(जाप्य विधि के प्रारम्भ में मंगलाष्टक पढ़ें)
जटांतौ बिंदुसंयुक्तौ, कला वं पं सुवेष्टितम्।
सोममध्ये लिखित्वाम्भो, मध्ये स्नानादिकं चरेत्।।१।।
भावार्थ—एक रकेबी में अर्ध चन्द्र का आकार केशर से सीधे हाथ की मध्यमा अंगुली से बनायें, उसके बीच में झं ठं और अधोरेखा पर दक्षिणावर्त क्रम से १६ स्वर और ऊपर की रेखा पर मध्य में वं पं भी लिखें और उसमें निम्नलिखित मंत्र पढ़कर पानी डाल कर जल शुद्ध कर लें। पुन: उसी जल से आगे के मंत्रों द्वारा अपने अंगों की शुद्धि करें। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: नमोऽर्हते भगवते गंगासिंध्वादिजलं पवित्रं कुरु कुरु झं झं झ्रौं झ्रौं वं वं मं मं हं हं क्षं क्षं लं लं पं पं द्रां द्रां द्रीं द्रीं हं स: स्वाहा। (इति जल शुद्धि मंत्र:) ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्ष: दर्भपूलेन भूमिशुद्धिं करोमि स्वाहा। ॐ ह्रीं दर्भासने अहं उपविशामि स्वाहा। (क्रम से अ सि आ उ सा को मस्तक, ललाट, नेत्र, कंठ और हृदय में धारण करें। आचार्य, सिद्ध, श्रुत, चारित्रादि भक्ति पढ़ें। अनंतर उपर्युक्त शुद्ध जल से निम्न मंत्रों द्वारा उन अवयवों को शुद्ध करें।) ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:। (दोनों अंगूठे जल से शुद्ध करें) ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं तर्जनीभ्यां नम:। ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं ह्रूं मध्यमाभ्यां नम:। ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ह्रौं अनामिकाभ्यां नम:। ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं ह्र: कनिष्ठाभ्यां नम:। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: करतलाभ्यां नम:। (हस्तपवित्रीकरणं) ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ह्रां मम शिर: रक्ष रक्ष स्वाहा। (शिरसि जलं क्षिपेत्) ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं मम वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा। (मुखं प्रक्षालयेत्) ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं ह्रूं मम हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा। (हृदयं प्रक्षालयेत्) ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ह्रौं मम नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा। (नाभिं प्रक्षालयेत्) ॐ ह्र: णमो लोए सव्व साहूणं ह्र: मम पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा। (आगे के मंत्रों से उन उन दिशा में पीली सरसों क्षेपण करते जाये) ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ह्रां पूर्वदिशागतविघ्नान् निवारय-निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा। (सर्षपं पूर्वदिशि क्षिपेत्) ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं दक्षिणदिशागतविघ्नान् निवारय-निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा।(सर्षपं दक्षिणदिशि क्षिपेत्) ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं ह्रूं पश्चिमदिशागतविघ्नान् निवारय-निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा।(सर्षपं पश्चिमदिशि क्षिपेत्) ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ह्रौं उत्तरदिशागतविघ्नान् निवारय-निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा।(सर्षपं उत्तरदिशि क्षिपेत्) ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं ह्र: सर्वदिशागतविघ्नान् निवारय-निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा।(सर्षपं सर्वदिक्षु क्षिपेत्) ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ह्रां मां रक्ष रक्ष स्वाहा। (सर्वांगरक्षणं) ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ह्रीं मम वस्त्रं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं ह्रूं मम पूजाद्रव्यं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ह्रौं मम स्थलं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं ह्र: सर्वजगद् रक्ष-रक्ष स्वाहा। ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय-स्रावय सं सं क्लीं क्लीं ब्लूं ब्लूं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय हं झं झ्वीं क्ष्वीं हं स: असि आ उसा अर्हं नम: स्वाहा।(सर्वांगसेचनं-सर्वांगशुद्ध करना) ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: सर्वदिशागतविघ्नान् निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा।(इति सर्वत्र सर्षपं क्षिपेत्) ॐ नमोऽर्हते सर्वं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। (इति परिचारक रक्षा) ॐ हूँ फट् किरटिं घातय घातय पर विघ्नान् स्फोटय स्फोटय सहस्रखंडान् कुरु-कुरु आत्मविद्यां रक्ष-रक्ष परविद्यां छिंद छिंद परमंत्रान् भिंद भिंद क्ष: फट् स्वाहा। (इस मंत्र को मन में २१ बार पढ़कर सभी जाप्य करने वालों पर और उस स्थान पर सरसों क्षेपण करें।) अथ संकल्प:—ॐ ह्रीं मध्यलोके जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखंडे…देशे …ग्रामे…देवशास्त्रगुरूसंनिधौ परमधार्मिकविद्वज्जनसन्निधौ शांतिकपौष्टिक-सकलकार्यसिद्ध्यर्थं इंद्रध्वजविधानस्य एतद्…जाप्यं…..वाराद् आरभ्य…वासरपर्यतं करिष्यामहे। (संकल्प हेतु हाथ में लिये हुए सुपारी, हल्दी, पुष्प आदि पाटे पर छोड़ें) पुन: जाप्य करने के स्थल पर जो यंत्र अथवा जो प्रतिमा विराजमान की हों, उनका विधिवत् अभिषेक पूजन करके जाप्य प्रारम्भ करें। इन्द्रध्वज विधान की जाप्य— ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा मध्यलोकसंबंधिचतु:शताष्टपंचाशत् श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो नम:। सिद्धचक्र विधान की जाप्य— ॐ ह्रीं अर्हं असि आ उसा अनाहतविद्यायै नम:। शांति विधान की जाप्य— ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथाय जगत्शांतिकराय सर्वोपद्रवशान्तिं कुरु कुरु ह्रीं नम:।