(१) श्रुतविधि-उपवास में मतिज्ञान के 28, ग्यारह अंगों के 11, परिकर्म के २ सूत्र के 88, प्रथमानुयोग का 1, चौदह पूर्वों के 14, पाँच चूलिका के 5, अवधिज्ञान के 6, मन: पर्ययज्ञान के २ और केवलज्ञान का 1, ऐसे 158 उपवास करने होते हैं। एक-एक उपवास के बाद एक-एक पारणा होती है१।
(२) दूसरी विधि-श्रुतज्ञान व्रत में सोलह प्रतिपदाओं के 16 उपवास, तीन तृतीयाओं के3, चार चतुर्थी के ४, पांच पंचमी के ५, छह षष्ठी के ६, सात सप्तमी के ७, आठ अष्टमी के 8, नौ नवमी के 9, बीस दशमी के20, ग्यारह एकादशी के 11 बारह द्वादशी के 12, तेरह त्रयोदशी के 13, चौदह चतुर्दशी के 14, पंद्रह पूर्णिमासी के 15 एवं पंद्रह अमावस्या के 15 उपवास किये जाते हैं।२ यथा-)
१६±३±४±५±६±७±८±९±२०±११±१२±१३±१४±१५±१५ · १५८
(3) तृतीय विधि३-
अट्ठाईस मतिज्ञान के – प्रतिपदा के 28 उपवास
ग्यारह अंग श्रुतज्ञान के – ग्यारस के 11 उपवास
दो परिकर्म श्रुतज्ञान के – द्वितीया के2 उपवास
अट्ठासी सूत्र श्रुतज्ञान के – अष्टमी के 88 उपवास
एक प्रथमानुयोग श्रुतज्ञान का – दशमी का 1 उपवास
चौदह पूर्वश्रुतज्ञान के – चतुर्दशी के14उपवास
पांच चूलिका श्रुतज्ञान के – पंचमी के 5 उपवास
छह अवधिज्ञान के – षष्ठी के 6 उपवास
दो मन:पर्ययज्ञान के – द्वितीया के 2उपवास
एक केवलज्ञान का – नवमी का 1 उपवास
इन व्रतों के मंत्र निम्नलिखित हैं-
समुच्चय जाप्य-ॐ ह्रीं श्रीमानसावग्रहादिकेवलज्ञानान्त्य-अष्टपंचा- शदुत्तरशत प्रमाणज्ञानेभ्यो नम:।