जीव दो प्रकार के होते हैं—संज्ञी और असंज्ञी। संज्ञी—नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम या उससे उत्पन्न ज्ञान को संज्ञा कहते हैं। वह जिसके हो वह संज्ञी कहलाता है अर्थात् मन सहित जीव संज्ञी हैंं। ये शिक्षा, उपदेश, संकेत ग्रहण कर सकते हैं। असंज्ञी—मन रहित जीव असंज्ञी कहलाते हैं। ये शिक्षा, उपदेश आदि नहीं समझ सकते। हित में प्रवृत्ति और अहित से हटना भी नहीं समझ सकते हैं। सम्पूर्ण देव, नारकी, मनुष्य और मन सहित पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञी हैं। शेष एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक सभी जीव असंज्ञी हैं। ये अनंत संसारी जीव असंज्ञी हैं। तेरहवें, चौदहवें गुणस्थानवर्ती जीव और सिद्ध जीव संज्ञी, असंज्ञी अवस्था से रहित आत्मज्ञान से परिपूर्ण केवलज्ञानी हैं।