जन्मे बाइसवें जिनवर जी।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-शेर छन्द-
गंगा नदी के नीर से कलशे को भर लिया।
प्रभु नेमि जन्मभूमि पे जलधार कर दिया।।
राजा प्रजा व राष्ट्र भर में शांति कीजिए।
मेरी भी आतमा में नाथ! शांति दीजिए।।१०।।
शांतये शांतिधारा
शौरीपुरी उद्यान में जो फूल खिले हैं।
वहाँ नेमिनाथ जन्म के उल्लेख मिले हैं।।
उन पुष्पों से प्रभु पाद में पुष्पांजली करूँ।
निज आत्मसंपदा को पा दुख शोक सब हरूँं।।११।।
दिव्य पुष्पांजलिः
(इति मण्डलस्योपरि पञ्चदशमदले पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
-प्रत्येक अर्घ्य (दोहा)-
कार्तिक सुदी छठ को जहाँ, हुई रतन की वृष्टि।
शौरीपुर की वह धरा, गर्भागम सुपवित्र।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथगर्भकल्याणक पवित्रशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रावण सुदि छठ नेमिप्रभु, जन्मे ले त्रय ज्ञान।
शौरीपुर वह जन्मभू, जजूँ मिले शिवथान।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मकल्याणक पवित्रशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रावण सुदि छठ को हुआ, नेमिनाथ वैराग।
ब्याह न कर वन चल दिये, कर राजुल का त्याग।।३।।
ॐ ह्रीं ऊर्जयन्तपर्वतस्य सहसाम्रवने दीक्षाकल्याणकप्राप्त श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ऊर्जयन्त गिरि पर हुआ, प्रभु को केवलज्ञान।
आश्विन सुदि एकम तिथी, जजूं नेमि भगवान।।४।।
ॐ ह्रीं ऊर्जयन्तपर्वतस्योपरिकेवलज्ञानकल्याणकप्राप्त श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य (दोहा)-
गर्भ जन्म कल्याण से, स्थल जो सु पवित्र।
पूजूँ मैं पूर्णार्घ्य ले, शौरीपुर को नित्य।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथगर्भजन्मकल्याणकपवित्रशौरीपुर-
तीर्थक्षेत्राय पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणक तीर्थक्षेत्रेभ्यो नम:।
तर्ज-हे वीर! तुम्हारे द्वारे पर……..
हे नेमिनाथ! तुम जन्मभूमि की, गुणगाथा गाएं कैसे।
शौरीपुर अतिशय पुण्यभूमि की, महिमा बतलाएं कैसे ।।१।।
शब्दों की संख्या में कैसे, अगणित गुण बांधे जा सकते।
इन रूक्ष शब्द कण के द्वारा, भक्ति को दरशाएं कैसे ।।२।।
जैसे दीपक से सूर्यदेव की, अर्चा लोक में होती है।
वैसे ही अल्पमती द्वारा, प्रभु गुणगाथा गाएं कैसे ।।३।।
जैसे नदी का जल नदि में ही, अर्पण करते देखा मैंने।
वैसे ही अल्पशक्ति द्वारा, प्रभु जयमाला गाएं कैसे ।।४।।
जैसे फूलों से वृक्षों की, पूजा करते हैं मूढ़मती।
वैसे ही तुच्छ भक्ति पुष्पों से, गुणमाला गाएं कैसे ।।५।।
शौरीपुर राजा समुद्रविजय, श्री शिवादेवि संग रहते थे।
कर रहे देव जिनकी पूजा, उन महिमा बतलाएं वैसे।।६।।
इन सुत तीर्थंकर नेमी की, बारात चली जूनागढ़ को।
पशुबंधन लख वैराग्य हुआ, उस क्षण को बतलाएं कैसे ।।७।।
राजुल ने भी नहिं ब्याह किया, पति का पथ अपनाया उसने।
दीक्षा लेकर आर्यिका बनी, उसका तप बतलाएं कैसे ।।८।।
प्रभु नेमिनाथ ने ऊर्जयन्त, गिरि से मुक्ती पद प्राप्त किया।
निर्वाणथान वह पूज्य हुआ, उसकी महिमा गाएं कैसे ।।९।।
इन बालयती तीर्थंकर का, जन्मस्थल शौरीपुर माना।
जहाँ अद्यावधि है जिनमंदिर, उसका यश बतलाएं कैसे ।।१०।।
इक मंदिर और बटेश्वर में, जहाँ यात्री नित्य ठहरते हैं।
अतिशयकारी प्रतिमाओं का, हम अतिशय बतलाएं कैसे ।।११।।
उस जन्मभूमि शौरीपुर को, पूर्णार्घ्य समर्पण है मेरा।
‘‘चन्दनामती’’ है चाह यही, रत्नत्रय को पाएं कैसे ।।१२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथजन्मभूमिशौरीपुरतीर्थक्षेत्राय जयमाला
पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शान्तये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
-शेर छंद-
तीर्थंकरों के पंचकल्याणक जो तीर्थ हैं।
उनकी यशोगाथा से जो जीवन्त तीर्थ हैं।।
निज आत्म के कल्याण हेतु उनको मैं नमूँ।
फिर ‘‘चन्दनामती’’ पुन: भव वन में ना भ्रमूँ।।
।। इत्याशीर्वाद:।।