श्रुतपंचमी पर्व की कहानी श्रुतपंचमी पर्व की कहानी
रचयित्री – प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
श्री ऋषभदेव से महावीर तक , जिनशासन को नमन करूं |
गौतम गणधर द्वारा गूँथी , जिनवर वाणी को नमन करूं ||
उस वाणी को ह्रदयंगम करने, वाले गुरु को नमन करूँ |
श्रुत का जो दिवस चला जग में , श्रुतपंचमि पर्व को नमन करूं ||
तर्ज – रेल चली भाई रेल चली ………………………………………………………..
कथा सुनो भाई कथा सुनो , , श्रुतपंचमि की कथा सुनो |
षट्खंडागम ,पूर्ण हुआ आगम , उसकी रोमांचक कथा सुनो ………….||
तर्ज – माई रे माई ……………………………………………|
सरस्वती जिनवाणी माँ की , महिमा बड़ी निराली |
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय || टेक ०||
महावीर शासन में केवलि , श्रुतकेवली हुए हैं |
ग्यारह अंग व चौदह पूर्व के, ज्ञान से सहित हुए हैं ||
घटने लगा ज्ञान फिर आगे , हुए न केवलज्ञानी |
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय || १ ||
एक बार धरसेन सूरि को , चिंता हो गयी श्रुत की |
धारा चलेगी कैसे मेरे ,आंशिक पूर्व ज्ञान की ||
चिन्ता को चिंतन में बदलकर , श्रुत रक्षा की ठानी ||
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय ||२ ||
गुरुवर ने युग प्रतिक्रमण में , ब्रम्हचारी को भेजा |
दो शिष्यों को विद्या दूँगा , यह संदेशा भेजा ||
सब मुनियों ने सोच समझकर , दो मुनि भेजे ज्ञानी |
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय || ३ ||
अब आगे क्या होता है , सुनियेगा ……
तर्ज – एक था बुल और ……………………………….
एक सुबुध्धि दूजे नरवाहन मुनि चल दिए लेने ज्ञान |
महावीर शासन का उन्होंने , बहुत बढाया है सम्मान || एक सुबुध्धि ..||टेक०||
इधर गुरू धरसेन ने रात में ,सुन्दर इक सपना देखा |
सुन्दर दो बैलों की इक जोड़ी पद में नमते देखा ||
समझ गए अब मेरे श्रुत को , मिल जाएगा उच्च स्थान |
एक सुबुध्धि ………..|| १||
अगले दिन पहुंचे दोनों मुनि ,गुरुचरणों में नमन किया |
कुशलक्षेम रत्नत्रय की हुई , तीन दिवस विश्राम किया ||
पुनः मन्त्र दे एक -एक ,भेजा उनको गिरिवर गिरनार |
एक सुबुध्धि ………..|| २ ||
पूर्ण साधना विधि से उन्होंने , अपने मन्त्र को सिद्ध किया |
एक काली दूजी बड़े दांतों, वाली देवी को देख लिया ||
देख सामने| विकृत देवी , मंत्र शुध्धि का लगाया ज्ञान |
एक सुबुध्धि ………..|| ३ ||
शुध्द मन्त्र सिध्धी होते ही , सुन्दर देवियाँ प्रगट हुईं |
भेज दिया उन्हें निज स्थान को , कुछ इच्छा नहिं प्रगट करी ||
आकर उनने बताया गुरू को , हुई योग्यता की पहचान ||
एक सुबुध्धि ………..||४ ||
दोनों मुनियों की सुयोग्यता देखकर गुरुदेव श्री धरसेनाचार्य ने उन्हें सिद्धांत ज्ञान देना प्रारम्भ कर दिया –
तर्ज – फूलों सा चेहरा तेरा …………………
भव्यात्मन् ! ध्यान देकर सुनो , आज प्रभु वीर युग चल रहा |
किन्तु ना हैं केवली , ना ही हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा || टेक ० ||
प्रभु वीर की ॐकारमयी ,
दिव्यध्वनि को सुना गणधर आदि ने |
उसको ही द्वादशांग के रूप में ,
रचना कर दी श्री गौतम स्वामि ने ||
द्वादशांग श्रुत में , भरा ज्ञान घट है , चार अनुयोगों के रूप में |
उसका ही कुछ अंश अब , उपलब्ध है ज्ञानियों !
किन्तु ना हैं केवली , नहीं हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा ||१||
धरसेन गुरु ने दोनों मुनी को ,
छह खण्ड आगम का ज्ञान दिया |
उसके अनंतर दोनों मुनी को ,
आशीष देकर विदा कर दिया ||
चले गए दोनों , अलग -अलग पथ को , जाकर चातुर्मास इक संग किया |
गुरुवर के, श्रुतज्ञान की , खूब वृद्धि किया मुनियों ने |
आज ना हैं केवली , नहीं हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा ||२ ||
श्री पुष्पदंत मुनिवर ने षट्खण्डों में ,
विभाजन किया शास्त्रों को |
उनमें से पहले जीवस्थान को ,
लिख भेजा भूतबली मुनिराज को ||
भूतबलि ने जाना , मर्म को पहचाना , पुनः आगे षट्खण्ड सूत्र रच दिए |
आज ना हैं केवली , नहीं हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा ||३ ||
[इस षट्खण्डागम रूप श्रुतज्ञान की पूर्णता हुई ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा को , उस दिन देवताओं ने भी आकर धूमधाम से श्रुत एवं गुरु पूजा की थी ]
जय मुनिराज बोलो जय जय मुनिराज -२ |
देवों ने श्रुत की पूजा कर , दोनों मुनियों के नामकरण कर |
की पूजा श्रुत अरु गुरु साथ , जय जय ………………….|| १ ||
श्रुतपंचमी पर्व चल गया तब से , षट्खण्डागम श्रुत मिला जबसे |
उन पर टीका रची बहुतों ने , किन्तु आज बस धवला मिलते ||
वीरसेन गुरु का है उपकार , जय जय ………………..||२ ||
तेरह सौ सालों के बाद फिर , गणिनी ज्ञानमती जी ने आकर |
सिद्धांतचिन्तामणि टीका लिखी है , तीन हजार से अधिक पृष्ठ हैं ||
बोलो उस टीका की जयकार , जय जय मुनिराज …………………||३ ||
गणिनी सुलोचना की याद है आती , ग्यारह अंग की जो थीं पाठी |
अंग का अंश ज्ञान पा करके , संस्कृत टीका लिखी निज कर से ||
यह है सरस्वती माँ का चमत्कार , जय जय ……………………………||४ ||
हमने न देखा धरसेन गुरु को , पुष्पदंत और भूतबलि गुरु को |
ग्रन्थ के टीकाकार न देखे , वीरसेन आचार्य न देखे ||
पुण्य से देख रहे ज्ञानमती मात , जय जय ………………………………||५ ||
-दोहा –
मुझको भी शक्ती मिले, दो माँ आशीर्वाद |
पढ़कर टीका आपकी , पूर्ण करूँ अनुवाद ||१ ||
हिन्दी टीका है सरल , करो सभी स्वाध्याय |
कठिन विषय भी हैं सरस , पढ़ो सभी अध्याय ||२ ||
गणिनि ज्ञानमती मात की , शिष्या मैं अज्ञान |
नाम “चंदनामति ” मिला , किया है श्रुत गुणगान ||३ ||
वीर संवत् पच्चीस सौ , छ्यालिस ज्येष्ठ का मास |
श्रुतपञ्चमि तिथि आज है , हस्तिनापुर में प्रवास ||४ ||
काव्य कथानक पूर्णता , पर प्रसन्न मन आज |
विनती है जिनराज से , मन में हो श्रुत वास ||५ ||
रचयित्री – प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
श्री ऋषभदेव से महावीर तक , जिनशासन को नमन करूं |
गौतम गणधर द्वारा गूँथी , जिनवर वाणी को नमन करूं ||
उस वाणी को ह्रदयंगम करने, वाले गुरु को नमन करूँ |
श्रुत का जो दिवस चला जग में , श्रुतपंचमि पर्व को नमन करूं ||
तर्ज – रेल चली भाई रेल चली ………………………………………………………..
कथा सुनो भाई कथा सुनो , , श्रुतपंचमि की कथा सुनो |
षट्खंडागम ,पूर्ण हुआ आगम , उसकी रोमांचक कथा सुनो ………….||
तर्ज – माई रे माई ……………………………………………|
सरस्वती जिनवाणी माँ की , महिमा बड़ी निराली |
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय || टेक ०||
महावीर शासन में केवलि , श्रुतकेवली हुए हैं |
ग्यारह अंग व चौदह पूर्व के, ज्ञान से सहित हुए हैं ||
घटने लगा ज्ञान फिर आगे , हुए न केवलज्ञानी |
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय || १ ||
एक बार धरसेन सूरि को , चिंता हो गयी श्रुत की |
धारा चलेगी कैसे मेरे ,आंशिक पूर्व ज्ञान की ||
चिन्ता को चिंतन में बदलकर , श्रुत रक्षा की ठानी ||
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय ||२ ||
गुरुवर ने युग प्रतिक्रमण में , ब्रम्हचारी को भेजा |
दो शिष्यों को विद्या दूँगा , यह संदेशा भेजा ||
सब मुनियों ने सोच समझकर , दो मुनि भेजे ज्ञानी |
जिसने श्रुत को प्रथम लिखा है , उसकी सुनो कहानी ||
गुरुवर पुष्पदंत की जय, गुरुवर भूतबली की जय || ३ ||
अब आगे क्या होता है , सुनियेगा ……
तर्ज – एक था बुल और ……………………………….
एक सुबुध्धि दूजे नरवाहन मुनि चल दिए लेने ज्ञान |
महावीर शासन का उन्होंने , बहुत बढाया है सम्मान || एक सुबुध्धि ..||टेक०||
इधर गुरू धरसेन ने रात में ,सुन्दर इक सपना देखा |
सुन्दर दो बैलों की इक जोड़ी पद में नमते देखा ||
समझ गए अब मेरे श्रुत को , मिल जाएगा उच्च स्थान |
एक सुबुध्धि ………..|| १||
अगले दिन पहुंचे दोनों मुनि ,गुरुचरणों में नमन किया |
कुशलक्षेम रत्नत्रय की हुई , तीन दिवस विश्राम किया ||
पुनः मन्त्र दे एक -एक ,भेजा उनको गिरिवर गिरनार |
एक सुबुध्धि ………..|| २ ||
पूर्ण साधना विधि से उन्होंने , अपने मन्त्र को सिद्ध किया |
एक काली दूजी बड़े दांतों, वाली देवी को देख लिया ||
देख सामने| विकृत देवी , मंत्र शुध्धि का लगाया ज्ञान |
एक सुबुध्धि ………..|| ३ ||
शुध्द मन्त्र सिध्धी होते ही , सुन्दर देवियाँ प्रगट हुईं |
भेज दिया उन्हें निज स्थान को , कुछ इच्छा नहिं प्रगट करी ||
आकर उनने बताया गुरू को , हुई योग्यता की पहचान ||
एक सुबुध्धि ………..||४ ||
दोनों मुनियों की सुयोग्यता देखकर गुरुदेव श्री धरसेनाचार्य ने उन्हें सिद्धांत ज्ञान देना प्रारम्भ कर दिया –
तर्ज – फूलों सा चेहरा तेरा …………………
भव्यात्मन् ! ध्यान देकर सुनो , आज प्रभु वीर युग चल रहा |
किन्तु ना हैं केवली , ना ही हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा || टेक ० ||
प्रभु वीर की ॐकारमयी ,
दिव्यध्वनि को सुना गणधर आदि ने |
उसको ही द्वादशांग के रूप में ,
रचना कर दी श्री गौतम स्वामि ने ||
द्वादशांग श्रुत में , भरा ज्ञान घट है , चार अनुयोगों के रूप में |
उसका ही कुछ अंश अब , उपलब्ध है ज्ञानियों !
किन्तु ना हैं केवली , नहीं हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा ||१||
धरसेन गुरु ने दोनों मुनी को ,
छह खण्ड आगम का ज्ञान दिया |
उसके अनंतर दोनों मुनी को ,
आशीष देकर विदा कर दिया ||
चले गए दोनों , अलग -अलग पथ को , जाकर चातुर्मास इक संग किया |
गुरुवर के, श्रुतज्ञान की , खूब वृद्धि किया मुनियों ने |
आज ना हैं केवली , नहीं हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा ||२ ||
श्री पुष्पदंत मुनिवर ने षट्खण्डों में ,
विभाजन किया शास्त्रों को |
उनमें से पहले जीवस्थान को ,
लिख भेजा भूतबली मुनिराज को ||
भूतबलि ने जाना , मर्म को पहचाना , पुनः आगे षट्खण्ड सूत्र रच दिए |
आज ना हैं केवली , नहीं हैं श्रुतकेवली , श्रुतज्ञान भी देखो घट रहा ||३ ||
[इस षट्खण्डागम रूप श्रुतज्ञान की पूर्णता हुई ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा को , उस दिन देवताओं ने भी आकर धूमधाम से श्रुत एवं गुरु पूजा की थी ]
जय मुनिराज बोलो जय जय मुनिराज -२ |
देवों ने श्रुत की पूजा कर , दोनों मुनियों के नामकरण कर |
की पूजा श्रुत अरु गुरु साथ , जय जय ………………….|| १ ||
श्रुतपंचमी पर्व चल गया तब से , षट्खण्डागम श्रुत मिला जबसे |
उन पर टीका रची बहुतों ने , किन्तु आज बस धवला मिलते ||
वीरसेन गुरु का है उपकार , जय जय ………………..||२ ||
तेरह सौ सालों के बाद फिर , गणिनी ज्ञानमती जी ने आकर |
सिद्धांतचिन्तामणि टीका लिखी है , तीन हजार से अधिक पृष्ठ हैं ||
बोलो उस टीका की जयकार , जय जय मुनिराज …………………||३ ||
गणिनी सुलोचना की याद है आती , ग्यारह अंग की जो थीं पाठी |
अंग का अंश ज्ञान पा करके , संस्कृत टीका लिखी निज कर से ||
यह है सरस्वती माँ का चमत्कार , जय जय ……………………………||४ ||
हमने न देखा धरसेन गुरु को , पुष्पदंत और भूतबलि गुरु को |
ग्रन्थ के टीकाकार न देखे , वीरसेन आचार्य न देखे ||
पुण्य से देख रहे ज्ञानमती मात , जय जय ………………………………||५ ||
-दोहा –
मुझको भी शक्ती मिले, दो माँ आशीर्वाद |
पढ़कर टीका आपकी , पूर्ण करूँ अनुवाद ||१ ||
हिन्दी टीका है सरल , करो सभी स्वाध्याय |
कठिन विषय भी हैं सरस , पढ़ो सभी अध्याय ||२ ||
गणिनि ज्ञानमती मात की , शिष्या मैं अज्ञान |
नाम “चंदनामति ” मिला , किया है श्रुत गुणगान ||३ ||
वीर संवत् पच्चीस सौ , छ्यालिस ज्येष्ठ का मास |
श्रुतपञ्चमि तिथि आज है , हस्तिनापुर में प्रवास ||४ ||
काव्य कथानक पूर्णता , पर प्रसन्न मन आज |
विनती है जिनराज से , मन में हो श्रुत वास ||५ ||