श्री ऋषभप्रभु के समवसृति में आर्यिकायें मान्य हैं।
गणिनी प्रथम श्रीमात ब्राह्मी सर्व में हि प्रधान हैं।।
व्रतशील गुण से मंडिता इंद्रादि से पूज्या इन्हें।
आह्वान करके पूजहूँ त्रयरत्न से युक्ता तुम्हें।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकासमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
गंगा नदी का नीर शीतल स्वर्ण झारी में भरूँ।
निज कर्ममल को धोवने हित मात पद धारा करूँ।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुख-सर्वार्यिकाचरणेभ्य: जलं निर्वपामीति स्वाहा:।
मलयागिरी चंदन सुगंधित घिस कटोरी में भरूँ।
तुम पाद पंकज चर्चते भवताप की बाधा हरूँ।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुख-सर्वार्यिकाचरणेभ्य: चंदनंं निर्वपामीति स्वाहा:।
उज्ज्वल अखंडित शालि तंदुल धोय थाली में भरूँ।
तुम पाद सन्निध पुंज धरते सर्व दुख का क्षय करूँ।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकाचरणेभ्य: अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा:।
चंपा चमेली केवड़ा अरविंद सुरभित पुष्प से।
तुम पाद कुसुमावलि किये यश सुरभि पैâले चहुँदिशे।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकाचरणेभ्य: पुष्पंं निर्वपामीति स्वाहा:।
मोदक इमरती सेमई पायस पुआ पकवान से।
तुम पाद पंकज पूजते क्षुध रोग मुझ तुरतहिं नशे।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकाचरणेभ्य: नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
कर्पूर ज्योती रजत दीपक में जला आरति करूँ।
अज्ञानतम को दूर कर निज ज्ञान की ज्योती भरूँ।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकाचरणेभ्य: दीपं निर्वपामीति स्वाहा:।
दशगंध धूप सुगंध खेकर कर्म अरि भस्मी करूँ।
तुम पाद पंकज पूजते निज आत्म की शुद्धी करूँ।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकाचरणेभ्य: धूपं निर्वपामीति स्वाहा:।
अंगूर सेब अनार केला आम फल को अर्पते।
निज आत्म अनुभव सुख सरस फल प्राप्त हो तुम पूजते।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकाचरणेभ्य: फलं निर्वपामीति स्वाहा:।
जल गंध तंदुल पुष्प नेवज दीप धूप फलादि से।
मैं अर्घ अर्पण करूँ माता! आपको अति भक्ति से।।
सद्धर्म कन्या आर्यिकाओं की सदा पूजा करूँ।
माता चरण वंदन करूँ निज आत्म की रक्षा करूँ।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य गणिनीब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकाचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
व्रत गुण मंडित मात के, चरणों में त्रय बार।
शांतीधारा मैं करूँ, होवे शांति अपार।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
वकुल मल्लिका केवड़ा, सुरभित हरसिंगार।
पुष्पांजलि चरणों करूँ, करूँ स्वात्म शृंगार।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
अथ प्रत्येक अर्घ्य(३ अर्घ्य:)
महाव्रतादी श्रेष्ठ, गुण भूषण को धारतीं।
पूजूँ भक्ति समेत, पुष्पांजलि करके यहाँ।।१।।
इति मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
श्री ऋषभदेव के समवसरण में, ब्राह्मी-गणिनी मानी हैं।
श्री ऋषभदेव की पुत्री ये, साध्वी में प्रमुख बखानी हैं।।
रत्नत्रय गुणमणि से भूषित, ये शुभ्र वस्त्र को धारे हैं।
इनकी पूजा वंदन भक्ती, हमको भवदधि से तारे है।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य प्रथमगणिनीब्राह्मीमात्रे अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
सुंदरी आर्यिका मात आदि, त्रय लाख पचास हजार कही।
मूलोत्तर गुण से भूषित ये, इन्द्रादिक से भी पूज्य कहीं।।
इनकी भक्ती पूजा करके, हम त्याग धर्म को यजते हैं।
संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवस्य त्रयलक्षपंचाशत्सहस्रसुन्दरी-प्रमुखार्यिकाचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
श्री ऋषभदेव के शासन में, आर्यिका मात अगणित मानी।
उनके चरणों में नित्य नमूँ, ये संयतिका पूज्य मानी।।
इनकी भक्ती पूजा करके, हम त्याग धर्म को यजते हैं।
संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।३।।
ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेवस्य शासनकालीन सर्वार्यिका चरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
लाख पचास छप्पन सहस, दो सौ तथा पचास।
समवसरण की साध्वियां, और अन्य भी खास।।
अट्ठाइसों मूलगुण, उत्तर गुण बहुतेक।
धारें सबहीं आर्यिका, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितब्राह्मीप्रमुखपंचाशल्लक्षषट्-पंचाशत्सहस्रद्वयशतपंचाशत्आर्यिकाचरणेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र् में, चतुर्थ काल से लेकर भी।
इस पंचमकाल के अंतिम तक, सर्वश्री संयतिका होंगी।।
ब्राह्मी माता से सर्वश्री, माता तक जितनी संयतिका।
जो हुईं हो रहीं होवेंगी, मैं जजूँ भक्ति भवदधि नौका।।२।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थचतुर्थकालादिपंचमकालान्त्यपर्यंतब्राह्मी-गणिनीप्रमुखप्रभृतिसर्वश्रीआर्यिकापर्यंतसर्वार्यिकाभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य—१. ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवाय सर्वसिद्धिकराय सर्वसौख्यं कुरु कुरु ह्रीं नम:।
२. ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवाय नम:। (दोनों में से कोई एक मंत्र जपें)
(सुगंधित पुष्पों से या लवंग से १०८ या ९ बार जाप्य करें।)
—त्रिभंगी छंद—
जय जय जिनश्रमणी, गुणमणि धरणी, नारि शिरोमणि सुरवंद्या।
जय रत्नत्रयधनि, परम तपस्विनि, स्वात्मचिंतवनि त्रय संध्या।।
मुनि सामाचारी, सर्व प्रकारी, पालनहारी अहर्निशी।
मैं पूूजूँ ध्याऊँ, तुम गुण गाऊँ, निजपद पाऊँ ऊर्ध्वदिशी।।१।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।
आप सम्यक्त्व से शुद्ध निर्दोष हो।
शास्त्र के ज्ञान से पूर्ण उद्योत हो।।२।।
शुद्ध चारित्र संयम धरा आपने।
श्रेष्ठ बारह विधा तप चरा आपने।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।३।।
एक साड़ी परिग्रह रहा शेष है।
केशलुुंचन करो आर्यिका वेष है।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।४।।
आतपन आदि बहु योग को धारतीं।
क्रोध कामारि शत्रू सदा मारतीं।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।५।।
अंग ग्यारह सभी ज्ञान को धारतीं।
मात! हो आप ही ज्ञान की भारती।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।६।।
भक्तजनवत्सला धर्म की मूर्ति हो।
जो जजें आपको आश की पूर्ति हो।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।७।।
मात ब्राह्मी प्रमुख आर्यिका साध्वियाँ।
अन्य भी जो हुई हैं महासाध्वियाँ।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।८।।
चंद्र सम कीर्ति उज्ज्वल दिशा व्यापती।
सूर्य सम तेज से पाप तम नाशतीं।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।९।।
सिधुसम आप गांभीर्य गुण से भरीं।
मेरु सम धैर्य भू-सम क्षमा गुण भरीं।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।१०।।
बर्फ सम स्वच्छ शीतल वचन आपके।
श्रेष्ठ लज्जादि गुण यश कहें आपके।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।११।।
आर्यिका वेष से मुक्ति होवे नहीं।
संहनन श्रेष्ठ बिन कर्म नशते नहीं।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।१२।।
सोलवें स्वर्ग तक इंद्र पद को लहें।
फेर नर तन धरें साधु हों शिव लहें।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।१३।।
जैन सिद्धांत की मान्यता है यही।
संहनन श्रेष्ठ बिन शुक्ल ध्यानी नहीं।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।१४।।
अंबिके! आपके नाम की भक्ति से।
शील सम्यक्त्व संयम पलें शक्ति से।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।१५।।
आत्मगुण पूर्ति हेतू जजूँ मैं सदा।
नित्य वंदामि करके नमूँ मैं मुदा।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।१६।।
‘ज्ञानमति’ पूर्ण हो याचना एक ही।
अंब! पूरो अबे देर कीजे नहीं।।
धन्य धन्या मही आर्यिकायें जहाँ।
मैं नमूँ मैं नमूँ मात! तुमको यहाँ।।१७।।
जय जय जिन साध्वी, समरस माध्वी, तुममें गुणमणि रत्न भरें।
तुम अतुलित महिमा, पुण्य सुगरिमा, हम पूजें निज सौख्य भरें।।१८।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवतीर्थंकरस्य ब्राह्मीप्रमुखत्रयलक्षपंचा-शत्सहस्रआर्यिका-तत्शासनकालीनसर्वार्यिकाचरणेभ्य: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा:।
शांतयेशांतिधारा।
दिव्यपुष्पांजलि:।
जो भव्य ऋषभदेव का विधान यह करें।
सम्पूर्ण अमंगल व रोग शोक दुख हरें।।
अतिशायि पुण्य प्राप्त कर ईप्सित सफल करें।
कैवल्य ‘‘ज्ञानमती’’ से जिनगुण सकल भरें।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:।।