आओ री सुहागन नारी, मंगल गावो री।
पद्मावति माता की, गोद भरावो री।।
सुन्दर काया माँ की वस्त्र पहनाओ, जयपुर चँदेरी की चुनरी ओढ़ाओ।
अपनी चुनरिया भी खूब सजावो री।। पद्मावति माता की.।।१।।
(वस्त्र पहनावें)
सोने चाँदी के भूषण माँ को पहनाओ, माला कुण्डल कंकणों से मात को सजाओ।
अपने घर की लक्ष्मी को खूब बढ़ावो री।। पद्मावति माता की.।।२।।
(गहना पहनावें)
हाथ माता के चूड़ियाँ पहनाओ, सुंदर नैनों में कजरा लगाओ।
अपनी सुंदरता खूब बढ़ावो री।। पद्मावति माता की.।।३।।
(चूड़ी पहनाकर काजल लगावें)
माथे माता के बिंदिया लगाओ, माँग में उनके सिंदूर भराओ।
अपने सुहाग को अखंड बनावो री।। पद्मावति माता की.।।४।।
(बिन्दी लगाकर माँग में सिंदूर भरें)
शीश माता के मुकुट पहनाओ, मेवा मिश्री पकवानों से गोदी भराओ।
पुत्र पौत्रों से अपनी गोदी भरावो री।। पद्मावति माता की.।।५।।
(मुकुट पहनाकर गोद भर दें)
ॐ ह्रीं श्रीपद्मावती देवि! इदं अघ्र्यं पाद्यं गंधं अक्षतं, पुष्पं, चरुं, दीपं धूपं फलं बलिं स्वस्तिकं यज्ञभागं च गृहाण गृहाण स्वाहा।
(अर्घ चढ़ावें।)
(यह भजन पढ़ते हुए पद्मावती माता की गोद भरकर सुहागिन नारी अन्य सात सुहागिन महिलाओं की गोद भरें, उसके पश्चात् बची हुई सामग्री सबको प्रसाद के रूप में वितरित करें।)