(२३६)
फिर क्या था मेषकेतु सुर ने, अग्नी को जल में बदल दिया।
सिंहासन लगा कमल ऊपर, सीता को उसपे बिठा दिया।।
जल में जब लगे डूबने सब, सीता सम्मुख दौड़े आए।
अब क्षमा करो अब दया करो, आवाजें देकर चिल्लाए।।
(२३७)
रघुवर चरणों को छू करके,वह जल थल में था बदल गया ।
हो गया दंग था हर दर्शक,जनता का सुर भी बदल गया।।
बिजली सी फैल गयी कीरत, हो गयी धन्य जीवन बेला।
सीता की शील प्रशंसा का,था वहां नजारा अलबेला।।
(२३८)
लवकुश ममता में खिंचे हुए, आ गए पास में माता के ।
कर फेर—फेर कर प्यार किया, आशीष दिए सुख सीता के ।।
भारी अनुराग युक्त रघुवर,सीता से आकर कहते हैं।
हे देवि! क्षमा करो मुझको, जो कहो वही कर सकते हैं।।
(२३९)
तुम राज्य करो सब पर चलकर, मुझपर भी शासन करो प्रिये।
जो—जो स्थान तुम्हें प्रिय हों, चल करके तुम्हें घुमाऊँ मैं।।
अब क्रोध छोड़कर हे सीते! मेरे अपराध क्षमा कर दो।
मुझको प्रायश्चित्त करने का, बस एक बार तुम मौका दो।।