सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य जैन थे। इनके समय में मगध में १२ वर्ष का भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा था। उस समय ये अपने पुत्र को राज्य सौंपकर अपने धर्मगुरु जैनाचार्य भद्रबाहु के साथ दक्षिण गए थे। १२ वर्ष पश्चात् चन्द्रगिरि पर्वत पर समाधिमरण को प्राप्त हुए थे। यतिवृषभ आचार्य (द्वितीय शताब्दी) द्वारा रचित तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ के अनुसार मुकुटधारी राजाओं में अन्तिम राजा चन्द्रगुप्त हुए थे, जिन्होंने जिनदीक्षा धारण की। उनके बाद कोई भी मुकुटधारी राजा दीक्षित नहीं हुआ। अनेक शिलालेखों के आधार पर लेविस राईस, मि. थामस, स्व. डाँ. वी. ए. स्मिथ, के. पी. जायसवाल व डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी आदि अनेक इतिहासकार भी इन्हें जैन धर्मावलम्बी स्वीकार करते हैं। उनके सुप्रसिद्ध महामंत्री चाणक्य भी जैन थे। इन्होंने वर्षों तक जैन संघ का नेतृत्व किया। चाणक्य ने भी मन्त्रित्व का भार अपने शिष्य राधागुप्त को सौंपकर मुनि दीक्षा लेकर तपश्चरण करते हुए अंत समय में सल्लेखनापूर्वक देह त्याग किया। सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के सम्मान में भारत सरकार द्वारा २१—०७—२००१ को ४ रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।