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25.करुणाष्टक!
March 13, 2018
पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका
jambudweep
करुणाष्टक
।।बीसवाँ अधिकार।।
(१)
हे त्रिभुवनगुरु कर्मारिजयी! परमानंद मुक्ती के दाता।
मुझकिकर पर करुणा करिए निज सम कर लो जग के त्राता।।
(२)
हे घातिकर्मनाशक अर्हन्! जग के बहु दुख से खिन्न हूँ मैं।
मुझ दीन पे ऐसी दया करो नहिं जन्म मरण अब पाऊँ मैं।।
(३)
हे प्रभो! भयंकर जगत कूप से मेरा अब उद्धार करो।
मैं पुन: पुन: याचना करूँ मेरा भवसागर पार करो।।
(४)
तुम ही स्वामी करुणाकर हो भवि जीवों के शरणागत हो।
मैं रो-रोकर विनती करता मेरा अभिमान नष्ट कर दो।।
(५)
जो गाँवपती भी होता है वो भी दुनिया का दुख हरता।
फिर हे जिनेन्द्र ! खलकर्मों के दु:ख क्यों नहिं तू मेरे हरता।।
(६)
हे प्रभो ! सभी में मूलभूत बस एक वचन ये कहना है।
मैं बहुत दुखी हूँ इस जग में अब और यहाँ नहिं रहना है।।
(७)
हे प्रभो ! जगतरूपी आतप से मैं संतप्त दुखी तब तक।
जब तक न मिले करुणारूपी शीतल जल से ये चरण कमल।।
(८)
इस जग के एक शरण हे प्रभु ! बस यही प्रार्थना करते हैं।
‘‘श्री पद्मनंदि’’ ने गुण गाए निंह और किसी में ऐसे हैं।।
।।इति करुणाष्टक।।
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