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23.श्री शांतिनाथ स्तोत्र
March 13, 2018
पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका
INDU.JAIN
श्री शांतिनाथ स्तोत्र
।।अट्ठारहवाँ अधिकार।।
(१)
जिनके सिर पर इंद्रों द्वारा त्रय छत्र सुशोभित होते हैं।
त्रैलोक्यपति हैं शांतिनाथ इस बात को सूचित करते हैं।।
जिनने निज केवलज्ञान की उज्जवल कांति से सूर्य प्रभा को भी।
लज्जित कर दिया तथा कर्मों से रहित करे हम सबको भी।।
ऐसे श्री शांतिनाथ भगवन हम सबकी भी रक्षा करिए।
मैं शीश झुका वंदन करती मेरे सब दोष क्षमा करिए।।
(२)
देवों द्वारा ताड़ित दुंदुभि जग को मानो यह बता रही।
यदि सब पदार्थ के ज्ञाता दृष्टा हैं तो शांतिनाथ जी ही।।
तीनों लोकों के अधिपति हैं इनके ही वचन सर्वसम्मत।
निंह अन्य कोई देवाधिपती श्री शांतिनाथ सब कर्म रहित।।
ऐसे श्री शांतिनाथ भगवन हम सबकी भी रक्षा करिए।
मैं शीश झुका वंदन करती मेरे सब दोष क्षमा करिए।।
(३)
जिस समय प्रभू को देवांगना आ करके नमस्कार करतीं।
उनके रत्नों के आभूषण की किरण से जो आभा निकली।।
उससे झिलमिल नभ में मानो ही इंद्रधनुष बन जाता है।
श्री शांतिनाथ का िंसहासन उस सम ही प्रभा दिखाता है।।
ऐसे श्री शांतिनाथ भगवन हम सबकी भी रक्षा करिए।
मैं शीश झुका वंदन करती मेरे सब दोष क्षमा करिए।।
(४)
जब पुष्पवृष्टि होती प्रभु पर तब ऐसा मालुम पड़ता है।
उसकी सुगन्धि से जो भौंरे गुंजार रहे यूं लगता है।।
देवेन्द्र नरेन्द्र आदि आकर भगवन की स्तुति करते हैं।
उनकी स्तुति की ईर्षावश वह पुष्प ही स्तुति करते हैं।।
ऐसे श्री शांतिनाथ भगवन हम सबकी भी रक्षा करिए।
मैं शीश झुका वंदन करती मेरे सब दोष क्षमा करिए।।
(५)
प्रभु के भामंडल के आगे चंदा सूरज ऐसे लगते।
क्या ये दो जुगनू हैं अथवा अग्नी के फूलिगे ही दिखते।।
अथवा ये श्वेतमेघ के दो टुकड़े हैं ऐसा लगता था।
वह शांतिनाथ का भामंडल देवों को ऐसा लगता था।।
ऐसे श्री शांतिनाथ भगवन हम सबकी भी रक्षा करिए।
सब कर्मों से हैं मुक्त आप हमको भी कर्ममुक्त करिए।।
(६)
श्री शांतिप्रभु का तरु अशोक उन पर फूलों के जो गुच्छे।
उन पर बैठे जो भ्रमर लगें यशगान कर रहें प्रभु का वे।।
वायू से कंपित लता वृक्ष की ऐसी लगती थी मानो।
हाथों को हिलाकर नृत्य करे कवि की ही कल्पना ये जानो।।
ऐसे श्री शांतिनाथ प्रभुवर हम सबकी भी रक्षा करिए।
सब कर्मों से हैं मुक्त आप हमको भी कर्ममुक्त करिए।।
(७)
सारे जग को पवित्र करने वाली वरदायी वागीश्वरि माता!।
जिसके मुख से हैं प्रगट हुई ऐसे हे शांती के दाता।।
वे शांतिनाथ भगवन जिनकी अर्थीजन सेवा करते हैं।।
जो अतिशीतल हैं अरु जिनकी सुरगण भी स्तुति करते हैं।।
सब कर्म रहित हे शांतिनाथ ! हम सबकी भी रक्षा करिए।
मैं शीश झुकाकर नमती हूँ मेरे सब दोष क्षमा करिए।।
(८)
सब आभूषण से सहित देव जिन प्रभु पर चमर ढोरते हैं।
चंदा की किरणों के समान वे निर्मल रूप को धरते हैं।।
पर तीन लोक के नाथ शांतिप्रभु की न कोई भी इच्छा है।
वे सब प्रकार के दोष रहित हम सबकी करते रक्षा हैं।।
ऐसे प्रभुवर श्री शांतिनाथ को हृदय कमल में ध्याती हूँ।
उनके चरणों में वंदन कर नितप्रति मैं शीश झुकाती हूँ।।
(९)
सब शास्त्रज्ञान से है जिनकी बुद्धी अत्यन्त विशाल रूप।
ऐसे देवेन्द्र हरी आदिक भी पार न पावें गुणसमुद्र।।
उन केवलज्ञान स्वरूपी श्री शांतिप्रभु की जो स्तुति की।
मैं ‘‘पद्मनंदि’’ भक्तीवश हो मन शांति हेतु ये रची कृति।।
ऐसे भगवन श्री शांतिनाथ ! हम सबकी भी रक्षा करिए।
सब कर्मों से हैं मुक्त आप हमको भी कर्ममुक्त करिए।।
।।इति शांत्यष्टक स्तोत्र।।
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