(२०८)
सीता को तब समझा करके, वे पुण्डरीकपुर ले आये ।
प्रिय सुनो पूर्णिमा सावन की, सीता ने युगल पुत्र जाये।।
दोनों पुत्रों को देख—देख, सीता ने दुख बिसराया था।
फिर शस्त्र—शास्त्र की शिक्षा में, उनको निष्णात कराया था।।
(२०९)
इस तरह लवण और अंकुश का, था बाल्यकाल कब बीत गया।
सूरज का तेज हुआ लज्जित, जब यौवन यहाँ प्रविष्ट हुआ।।
राजा प्रभु की कन्याओं से, उन दोनों का शुभ ब्याह किया।
पुत्रों का शौर्य तेज लखकर, सीता को हर्ष अपार हुआ।।
(२१०)
इक दिन की बात सुनो प्रियवर, नारदजी यहाँ पधारे थे।
आसन से उठकर नमन किया, कर जोड़ विनय को धारे थे।।
नारद जी ने श्रीरामलखन का, ऐसा वैभव बतलाया।
उत्सुक होकर उन दोनों ने, पूछा यह किसकी है माया।।
(२११)
तब दशरथ सुत श्री रामलखन की, गाथा ऐसी बतलाई।
वैâसे देकर के राज्य भरत को, वन में गये दोनों भाई।।
फिर सीता हरण हुआ कैसे, और रावण का भी वध करके।
सीता को वापस घर लाये, यह सब बतलाया ऋषिवर ने।।
(२१२)
निज राज्य प्रजा की हित खातिर, जब सीता का परित्याग किया ।
ऐसे श्रीरामचन्द्र जग में, भारी ख्याति को प्राप्त किया।।
तब लवकुश ने पूछा मुनिवर, क्यों तजा राम ने सीता को।
नारदजी ने फिर व्याकुल हो, बतलाया था उन दोनों को।।
(२१३)
यह कथा नहीं है सत्य बात, जो अब मैं तुम्हें बताता हूँ।
जब गर्भवती सीता जी को, वन भेजा तुम्हें सुनाता हूँ।।
अपवाद सुना जब जनता से, तब सीताजी को त्याया।
अब पता नहीं वह जीवित है,अथवा प्राणों का त्याग किया।।