तर्ज—ऐ मेरे वतन के लोगों……
भारत के जैनी वीरों, तुम सुन लो कथा पुरानी।
सम्मेदशिखर पर्वत है, सिद्धों की अमिट निशानी।। टेक.।।
इक नहीं अनन्तों जिनवर, साकेतपुरी में जन्मे।
सम्मेदशिखर से शिवपद, पा सिद्धशिला पर पहुँचे।।
उस रज को सिर पर धर लो, जो कहती अमर कहानी।
सम्मेदशिखर पर्वत है, सिद्धों की अमिट निशानी।।१।।
बन करके दिगम्बर मुनिवर, इस गिरि पर ध्यान किया है।
कितनों ने तपस्या करके, कर्मों का नाश किया है।।
उन सब सिद्धों को नम लो, जो बने आत्म श्रद्धानी।
सम्मेदशिखर पर्वत है, सिद्धों की अमिट निशानी।।२।।
यह सिद्धक्षेत्र जिनवर का, जैनी इसके अधिकारी।
इसका दर्शन-वन्दन है, हर मानव को हितकारी।।
पर्वत को वन्दन कर लो, सब जिनमत के श्रद्धानी।।
सम्मेदशिखर पर्वत है, सिद्धों की अमिट निशानी।।३।।
यह तीर्थ अहिंसा का शुभ, सन्देश सुनाता जग को।
भावों को शुद्ध बनाकर, तिरना सिखलाता सबको।
‘‘चन्दनामती’’ हम सबमें, सार्थक हो अब प्रभुवाणी।
सम्मेदशिखर पर्वत है, सिद्धों की अमिट निशानी।।४।।
ये धर्मतीर्थ न कभी भी, बेचे व खरीदे जाते।
हर मानव की श्रद्धा के, ये केन्द्रबिन्दु कहलाते।।
निजमत जिनमत में बदलो, बनकर सच्चे श्रद्धानी।
सम्मेदशिखर पर्वत है, सिद्धों की अमिट निशानी।।५।।